कंधे पर दीये, आंखों में संस्कृति संरक्षण की आस, ऐसे हैं जलेरा के मुकंद लाल

दीपावली दीपों का त्योहार है लेकिन आज के आधुनिक युग में बदलते परिवेश के साथ इस त्योहार को बदल कर रख दिया है। भारतीय संस्कृति के प्रतीक दीपावली पर्व पर कभी मिट्टी के बने दीयों का इस्तेमाल होता था।

By Virender KumarEdited By: Publish:Sun, 17 Oct 2021 11:41 AM (IST) Updated:Sun, 17 Oct 2021 11:41 AM (IST)
कंधे पर दीये, आंखों में संस्कृति संरक्षण की आस, ऐसे हैं जलेरा के मुकंद लाल
जलेरा के मुकंद लाल करुए व दीये बेचते हुए। जागरण

डाडासीबा, कमलजीत।

दीपावली दीपों का त्योहार है, लेकिन आज के आधुनिक युग में बदलते परिवेश के साथ इस त्योहार को बदल कर रख दिया है। भारतीय संस्कृति के प्रतीक दीपावली पर्व पर कभी मिट्टी के बने दीयों का इस्तेमाल होता था, लेकिन बदलते दौर के साथ मिट्टी के दीपक का स्थान विद्युत उत्पादों ने ले लिया है। वर्तमान में आलम यह है कि शहरों से लेकर गांवों में मिट्टी का दीपक केवल परंपरा निभाने के नाम पर जलाया जाता है।

फलस्वरूप मिट्टी के दीये बनाने वाले लोगों का रोजगार भी प्रभावित हुआ है। बाजारों में विद्युत लड़ियों- झालरों की चमक-धमक ने मिट्टी के दीपक की रोशनी को फीका कर दिया है। वहीं कुछ लोग आज भी इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। ऐसे ही एक वयोवृद्ध हैं डाडासीबा तहसील के गांव जलेरा डाकघर बठरा निवासी मुकंद लाल, जो कि करवा चौथ एवं दीपावली के नजदीक खुद के बनाए मिट्टी के करुए व मिट्टी के दीपक इन दिनों घर-घर जाकर बेच रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह बचपन से ही मिट्टी के दीपक एवं करुए बनाने का काम कर रहे हैं। यह काम पीढ़ी दर पीढ़ी चला हुआ है और वह आज तक इस परंपरा को निभा रहे हैं।

गिनी-चुनी दुकानों में नजर आते हैं मिट्टी के दीप

उन्होंने बताया कि युवा पीढ़ी अब इस कार्य में दिलचस्पी नहीं दिखाती है। दीपावली के त्योहार को लेकर बाजार इस समय रंग-बिरंगी लाइटों से जगमगा रहे हैं। विद्युत उत्पादों के बीच मिट्टी का दीपक बाजार में अब शायद ही कहीं-कहीं नज़र आता हो। वहीं अगर देखा जाए तो पिछले कई वर्षों से मिट्टी से करुए एवं दीपक बनाने और बेचने वाले लोग भी अब कम ही दिखाई देते हैं। आधुनिकता के इस दौर में अब मिट्टी के दीपक और बर्तन बनाने वाले लोगों ने इस काम से किनारा कर लिया है। फलस्वरूप मिट्टी के दीपक दीपावली पर जलाने की पारंपरिकता अब लुप्त होती जा रही है, वहीं बाजारों में भी गिनी चुनी दुकानों में ही मिट्टी के दीपक नज़र आते हैं।

आओ कुछ ऐसा करें...

भले ही आधुनिक युग में रोशनी के कई विकल्प मौजूद हैं, लेकिन परंपरागत मिट्टी के दीपक का महत्व आज भी बरकरार है। प्रगतिशील होना अच्छा है लेकिन अपनी परंपराओं की कीमत पर नहीं। हमारी परंपरा बदलती जा रही है, परंपरा और संस्कृति को लेकर लोग जागरूक नहीं हैं। लेकिन लोगों को जागरूक होना पड़ेगा। दीपावली खुशियों व प्रकाश का त्योहार है इसलिए कुछ ऐसा करें जिससे अपने साथ-साथ औरों को भी खुशी मिले। स्वयं के साथ-साथ लोगों को स्वदेशी उत्पाद का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करें। इस दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाएं। पारंपरिक भारतीय संस्कृति को मजबूत बनाएं। दीपावली की खरीदारी ऐसी जगह से करें, जो आपकी खरीदारी की वजह से खुशहाली भरी दीपावली मना सकें।

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