मंडी संसदीय क्षेत्र का अजीब संयोग, हमेशा सत्‍ता पक्ष में ही बैठा है यहां का सांसद, दूसरी बार हो रहा उपचुनाव

Mandi By Election 2021 69 साल में मंडी संसदीय क्षेत्र में दूसरी बार उपचुनाव हो रहा है। इससे पहले 2013 में उपचुनाव हुआ था। प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद वीरभद्र सिंह ने यह सीट छोड़ी थी। उपचुनाव में वीरभद्र सिंह की पत्नी 1.39 लाख मतों से विजयी हुई थी।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Publish:Tue, 28 Sep 2021 01:18 PM (IST) Updated:Tue, 28 Sep 2021 01:18 PM (IST)
मंडी संसदीय क्षेत्र का अजीब संयोग, हमेशा सत्‍ता पक्ष में ही बैठा है यहां का सांसद, दूसरी बार हो रहा उपचुनाव
69 साल में मंडी संसदीय क्षेत्र में दूसरी बार उपचुनाव हो रहा है।

मंडी, हंसराज सैनी। Mandi By Election 2021, 69 साल में मंडी संसदीय क्षेत्र में दूसरी बार उपचुनाव हो रहा है। इससे पहले 2013 में उपचुनाव हुआ था। प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद वीरभद्र सिंह ने यह सीट छोड़ी थी। उपचुनाव में वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह करीब 1.39 लाख मतों से विजयी हुई थी। वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर उस समय भाजपा प्रत्याशी थे, उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। सांसद रामस्वरूप शर्मा के निधन के बाद अब दोबारा उपचुनाव हो रहा है। इस संसदीय क्षेत्र से कई अजीब संयोग जुड़े हुए हैं। क्षेत्रफल के लिहाज से देश के दूसरे बड़े संसदीय क्षेत्र मंडी से ही लोकतंत्र के चुनावी पर्व का आगाज हुआ था।

यह भी अजब संयोग है कि यहां का सांसद हमेशा सत्ता पक्ष में ही बैठा है। जिस दल का प्रत्याशी यहां से जीता है, दिल्ली में उसी दल की सरकार बनी है। इतिहास के पन्नों को पलटकर देखा जाए तो क्षेत्र की जनता सत्ता में काबिज होने वाले दल को ही वोट देती आई है। क्या इस उपचुनाव में भी इतिहास दोहराया जाएगा या फिर जनता कोई नया गुल खिलाएगी। इस पर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी। 1996 में मात्र 13 दिन के लिए यहां का सांसद विपक्ष में बैठा था।

1951 से 2019 तक 19 आम, मध्यावति व उपचुनाव इस क्षेत्र की जनता ने देखे हैं। 1952 में देश के पहले आम चुनाव में कांग्रेस के टिकट से पंजाब के कपूरथला राजपरिवार की रानी अमृतकौर यहां से सांसद चुनी गई थी। उस समय यहां से दो सांसद चुने गए थे। एक सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी। कांग्रेस के गोपी राम विजयी रहे थे। केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी थी। 1957 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने यहां तत्कालीन मंडी रियासत के राजा जोगेंद्र सेन को चुनाव में उतारा था। 1962 व 1967 में सुकेत रियासत के राजा ललित सेन सांसद चुने गए।

1971 में रामपुर रियासत के राजा वीरभद्र सिंह 71.95 फीसद मत लेकर पहली बार संसद की दहलीज पर पहुंचे थे। उस दौरान भी दिल्ली में सरकार कांग्रेस की ही बनी थी। 1977 में जनता पार्टी के टिकट से गंगा सिंह ठाकुर सांसद बने। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी। 1980 के चुनाव में तीन साल पहले मिली पराजय का बदला लेकर कांग्रेस के वीरभद्र सिंह सांसद बने। 1984 के चुनाव में कांग्रेस के पंडित सुखराम विजयी हुए और सरकार कांग्रेस की बनी।

1989 में यहां भाजपा के महेश्वर सिंह विजयी हुए। केंद्र में भाजपा के समर्थन से वीपी सिंह की सरकार बनी थी। 1991 के चुनाव में महेश्वर सिंह का शिकस्त देकर पंडित सुखराम फिर से संसद में पहुंचे। 1996 में पंडित सुखराम दोबारा विजयी रहे। केंद्र में पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी। लेकिन बहुमत न होने पर वाजपेयी सरकार मात्र 13 दिन ही चल पाई थी। इन्हीं 13 दिनों में यहां का सांसद विपक्ष में बैठा था। इसके बाद केंद्र में कांग्रेस के समर्थन से देवगौड़ा सरकार बनी। 1998 व 1999 में भाजपा के महेश्वर सिंह यहां से विजयी हुए थे।

केंद्र में दोनों बार एनडीए की सरकार बनी। 2004 चुनाव में कांग्रेस की प्रतिभा सिंह सांसद चुनी गई। दिल्ली में यूपीए की सरकार बनी। 2009 में वीरभद्र सिंह सांसद चुने गए। केंद्र में फिर यूपीए की सरकार बनी। प्रदेश का मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद वीरभद्र सिंह ने दिसंबर 2012 में संसद की सदस्यता छोड़ दी। मई 2013 में उपचुनाव हुआ। कांग्रेस की प्रतिभा सिंह विजयी रही। केंद्र में सरकार यूपीए की थी।

2014 के चुनाव में क्षेत्र की जनता मोदी लहर के साथ चली और भाजपा के सांसद रामस्वरूप शर्मा को सांसद चुना। केंद्र में एनडीए की सरकार बनी। 2019 के चुनाव में रामस्वरूप शर्मा रिकार्ड 4.05 लाख मतों से विजयी हुए थे। केंद्र में मोदी सरकार दोबारा बनी। क्षेत्र की जनता देश की हवा का मिजाज देख अपना निर्णय करती आई है। इस बार यहां की जनता इतिहास दोहराएगी या फिर कोई नया जनादेश देगी। सबकी निगाहें इस हाईप्रोफाइल सीट पर टिकी रहेंगी।

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