Yashwant Parmar Jayanti: इंदिरा गांधी के एक संदेश मात्र से ही छोड़ दिया था डॉ. परमार ने सीएम पद
Dr Yashwant Singh Parmar डॉ. परमार ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दिया था। त्यागपत्र देने से तीन दिन पहले वे दिल्ली गए थे। वापिस आकर नाहन में बैठक कर रहे थे कि तभी शिमला कार्यालय से सूचना मिली कि उन्हें दिल्ली बुलाया गया है।
नाहन, राजन पुंडीर। Dr Yashwant Singh Parmar, शिमला डाकघर के सामने की रेलिंग पर खड़े शेरजंग चौहान, जय प्रकाश चौहान व काली कुमार डोगरा कांग्रेस भवन में चल रही हलचल को देख रहे थे। तभी डॉ. यशवंत परमार एवं अन्य कांग्रेसी नेता सीढिय़ों से नीचे उतरे और सडक़ पर खड़ी एंबेसडर कार के पास आए। उसी दौरान डॉ. परमार आगे आए और कार का दरवाजा खोलकर ठाकुर रामलाल को बैठने का इशारा किया। ठाकुर रामलाल इस अप्रत्याशित व्यवहार के लिए तैयार नहीं थे और डॉ. परमार से हाथ जोड़ विनती करते दिखाई दिए। पहले उन्हें बैठने का आग्रह किया मगर परमार ने बलपूर्वक ठाकुर रामलाल को बिठा ही दिया।
वह भी इस घटना को नहीं समझ पाए थे। मगर साथ में खड़े मेरे मित्र जयप्रकाश चौहान (वैद्य सूरत सिंह के पुत्र जो कि डॉ. परमार के खास मित्रों में से एक थे तथा खादी बोर्ड के चेयरमैन थे) ने बताया कि डॉ. परमार ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया है। ठाकुर रामलाल को नया मुख्यमंत्री बना दिया गया है। क्या किसी ने ऐसा मुख्यमंत्री देखा है जो स्वयं त्यागपत्र देकर किसी दूसरे को अपने हाथों कुर्सी सौंप दे? ऐसे थे प्रथम मुख्यमंत्री और हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार।
यह वाक्या 1976 का है, जब डॉ. परमार ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दिया था। त्यागपत्र देने से तीन दिन पहले वे दिल्ली गए थे। वापिस आकर नाहन में बैठक कर रहे थे कि तभी शिमला कार्यालय से सूचना मिली कि उन्हें दिल्ली बुलाया गया है। वे सोचने लगे कल ही तो वहां से आया हूं ऐसी क्या बात हो गई जो उन्हें तुरंत दिल्ली बुलाया गया। वे दिल्ली की ओर फिर से रवाना हो गए। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आवास पर गए तो वहां कांग्रेस महासचिव पूर्वी मुखर्जी से बात हुई। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री चाहती हैं कि वे मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दें। डॉ. परमार मुस्कुराए और कहा ‘बस इतनी सी बात’। मुझे फोन पर ही बता देते और वापस चलने लगे।
मुखर्जी ने कहा कि आप रुक जाईये, कल प्रधानमंत्री मिल सकेंगी। एक बार उनसे मिल तो लीजिए। डॉ. परमार ने कहा मुझे मुख्यमंत्री बनने का अवसर भी उन्होंने दिया है और उन्हीं के कहने से पद छोड़ दूंगा। उन्होंने कहा कल मंडी में मेरी जनसभा है परसों त्यागपत्र दे दूंगा। उन्होंने किसी भी प्रकार का लालच न करते हुए मंडी से वापस आ कर त्यागपत्र दे दिया और ठाकुर रामलाल को गद्दी सौंप दी।
इस प्रकरण पर उनके सहयोगी एवं डॉ. परमार पर पुस्तक लिखने वाले आचार्य चंद्रमणि वशिष्ठ के अनुसार एक व्यक्ति जो बीस सालों तक किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री रहा हो, लोग जिसके पीछे चट्टान की तरह खड़े हों, जिसके पक्ष में पूरी पार्टी और विधानसभा का बहुमत हो, वो मुस्करा के कह दे ‘बस इतनी सी बात है’। चंद्रमणि के अनुसार उस व्यक्ति की आकाश जैसी बुलंदी, महानता, हृदय की विशालता तथा अहसानमंदी के जज्बे के क्या कहने। वशिष्ठ ने लिखा है कि डॉ. परमार बुुजुर्ग तथा वरिष्ठ सियासदान थे। व्यर्थ में चापलूसी करना अथवा सलाम झाडऩा उन्हें नहीं आता था।
घटनाक्रम के अनुसार उस समय संजय गांधी का बोलबाला था। संजय की काफी चलती थी। सुना है कि कसौली में आयोजित युवा कांग्रेस बैठक में डॉ. परमार ने राम-सलाम की राजनीति से समझौता नहीं किया और संजय कुपित होकर इंदिरा गांधी के माध्यम से झुकाना चाहते थे। किसी ने कहा भी आप संजय से बात तो कर लें। उन्होंने कहा ‘इस उम्र में बच्चों के बस्ते नहीं उठाए जाते’। वो खुद्दार व्यक्ति चापलूसी नहीं कर सका और खाली हाथ अपनी राह हो लिया।