देवभूमि के पद्म जिनका सम्मान हिमाचल का गर्व

आइए देवभूमि-वीरभूमि हिमाचल प्रदेश के अथवा उसके साथ जुड़े अपने उन हस्ताक्षरों के गर्व में शामिल हों जिन्होंने व्यक्तित्व और कृतित्व से पद्म पुरस्कार पाकर शिखरों का सम्मान बढ़ाया। आज आठ जनवरी है। हिमाचल उन लोगों के सम्मान में गर्व महसूस करता है जिन्‍होंने प्रदेश का मान बढ़ाया है।

By Richa RanaEdited By: Publish:Fri, 08 Jan 2021 12:32 PM (IST) Updated:Fri, 08 Jan 2021 12:32 PM (IST)
देवभूमि के पद्म जिनका सम्मान हिमाचल का गर्व
प्रदेश के पद्म पुरस्कार विजेताओं ने प्रदेश का मान बढ़ाया है।

धर्मशाला, जेएनएन। आइए, देवभूमि-वीरभूमि हिमाचल प्रदेश के अथवा उसके साथ जुड़े अपने उन हस्ताक्षरों के गर्व में शामिल हों जिन्होंने व्यक्तित्व और कृतित्व से पद्म पुरस्कार पाकर शिखरों का सम्मान बढ़ाया। आज आठ जनवरी है। आज के दिन ही 1955 में राष्ट्रपति की एक अधिसूचना ने यह तय किया था कि भारत रत्न के बाद पद्म पुरस्कारों के नाम पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री होंगे।

यूं तो 2 जनवरी 1954 को देश के सबसे बड़े नागरिक अलंकरण भारत रत्न की स्थापना के साथ ही पद्म विभूषण की घोषणा भी हुई थी लेकिन तब इसके तीन भाग थे जिन्हें पहला वर्ग, दूसरा वर्ग और तीसरे वर्ग के रूप में जाना जाता था। बेशक छोटा राज्य है...बेशक 1966 के बाद ही हिमाचल प्रदेश ने आकार लिया और 1971 में यह पूर्ण राज्य बना लेकिन किसी की समाज सेवा, किसी के खेल, किसी की दवा क्षेत्र में  विशेषज्ञता या अन्य क्षेत्रों में योगदान पहले से जारी था। बेशक हिमाचल के खाते में औपचारिक रूप से अब तक एक पद्म विभूषण और 14 पद्मश्री आए हैं...हिमाचल उन लोगों के सम्मान में भी अपने लिए गर्व महसूस करता है जो हिमाचल के हैं, हिमाचल से जुड़े रहे हैं।

यह आयोजन इसलिए ताकि गर्व की ज्योति दायित्व बोध करवाती रहे...समाजहित में कुछ कर गुजरने का भाव उत्तरोत्तर बढ़ता रहे

हिमाचल को मिले पद्म पुरस्कार

बीके नेहरू (कसौली) -1999 - पदम विभूषण

बीके नेहरू भारतीय राजनयिक और संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय राजदूत रहे थे। वे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के चचेरे भाई बृजलाल और रामेश्वरी नेहरू के पुत्र थे। इनका जन्म इलाहाबाद (उप्र) में 04 सितंबर 1909 में हुआ। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय, लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। इनकी शादी यूके में सहपाठी छात्रा मगदोलना फ्रीडमैन से हुई। बाद में इनका नाम शोभा (फोरी) नेहरू रखा। 31 अक्टूबर 2001 को कसौली में इनका निधन हो गया।

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पदम श्री

डॉ. क्षमा मैत्रेय समाज सेवा, 2008

डॉ. क्षमा मैत्रेय का जन्म नागपुर (महाराष्ट्र) में वामनराव बापू जी मैत्रेय व शांता बाई मैत्रेय के घर 25 जून 1950 को हुआ। इन्हें डॉक्टर दीदी के नाम से भी जाना जाता है। यह तपोवन (धर्मशाला) में चिन्मय ग्रामीण विकास संस्था (कोर्ड) की संरक्षक हैं। यह संस्था के माध्यम से समाज सेवा में सक्रिय हैं। इन्होंने एमबीबीएस व एमडी की है। धर्म गुरु चिन्मयानंद के संपर्क में आने के बाद वे चिन्मय मिशन से जुड़ी और ग्रामीण क्षेत्रों में समाज सेवा में जुट गईं।

मुसाफिर राम भारद्वाज  2014   कला

मुसाफिर राम भारद्वाज का जन्म चंबा जिला के संचुई (भरमौर) में दीवाना राम के घर 1930 में हुआ। इनकी कोई व्यवहारिक शिक्षा नहीं हुई है। इन्होंने 13 साल की उम्र में पौना माता बजाना सीखा था। इन्होंने 2010 में दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान भी प्रस्तुति दी थी। मुसाफिर राम किसान हैं और दर्जी का भी काम करते हैं। इनके चार बेटे व दो बेटियां हैं। पौना माता एक पारंपरिक वाद्य यंत्र है जो तांबे के यंत्र पर भेड़े की खाल से बनता है।

विजय शर्मा   कला   2012

विजय शर्मा का जन्म चंबा के रामगढ़ मोहल्ले में अनंतराम व गीतादेवी के घर 12 सिंतबर 1962 को हुआ। पिता ने बेटे में कला के प्रति लगाव को देखकर बनारस में चित्रकला सीखने के लिए भेज दिया। प्रभाकर करने के बाद इन्होंने इतिहास में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। इसके बाद विजय शर्मा फिर बनारस स्थित भारत कला भवन में मिनिएचर पेटिंग सीखने चले गए। हिमाचल पथ परिवहन निगम, शिक्षा व संस्कृति विभाग में कुछ समय तक नौकरी की लेकिन बाद में भूरि सिंह संग्रहालय के साथ जुड़ गए। इन्होंने गैर सरकारी संगठन शिल्प परिषद का भी गठन किया।

ब्रिगेडियर कपिल मोहन 2011 उद्योग

ब्रिगेडियर कपिल मोहन मोहन मीकिन कंपनी के प्रबंध निदेशक रहे हैं। सेना में सेवा के दौरान इन्हें विशिष्ट सेवा मेडल मिला है। इनका जन्म 16 जुलाई 1929 को हुआ। इनकी शादी पुष्पा मोहन के साथ हुई थी। 6 जनवरी 2018 को दिल का दौरा पडऩे से इनका निधन हो गया। इनके कारोबार को हेमंत व विनय मोहन संभाल रहे हैं।

अजय ठाकुर (कबड्डी)

सोलन जिले के नालागढ़ उपमंडल के दभोटा गांव में एक मई, 1986 में जन्मे अजय ठाकुर पेशेवर कबड्डी खिलाड़ी हैं। वह भारत की राष्ट्रीय कबड्डी टीम के कप्तान रह चुके हैं। 2016 के कबड्डी विश्व कप और 2014 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा रहे। उन्हेंं 2019 में पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन दिनों वह हिमाचल पुलिस में बतौर डीएसपी कार्यरत हैैं। अजय की शादी 2019 में संदीपा से हुई थी।

डॉ. ओमेश भारती (मेडिसिन)

कांगड़ा जिला के ज्वालामुखी में जन्मे डॉ. ओमेश भारती ने रेबीज के सस्ते इलाज की तकनीक विकसित की थी। डॉक्टर भारती के शोध से पागल कुत्ते व बंदर के काटने पर मरीजों का 30 से 35 हजार के बीच होने वाला महंगा इलाज मात्र 350 रुपये में संभव हो पाया है। उन्होंने लगभग डेढ़ दशक के शोध से यह साबित किया कि रेबीज सीरम को पागल कुत्ते या बन्दर के काटने से होने वाले घाव पर लगाया जाए तो असर जल्दी होता है और दवा की मात्रा भी कम लगती है। उनके शोध को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी मान्यता दी। इस खोज के लिए उन्हेंं पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। अब डा. भारती सांप के काटने के सस्ते इलाज पर शोध कर रहे हैैं।

 

प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्रा 2020 शिक्षा

प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्रा मूल रूप से बनारस (उप्र) से हैं लेकिन लंबे समय से शिमला में रहते हैं। वह हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के संस्थापक और विभागाध्यक्ष रहे हैं। इन्होंने शिमला के समरहिल में घर बनाया है। वह हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से 2003 में सेवानिवृत्त होने के बाद  संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय काशी के कुलपति भी रहे। वह देश-दुनिया में संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिए प्रयासरत रहे। इसके अलावा, संस्कृत में भी कविता पाठ करने के लिए जाने जाते हैं। एचपीयू का कुलगीत भी इनकी ही रचना है। संस्कृत में पाठ करने के चलते ही उन्हेंं कविराज की उपाधि दी गई।

डॉ. दविंद्र सिंह राणा, मेडिसिन, 2009

डॉ. दविंद्र सिंह राणा हमीरपुर के दिम्मी (दशमल) के निवासी हैं। उन्होंने अपनी माता पार्वती देवी की स्मृति में पैतृक गांव दिम्मी (दशमल) में चैरिटेबल अस्पताल भी बनाया है। डॉ. दविंद्र सिंह राणा सर गंगाराम अस्पताल दिल्ली में चेयरमैन बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट के अलावा नेफ्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष भी हैं। इन्होंने 1972 में आइजीएमसी शिमला से एमबीबीएस की। वर्ष 1976 में पीजीआइ चंडीगढ़ से मेडिसन व नेफ्रोलॉजी में स्नातकोत्तर एम्स नई दिल्ली से परीक्षा पास की।

डॉ. जगत राम  चिकित्सा

एक लाख से अधिक आंखों के आपरेशन कर चुके डॉ. जगत राम पीजीआइ चंडीगढ़ के निदेशक एवं नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं। आॢथक तंगहाली के बावजूद पीजीआइ के निदेशक पद तक पहुंचे डॉ. जगत ने साबित कर दिखाया कि दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत के बूते हर मुश्किल काम भी आसान हो जाता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. जगत राम मूलत: सिरमौर जिले की सेर जगास पंचायत के पबियाना गांव से हैं। डॉ. जगत राम ने मोतियाबिंद सर्जरी की पुरानी तकनीक को बदलकर नई एवं उ'च गुणवत्ता वाली सस्ती तकनीक ईजाद की। इन्हें अमेरिकन सोसायटी कैटरेक्ट की ओर से बेस्ट ऑफ द ईयर से भी सम्मानित किया जा चुका है। इन्होंने 1985 में आइजीएमसी शिमला से एमबीबीएस की।

येशी ढोंडेन 2019 दवा

यशी डोडेन पारंपरिक तिब्बती चिकित्सा के चिकित्सक हैं। इन्होंने 1961 से 1980 तक 14वें दलाई लामा की सेवा की। ढोंडेन का जन्म 15 मई 1927 को यारलुंग त्संगपो नदी के दक्षिण में स्थित एक गांव नम्रो में किसान परिवार में हुआ था। उन्हेंं 6 साल की उम्र में एक मठ में पढऩे के लिए भेजा गया था। 11 वर्ष की आयु में, उन्होंने तिब्बती मेडिसिन, ल्हासा के चक्रपोरी संस्थान में दाखिला लिया और 9 वर्षों तक चिकित्सा का अध्ययन किया। 20 साल की उम्र में, उन्हेंं तिब्बती मेडिसिन के चापपोरी इंस्टीट्यूट में कक्षा में सर्वश्रेष्ठ के रूप में मान्यता दी गई थी, और उन्हेंं दलाई लामा का मानद डॉक्टर बनाया गया था। धर्मशाला में उन्होंने तिब्बती चिकित्सा और ज्योतिष संस्थान की स्थापना की और 1979 तक इसके निदेशक के रूप में कार्य किया। उन्होंने 1969 में एक निजी क्लिनिक की भी स्थापना की। स्वास्थ्य में गिरावट के कारण उन्होंने 1 अप्रैल 2019 को आधिकारिक तौर पर चिकित्सा पद्धति से संन्यास ले लिया।

कंगना रणौत (कला)

कंगना रणौत का जन्म 23 मार्च, 1987 को मंडी जिला के भांबला गांव में अमरजीत सिंह व आशा रनौत के घर हुआ। हिंदी फिल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री मुंबई में रहती हैं। अभी इन्होंने मनाली में भी घर बनाया है। फिल्म क्वीन में जबरदस्त अभिनय के कारण कंगना को बॉलीवुड की क्वीन भी कहा जाता है। दिल्ली में अस्मिता थिएटर ग्रुप के साथ अभिनय करियर की शुरुआत की। इन्होंने सुप्रसिद्ध रंगमंच निर्देशक अरविंद गौड़ के अंतर्गत प्रशिक्षण प्राप्त किया। कंगना ने को कई पुरस्कार मिले हैं। 

सोभा सिंह

प्रख्यात चित्रकार सरदार सोभा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1901 को पंजाब के गुरदासपुर जिला के श्री हर गोबिंदपुर में देवा सिंह के घर हुआ। सोभा सिंह ने 1919 से 1923 तक ब्रिटिश इंडिया आर्मी में बतौर ड्राफ्ट्समैन सेवाएं दीं। 1923 में इन्होंने अमृतसर में अपना स्टूडियो खोला। 1947 में पालमपुर के अंद्रेटा में आए और यहीं के होकर रह गए। इनकी बेजोड़ चित्रकला व कई खूबसूरत कृतियों के कारण अंद्रेटा की पहचान विश्वस्तर पर हुई। इन्हें दार जी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी बेटी बीबी गुरचरण कौर व उनके होहते हृदयपाल सिंह ने अंद्रेटा में उनकी स्मृति को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया है।

डॉ. रणदीप गुलेरिया 2015 चिकित्सा

एम्स दिल्ली के निदेशक डॉ, रणदीप गुलेरिया ने देश का पहला पल्मोनरी मेडिसिन एंड स्लीप डिस्आर्डर सेंटर स्थापित किया। कोरोना काल में भी इनकी भूमिका अहम रही है। इन्होंने आइजीएमसी शिमला में पढ़ाई की है। डॉ. गुलेरिया पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निजी चिकित्सक भी रहे हैं। इनका जन्म पांच अप्रैल 1959 को कांगड़ा जिला में हुआ है।

चरणजीत सिंह

चरणजीत सिंह का जन्म 3 फरवरी 1931 को ऊना जिला में हुआ। पूर्व भारतीय हॉकी खिलाड़ी और 1964 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक हॉकी टीम के कप्तान रहे हैं। वे हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में शारीरिक शिक्षा विभाग के निदेशक पद पर भी रहे हैं।

अनुपम खेर 2002 (कला)

शिमला में 7 मार्च 1955 को जन्मे अभिनेता अनुपम खेर किसी पहचान के मोहताज नहीं हैैंं। उनके पिता पुष्करनाथ खेर मूलत: कश्मीरी पंडित थे, जो शिमला में क्लर्क थे। करीब 400 ङ्क्षहदी फिल्मों व रंगमंच के अलावा अनुपम ने हॉलीवुड की कई फिल्मों में दमदार अभिनय से लोगों का मन मोहा है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा शिमला के डीएवी स्कूल से हुई। पंजाब विश्वविद्यालय से पढ़ाई के बाद उन्होंने नई दिल्ली स्थित नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से रंगमंच नाटक में स्नातक  की डिग्री हासिल की। उनकी पहली फिल्म 1982 में आई आगमन थी। उनकी पत्नी किरण खेर चंडीगढ़ से लोकसभा सदस्य हैैं। 2004 में सिनेमा में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी प्रमुख फिल्मों में सारांश, डैडी, कर्मा, त्रिदेव, दिल आदि शामिल हैैं।

विजय कुमार शर्मा - पद्मश्री

हमीरपुर जिले के बड़सर में बांकू राम व रोशनी देवी के घर 19 अगस्त 1985 को जन्मे विजय कुमार शर्मा ने सेना में भर्ती हुए। इन्होंने निशानेबाजी में देश का नाम रोशन किया। राष्ट्रमंडल, एशियन गेम्स में बेहतरीन प्रदर्शन किया। ओलंपिक खेलों में उन्होंने सिल्वर मेडल हासिल किया है। विजय कुमार अब हिमाचल प्रदेश पुलिस में डीएसपी के पद पर कार्यरत हैं। उनकी हिमाचल में शूटिंग रेंज खोलने की योजना है।

मनोहर सिंह गिल पद्म विभूषण

अविभाजित पंजाब में 14 जून 1936 में जन्मे मनोहर सिंह गिल प्रशासनिक अधिकारी के साथ राजनीति में भी सक्रिय रहे हैैं। बतौर प्रशासनिक अधिकारी उन्होंने अविभाजित पंजाब में कई स्थानों पर सेवाएं दीं। वह लाहुल-स्पीति (अब हिमाचल प्रदेश में) के जिलाधीश भी रहे। 1996 से 2001 तक वह देश के मुख्य चुनाव आयुक्त भी रहे। देश में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन की शुरुआत करने का श्रेय उन्हें जाता है। इस पद पर किए कार्यों के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। 2008 में मनमोहन सिंह सरकार में उन्हें युवा मामले व खेल मंत्री बनाया गया। 2009 में यूपीए सरकार में वह फिर इस पद पर रहे।

देव आनंद- पद्म भूषण

देव आनंद उर्फ धर्मदेव पिशोरीमल आनंद का जन्म 26 सितंबर 1923 को हुआ। वह हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता थे। इनके पिता किशोरीमल आनंद वकील थे। उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इन्होंने कुछ समय के लिए राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला में भी शिक्षा ग्रहण की थी। भारत  सरकार ने देव आनंद को भारतीय सिनेमा के योगदान के लिए पद्म भूषण और दादासाहेब फाल्के पुरस्कारों से सम्मानित किया। इन्होंने कई यादगार फिल्में भी बनाई हैं। तीन दिसंबर 2011 को इनका निधम हो गया।

कैलाश चंद महाजन (पद्मश्री)

चंबा जिले से संबंधित पद्मश्री कैलाश चंद महाजन पेशे से इंजीनियर थे। 1971 की भारत-पाकिस्तान की जंग के दौरान वह पंजाब में अधीक्षण अभियंता के तौर पर कार्यरत थे। इस दौरान उनके सराहनीय कार्यों के लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। चंबा के साल में उनके नाम पर पनविद्युत परियोजना भी है। सेवानिवृत्ति के बाद 1981 में उन्हें हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड का चेयरमैन नियुक्त किया गया। उनके कार्यकाल में पनविद्युत की संभावनाओं के दोहन के सार्थक प्रयास हुए।

इन्हें भी मिला सम्मान

इनके अलावा हिमाचल प्रदेश से प्रशासनिक सेवा के लिए सत्यदेव, जलपुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह को जल संरक्षण, शिक्षा व साहित्य के लिए बरजिंद्र सिंह, साहित्य के लिए डॉ. बैटिना शारदा बॉमर, शिक्षा क्षेत्र में डॉ भाल चंद्र निमाड़े को भी पद्म सम्मान मिल चुका है।

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