Coronavirus Outbreak: कोरोना संक्रमण से युद्ध तो जीत जाएंगे लेकिन रणनीति से

सरकार की बड़ी मदद हो सकती है अगर निजी हाथ धन के बजाय जरूरत का सामान दें उस सामान को मरीज के हित में प्रयोग करने के लिए मानव संसाधन भी दें। सरकार को धन देने का अर्थ है मदद में निविदा प्रक्रिया के कारण विलंब करना।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 04 May 2021 11:11 AM (IST) Updated:Tue, 04 May 2021 11:11 AM (IST)
Coronavirus Outbreak: कोरोना संक्रमण से युद्ध तो जीत जाएंगे लेकिन रणनीति से
कोरोना संक्रमण की जांच के लिए अपनी बारी का इंतजार करते मरीज। फाइल

कांगड़ा, नवनीत शर्मा। इस दौर में, जब प्रतिदिन किसी न किसी परिचित, किसी न किसी आत्मीय के प्रस्थान की सूचनाएं आम बात है, मनोबल की परीक्षा जारी है। विचलित करने वाली कतिपय सूचनाओं, दृश्यों, निरंतर बंटते ज्ञान और सक्रिय सलाहों के बावजूद हिमाचल में होना, दिल्ली या अन्य शहरों में होने से कहीं अधिक सुरक्षित होना है। आभार हरियाली! धन्यवाद पहाड़ो! शुक्रिया देवदारो! इसके बावजूद कुछ दृश्य डराते हैं। एक दृश्य देखिएगा। जिस प्रदेश में विवाह समारोह में 20, अंत्येष्टि में भी इतने ही लोगों का शामिल होने का परिस्थितिजन्य एवं र्तािकक नियम है, वहीं कोरोना का टेस्ट करवाने के लिए एक व्यक्ति पंक्ति में खड़ा है। यह दीप है किसी घर का।

करीब 200 व्यक्तियों की पंक्ति है। और यह पंक्ति कवि अज्ञेय की पंक्ति वाली पंक्ति नहीं है जिसमें वह कहते हैं कि ‘इसको भी पंक्ति को दे दो।’ वह टेस्ट करवाने इसलिए आया है, क्योंकि बेटा पॉजिटिव आ चुका है, पत्नी भी पॉजिटिव है। इसे भी दो दिन से बुखार आ रहा है। सभी कह रहे हैं, टेस्ट करवा ही लो। कोई नहीं जानता कि यह संक्रमित है या नहीं। या फिर किसी को संक्रमण दे देगा या किसी से संक्रमण ले लेगा, क्योंकि पंक्ति में खड़ा है। चार घंटे हो गए हैं। बाद में पता चलता है, ‘दो तीन दिन के बाद आइएगा।’ यह दिल्ली के मित्र को फोन करता है और मित्र छूटते ही कहता है, अरे क्या हिमाचल प्रदेश में घर से सैंपल लेने का प्रविधान नहीं है?

स्मरण हो आता है लोकसभा में एक लिखित सवाल का जवाब। 18 सितंबर, 2020 को स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया था कि 2019 के आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में 257 प्राथमिक चिकित्सा केंद्र हैं, पंजाब में 432 हैं और हिमाचल में 606 हैं। पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में 16 प्राथमिक चिकित्सा केंद्र हैं और हिमाचल व उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में क्रमश: 20 और शून्य हैं। याद नहीं कि हिमाचल में कोई बड़े आंदोलन इस बात के लिए हुए हों कि स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारा जाए। जहां मांग होती रही, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र को क्रियाशील करने की घोषणाएं डॉ. यशवंत सिंह परमार के समय से लेकर अब तक होती रहीं। क्रियाशील होना तब संभव होता है जब क्रिया करने के लिए ढांचा भी हो। यानी मानव, मशीन, सामान और धन। जब महामारी क्षीण पड़ जाएगी.. बचे हुए लोगों का दायित्व होगा कि इन पक्षों का अंकेक्षण अवश्य करें।

मानव संसाधन की बात करें तो प्रख्यात हार्ट सर्जन डॉ. देवी प्रसाद शेट्टी की हालिया सलाह हिमाचल प्रदेश को भी माननी चाहिए। नर्सें चाहिए, वेंटिलेटर और उसके संचालन में दक्ष लोग चाहिए। यह सच है कि यह जिम्मेदारी समाज भी ले कि इतना ज्ञान हर व्यक्ति को हो कि वह घर में किसी मरीज को आक्सीजन देने के योग्य तो हो। जिला अस्पताल नाहन में मुख्यमंत्री के सामने जिस प्रकार एक महिला ने अपना दुखड़ा रोया है, वह कुछ कहता है। बेशक, हिमाचल प्रदेश के कई सकारात्मक पक्ष हैं। पहला है हिमाचल प्रदेश होना जहां प्राकृतिक आक्सीजन भरपूर है। शारीरिक गतिविधि जीवन में शामिल है। दूसरा है जनसंख्या कम होना। कुछ और उज्ज्वल पक्ष हैं।

वैक्सीन का संदर्भ लें। भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब के एक अध्ययन के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा अपने पड़ोसी राज्य पंजाब से कहीं आगे है। पंजाब में 45 से 59 आयुवर्ग के लोग कुल जनसंख्या का 13.7 प्रतिशत है। इसमें से केवल 27 फीसद को ही टीका लगा है। 60 से ऊपर वाले कुल जनसंख्या का 12.3 प्रतिशत हैं। हिमाचल में 45 से 59 आयुवर्ग के 14.5 फीसद हैं और इनके 56.4 फीसद को टीका लग गया है। हिमाचल में 60 से ऊपर के 12.2 फीसद लोग हैं जिनमें से 61 प्रतिशत को टीका लग चुका है। जहां तक नकारात्मकता की बात है, हर बात के लिए शासन-प्रशासन को कोसने वाले समाज में भी कम नहीं है। शक्तिपीठ ज्वालामुखी में कोरोना पीड़ित महिला का शव उठाने के लिए घंटों तक जब कोई नहीं आया तो एसडीएम धनवीर ठाकुर और डीएसपी तिलक राज आए। बद्दी में उत्तर प्रदेश के कोरोना संक्रमित कामगार की चिता तहसीलदार मुकेश शर्मा और नगर परिषद के कार्यकारी अधिकारी रणवीर ठाकुर ने तैयार की।

बेशक नालागढ़ में कुछ दिन पहले ही एक शव को कचरा गाड़ी में ढोया गया था। दरअसल, यह कांधों की गुमशुदगी दर्ज करने वाला दौर भी है जब कोरोना के भय ने अपनों को अपनों से दूर कर दिया है। बेशक कई लोग मर रहे हैं पर वे शरीरों की यात्रा समाप्त होने की उदास करने वाली घटनाएं हैं। त्रासदी तो वहां है जहां संवेदनाओं की मृत्यु हो रही है। ज्वालामुखी में तो कांधे नहीं थे दिल्ली में समानुभूति या सहानुभूति के कांधे भी उतर गए। हैरत है कि ऐसे लोग और झुंड भी हैं जिनकी संवेदनाएं विचारधारा के नाम पर इतनी पाषाण और एकांगी हो चुकी हैं कि उन्हें कतिपय लोगों की मौत पर भी हर्ष हो रहा है। बहरहाल, यह समय भी बीत जाएगा। सरकार की बड़ी मदद हो सकती है अगर निजी हाथ धन के बजाय जरूरत का सामान दें, उस सामान को मरीज के हित में प्रयोग करने के लिए मानव संसाधन भी दें। सरकार को धन देने का अर्थ है मदद में निविदा प्रक्रिया के कारण विलंब करना। समर शेष है इसलिए प्रयास बढ़ाने होंगे।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]

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