हां, एक सपना है जिसे साकार होना है...सपना हिमालयन रेजीमेंट का!

केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर तो हिमालयन रेजीमेंट की अवधारणा से बहुत पहले से परिचित हैं। पंजाब रेजीमेंट डोगरा रेजीमेंट सिख रेजीमेंट सिख लाइट इन्फेंट्री जम्मू-कश्मीर रेजीमेंट जम्मू कश्मीर राइफल्स लद्दाख स्काउट्स की तर्ज पर हिमालय रेजीमेंट भी होनी चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 10:55 AM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 10:56 AM (IST)
हां, एक सपना है जिसे साकार होना है...सपना हिमालयन रेजीमेंट का!
सेना में हिमालयन रेजीमेंट बनाने की मांग बहुत पुरानी है। फाइल

कांगड़ा, नवनीत शर्मा। यकीनन बहुत प्रसन्न हुए होंगे परमवीर मेजर सोमनाथ शर्मा! आखिर कुछ दिन पहले ही उनके गृहराज्य हिमाचल प्रदेश से 16 युवा सेना में अधिकारी बने हैं। भारतीय सैन्य अकादमी के इस दृश्य पर परमवीर धन सिंह थापा मुस्कुराए होंगे कि हिमालय से बहादुरी के कारवां रुके नहीं हैं। परमवीर विक्रम बतरा ने दिल मांगे मोर के अंदाज में कहा होगा, ‘शाबाश शेरो।’ और परमवीर संजय कुमार तो स्वयं देख ही रहे हैं कि जवान देवदार अब भी कितने मजबूत हैं। यह एक साल या एक दिन की बात नहीं है।

यह निरंतरता है..शौर्य की, उत्साह की, देशसेवा के जज्बे की और कुछ कर गुजरने की। कहां से? एक ऐसे प्रदेश से.. जिसकी जनसंख्या, ढाई कानपुर शहर इकट्ठे हो जाएं तो उनकी तुलना में कम पड़ जाएगी। इसलिए आकार को छोड़िए..सैन्य परंपरा को जिस तरह कायम रखा है उसे देखिए। हां, एक सपना है जिसे साकार होना है.. सपना हिमालयन रेजीमेंट का! यह सपना सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार ने देखा था, फिर वीरभद्र सिंह भी इसमें शरीक हुए। जयराम ठाकुर ने संकल्प प्रस्ताव विधानसभा में पारित करवा कर दिल्ली के लिए भेजे, लेकिन अर्जी सुनी नहीं गई है।

हिमाचल प्रदेश को दूसरा घर कहने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते चर्चा चली थी तो जॉर्ज फर्नाडीज ने कहा था, ‘अब प्रदेशों के नाम पर रेजीमेंट नहीं बनतीं।’ कोई बात नहीं, सर माथे! लेकिन हिमाचल ने केवल हिमाचल की बात कब की, आप हिमालय या हिमालयन कर देते! हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और अन्य हिमालयी राज्यों के लिए होगी वह। शौर्य में शामिल होने वाले जवान बढ़ जाएंगे। प्रतिष्ठा एवं पहचान और बढ़ेगी। क्या अब भी यह इतना ही कठिन कार्य है?

बीते मार्च में लोकसभा में एक जानकारी रक्षा मंत्रलय की ओर से दी गई थी। जनसंख्या के आधार पर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की सेना में भागीदारी सर्वाधिक है। देश की जनसंख्या का 16.5 फीसद वहां है और सेना में भागीदारी 14.5 फीसद। पंजाब का भी बेहद सम्मानजनक स्थान है जहां देश की जनसंख्या का 2.3 फीसद है और सेना में भागीदारी 7.7 प्रतिशत। फिर महाराष्ट्र और राजस्थान हैं। हरियाणा भी छठे क्रम पर है जिसकी जनसंख्या प्रतिशत दो से कुछ अधिक, लेकिन सेना में भागीदारी 5.7 प्रतिशत। अब आइए जम्मू-कश्मीर और हिमाचल पर। दोनों राज्यों की जनसंख्या देश की जनसंख्या का क्रमश: 1.01 और 0.57 फीसद है, लेकिन सेना में भागीदारी चार प्रतिशत या उससे अधिक है। बीते सप्ताह ही भारतीय सैन्य अकादमी से अधिकारी बन कर सेना में शामिल हुए 341 युवाओं में से पंजाब के 38, हरियाणा के 32, हिमाचल के 16 और चंडीगढ़ का एक है। यानी कुल अधिकारियों का 25 फीसद केवल संयुक्त पंजाब से मिला। इसमें जम्मू-कश्मीर के 18 अधिकारी भी जोड़ लिए जाएं तो गणित स्वयंसिद्ध है।

जनसंख्या और सैन्य बहादुरी के तमगे भी तो कुछ कहते हैं। अगले माह कारगिल विजय दिवस मनाया जाएगा। हिमाचल ने कारगिल के जख्म जून से ही देखने और सहने शुरू कर दिए थे। कारगिल के 52 शहीद हिमाचल से ही थे। हर तीसरे घर से एक फौजी की परंपरा अब तक है तो इसीलिए, क्योंकि रक्त में है बहादुरी। यह परंपरा एक दिन या एक रात में नहीं बनती। इसके पीछे वजीर राम सिंह पठानिया जैसे पूर्वज हैं जिन्होंने पहले स्वतंत्रता संग्राम से भी कई साल पहले अंग्रेजों को धूल चटाई थी। उससे भी पहले हमीरपुर के जनरल जोरावर सिंह जम्मू-कश्मीर के राजा के गवर्नर और वजीर रहे। न केवल जम्मू के राजा गुलाब सिंह को महाराजा का सम्मान दिलाया, बल्कि 1.30 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र भी भारत में मिलाया था। ये गिलगित-बाल्टिस्तान जनरल जोरावर की ही देन हैं। उसके बाद लाला राम और भंडारी राम जैसे सैनिक हुए जिन्होंने विक्टोरिया क्रॉस पाया। यह बहादुरी ही पहचान है जहां की, वहां एक रेजीमेंट क्यों नहीं? प्रधानमंत्री तो हिमाचल के चप्पे-चप्पे में क्रियाशील रहे हैं। रक्षा मंत्री हिमाचल प्रदेश को अंदर तक जानते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हिमाचली हैं। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर तो हिमालयन रेजीमेंट की अवधारणा से बहुत पहले से परिचित हैं। पंजाब रेजीमेंट, डोगरा रेजीमेंट, सिख रेजीमेंट, सिख लाइट इन्फेंट्री, जम्मू-कश्मीर रेजीमेंट, जम्मू कश्मीर राइफल्स, लद्दाख स्काउट्स की तर्ज पर हिमालय रेजीमेंट भी होनी चाहिए।

वास्तव में हिमाचल प्रदेश लंबे समय से प्रार्थी है। और अब शायद यह कहना चाहता है, ‘मी लॉर्ड! यदि अटल रोहतांग सुरंग तशी दावा, छेरिंग दोरजे, ठाकुर अभय सिंह और महाशय चमन लाल की अर्जी पर आकार ले सकती है तो हिमालयन रेजीमेंट के लिए तो हिमाचल के कई मुख्यमंत्रियों ने कहा है, लिखा है..पक्ष-प्रतिपक्ष ने सर्वसम्मत प्रस्ताव भेजे हैं..क्या आप उन पर विचार नहीं करेंगे? वह भी तब, जब बात अकेले हिमाचल प्रदेश की नहीं, सब हिमालयी राज्यों की है? मेरा क्या है, मेरे बहादुरों के कारवां नहीं रुकेंगे। मैं अपने जवान देश की सेवा के लिए तैयार करता ही रहूंगा।’

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]

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