यह कांस्य पदक मेरे लिए गोल्ड से कम नहीं : चरणजीत सिंह
बच्चों ने कांस्य पदक जीतकर मेरे इस वृद्ध शरीर में एक बार फिर से जान डाल दी। 1964 का ओलंपिक याद करा दिया। मेरे लिए इस बार यह ओलंपिक इसलिए भी महत्वपूर्ण था कि जिस देश में भारत ओलंपिक स्वर्ण जीत चुका था उसी में कांस्य जीता।
ऊना, सतीश चंदन। 'मैच के अंतिम पांच मिनट रह गए थे। सामने पाक की टीम थी। मेरे ऊपर व टीम पर बहुत ज्यादा दबाव था। हमने एक गोल कर दिया था और जैसे-तैसे पाक को शून्य पर रोककर रखना था। हम पाक को उनके पाले में रोकने में सफल रहे और भारत को स्वर्ण पदक मिला। इतना कहते ही पद्मश्री चरणजीत सिंह की आंखों से आंसू छलक उठे और धीरे-धीरे कहना शुरू किया 'बच्चों ने कांस्य पदक जीतकर मेरे इस वृद्ध शरीर में एक बार फिर से जान डाल दी। 1964 का ओलिंपिक याद करा दिया। मेरे लिए इस बार यह ओलंपिक इसलिए भी महत्वपूर्ण था कि जिस देश में भारत ओलिंपिक स्वर्ण जीत चुका था उसी में कांस्य जीता।
90 वर्षीय चरणजीत सिंह अब सेहत साथ न देने के कारण बिस्तर पर ही रहते हैं। टोक्यो ओलंपिक के सभी मैच लेटे हुए ही देखे। जैसे ही टीम इंडिया को कांस्य पदक मिलने की बात देखी तो उनके शरीर में जैसे नई स्फूर्ति आ गई और बिस्तर से उठ खड़े हुए।
अम्ब उपमंडल के मैड़ी में तीन फरवरी, 1931 को जन्मे चरणजीत सिंह ने टोक्यो ओलिंपिक 1964 में इतिहास रचा था। उसका गौरव जिला ऊना को मिला था। हिमाचल के इस खिलाड़ी ने 57 साल पहले अपनी कप्तानी में भारत की झोली में गोल्ड मेडल डालकर हिमाचल का नाम सुनहरी अक्षरों में अंकित करवाया था।
हालांकि चरणजीत कई कार्यक्रमों में कह चुके हैं कि उनका एक ही सपना है कि भारतीय टीम फिर से ओलंपिक में पदक जीते लेकिन पिछले कई ओलंपिक में उनका सपना पूरा नहीं हो सका है। जब भी देश की हाकी टीम ओलंपिक में खेलने जाती है तो उन्हें यही उम्मीद रहती है कि अब शायद टीम जीत जाए।