उपेक्षित वर्ग के मसीहा अौर पिछड़ा वर्ग की आवाज थे चौधरी हरिराम

अन्य पिछड़ा वर्ग के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी हरि राम को महात्मा गांधी लाला लाजपतराय और सर छोटू राम के साथ काम करने का सौभाग्य मिला और उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। 18 जून 1979 को हरि राम ने अंतिम सांस ली।

By Vijay BhushanEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 10:05 PM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 10:05 PM (IST)
उपेक्षित वर्ग के मसीहा अौर पिछड़ा वर्ग की आवाज थे चौधरी हरिराम
अन्य पिछड़ा वर्ग के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी हरि राम का फाइल फोटो। जागरण आर्काइव

अवसर विशेष/पुण्यतिथि

कांगड़ा, मदन लाल सुमन : पहली मार्च, 1899 को ऊना (तत्कालीन कांगड़ा) जिले के पंजावर गांव में बहुत छोटी जोत के किसान चौधरी ऊधो राम के घर एक बालक का जन्म हुआ। सरकारी प्राथमिक विद्यालय, खड्ड में प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद मैट्रिक ऊना से की। पिता ने पढ़ाई की तरफ उसके रुझान को देखा तो किसी तरह लाहौर के दयाल सिंह कालेज में दाखिला दिला दिया। स्नातक के बाद वकालत की पढ़ाई की। उन्हीं दिनों लाहौर में अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। 1925 में 26 साल की उम्र में इस युवक ने चौधरी हरि राम के रूप से होशियारपुर जिला न्यायालय में एक वकील के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया। बाद में यह आवाज अन्य पिछड़ा वर्ग की ताकतवर आवाज बनी।

दोस्तों और पिछड़ा वर्गों के नेताओं के आग्रह पर 1928 में धर्मशाला जिला अदालत में पुन: वकालत शुरू की। उनकी पृष्ठभृमि साधारण थी, इसलिए वह अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ हो रहे व्यवहार को समझते थे। इसलिए उन्होंने सबको एक मंच पर लाने का प्रयास किया और सफल भी हुए। सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी। दलित वर्ग के मामले निश्शुल्क लड़े और न्याय दिलाया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान तत्कालीन वायसराय के साथ बातचीत करने के बाद उन्होंने ब्रिटिश सेना में दलितों की भर्ती के लिए द्वार खोल दिए। चौधरी हरि राम को महात्मा गांधी, लाला लाजपतराय और सर छोटू राम के साथ काम करने का सौभाग्य मिला और उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। पं. जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें समाजसेवा करने और सक्रिय राजनीति में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। 1952 में उन्होंने कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र से एकीकृत पंजाब में चुनाव लड़ा और पंजाब विधानसभा में मंत्री बने।

पंजाब विधानसभा की स्वर्ण जयंती समारोह के अवसर पर उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मरणोपरांत सम्मानित किया। उन्होंने कई जातियों को पिछड़ा घोषित करवाया और जरूरतमंद छात्रों को छात्रवृत्ति दिलाई। डा. वाईएस परमार के मंत्रिमंडल में भी रहे। उन्होंने जमींदारी प्रथा का पुरजोर विरोध किया। 1977 में उन्होंने स्वास्थ्य का हवाला देकर राजनीति छोड़ दी। 1979 में, जब जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को आपातकाल के दौरान आम जनता पर अत्याचार के लिए सलाखों के पीछे भेजा था, चौधरी हरि राम भी धर्मशाला जेल में रहे। शोषित वर्ग के वैध अधिकारों के लिए लड़ाई में उनकी पत्नी रामरखी और स्वजनों का पूरा सहयोग मिला। उनके बड़े बेटे ओम प्रकाश चौधरी खेद व्यक्त करते हैं कि उपेक्षित वर्ग के मसीहा का कोई स्मारक ही नहीं है। 18 जून, 1979 को 'चाचा जीÓ के नाम से प्रसिद्ध चौधरी हरि राम ने अंतिम सांस ली।

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