Dusherra Utsav:अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में भाग लेने के लिए देवी-देवताओं के आने का सिलसिला जारी
देवमहाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जिला कुल्लू के विभिन्न क्षेत्रों से देवी-देवता कुल्लू पहुंच रहे हैं। वहीं उत्सव की पूर्व संध्या पर भी 120 के करीब देवी-देवता अपने देवलू व हारियानों के साथ ढालपुर स्थित अपने-अपने अस्थायी शिविरों में विराजमान हो गए हैं।
कुल्लू, कमलेश वर्मा। देवमहाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जिला कुल्लू के विभिन्न क्षेत्रों से देवी-देवता कुल्लू पहुंच रहे हैं। वहीं, उत्सव की पूर्व संध्या पर भी 120 के करीब देवी-देवता अपने देवलू व हारियानों के साथ ढालपुर स्थित अपने-अपने अस्थायी शिविरों में विराजमान हो गए हैं। शुक्रवार सुबह से ही अन्य देवी देवताओं के आने का सिलसिला लगातार जारी है।
जिलाभर से देवी देवताओं के कुल्लू स्थित अपने अस्थायी स्थलों में विराजमान होने से जहां अठारह करडू की सौह ( ढालपुर मैदान) सहित पूरी कुल्लू घाटी देवमयी हो गई है। वहीं देवी देवताओं के दशहरा में शिरकत करने के बाद जिला के देवालय सूने पड़ गए हैं। अब अगले दो हफ्ते तक जिला के ग्रामीण इलाकों के देवालय में किसी तरह के देव कारज नहीं होगे। वहीं सोने-चांदी के सजे देवरथों से अठारह करडू की सौह ढालपुर देवलोक में तब्दील हो गई।
ढोल-नगाड़ों, करनाल, नरसिंगों, करनाल और शहनाई की स्वरलहरियों से पूरी ढालपुर मधुर ध्वनि से गूंज उठा है। देव व मानस के इस अलौलिक और अद्भुत नजारे का माहौल देखते बन रहा है। जिला के प्रमुख देवी देवताओं का दशहरा में भाग लेने से उनके देवालयों व मंदिरों में सन्नाटा सा छा गया है। बिजली महादेव, श्रृंगा ऋषि व माता हिडिंबा सहित जिला के सैकड़ों देवी देवताओं के दशहरा में आने से निरमंड, आनी, बंजार, सैंज, गड़सा, मणिकर्ण, खराहल, बजौरा, लगवैली तथा ऊझी घाटी के देवालय देवताओं के बिना सूने पड़े गए हैं। जिला देवी देवता कारदार संघ के प्रधान दोत राम ठाकुर ने कहा कि देवी-देवता दशहरा उत्सव की शान है। उनके अनुसार अब सात दिनों तक सभी देवी देवता अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ जी की चाकरी करेंगे और लंका दहन के दिन वापिस अपने अपने स्थानों के लिए प्रस्थान करेंगे।
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में हो रहा देवताओं-मानस का महामिलन
पिछले साल कोरोना के मद्देनजर सूक्ष्म रूप से हुआ था आयोजन, सात ही देवताओं को दिया था निमंत्रण
इस साल जिला प्रशासन ने सभी 332 देवी देवताओं को भेजा है बुलावा, अभी तक 200 से अधिक पहुंचे
दो सालों से एक दूसरे से मिलने के लिए उत्सुक जिला कुल्लू के देवी देवताओं का आज फिर अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के मौके पर महामिलन हो रहा है। अठारह करडू की सौह एक बार फिर देवताओं के आगमन और भव्य मिलन का गवाह बनेगी। जिला से जहां देवी देवताओं के आगमन के बाद घाटी के देवता भगवान रघुनाथ जी की रथयात्रा और माता हिडिंबा की मंजूरी के साथ ही देवी भेखली के इशारे के बाद आज कुल्लू दशहरा का विधिवत आगाज होगा। भगवान रघुनाथ अपने स्थायी शिविर से छोटे रथ से निकलने के बाद बड़े रथ पर विराजमान होते हैं और उसके बाद निकलने वाली शोभायात्रा के साथ यहां अंतरराष्ट्रीय दशहरा का आगाज होता है। लिहाजा, इंतजार की घड़ियां खत्म हो गयी हैं और देवी देवताओं व लोगों के इस महामिलन अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की अब सात दिनों तक कुल्लू में धूम रहेगी।
मुहल्ला में होता है देवताओं का महामिलन
कुल्लू दशहरे में प्रतिदिन शाम को राजा की शोभायात्रा निकलती है। इसे जलेब कहते हैं । यह राजा के अस्थाई शिविर से निकलती है और मैदान का चक्कर लगाकर वापिस शिविर में लौटती है। जलेब में राजा को पालकी में बिठाया जाता है। इस जलेब में आगे भगवान नरसिंह की घोड़ी चलाई जाती है। अलग-अलग दिन अलग-अलग घाटियों के देवी देवता अपने वाद्य यंत्रों सहित इस जलेब में भाग लेते हैं । दशहरे के छठे दिन को मुहल्ला कहते हैं। इस दिन सभी देवताओं का महामिलन होता है। सभी देवी देवता रघुनाथ जी के शिविर में पहुंचते हैं और आपस में बड़े हर्षोउल्लास से मिलते हैं। उसके बाद एक एक एक केरके देवताओं के रथ राजा के शिविर में जाकर अपनी लिखित उपस्थिति दर्ज करवाते हैं।
देवता करते हैं ट्रैफिक कंट्रोल, दो देवता पुलिस के पहरे में
भगवार रघुनाथ के रथ निकलने पर ट्रैफिक व्यवस्था का जिम्मा पुलिस की जगह देवता ही संभालते हैं। देवता धूमल रथ के आगे चलकर भगवान के रथ के लिए रास्ता बनाते हैं। सदियों से चल रही इस परंपरा को आज भी जस का तस पालन किया जाता है। इसी तरह भगवान की शोभायात्रा के साथ चलने के लिए देवता बालूनाग और ऋृंगा ऋषि में विवाद होता है और इस कारण इन दोनों देवताओं को पुलिस के पहरे में रखा जाता है। इनके विवाद को धुर विवाद कहा जाता है।
चार जगह और चलते हैं रघुनाथ के रथ
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा के अलावा मणिकर्ण, ठाउगा, वशिष्ठ और हरिपुर में भी दशहरे का आयोजन होता है। यहां पर भी सात दिनों तक महोत्सव चलता है। मणिकर्ण में बाकायदा रथ भी बनाया जाता है जिसमें भगवार रघुनाथ को रखा जाता है। यहां पर हालांकि देवता बड़ी संख्या में नहीं होते लेकिन परंपराओं का पालन पूरी तरह से किया जाता है।