प्रजा की प्यास बुझाने की खातिर चंबा की रानी ने दे दिया था बलिदान, समाधि स्थल पर बना है मंदिर, हर वर्ष लगता है मेला
Chamba Rani Sacrifice प्रजा की प्यास बुझाने की खातिर रानी सुनयना ने बलिदान दे दिया था। इतिहास बताता है कि रानी के बलिदान देते ही सूखी कूहल एकदम पानी से भर गई और चंबा नगर में पानी का फुहारा फूट गया।
चंबा, संवाद सहयोगी। Chamba Rani Sacrifice, गुड़क चमक भउआ मेघा हो, बरैं रानी चंबयाली रे देसा हो। किहां गुड़कां किहां चम्मकां हो, अंबर भरोरा घने तारे हो। कुथुए दी आई काली बदली हो, कुथुए दा बरसेया मेघा हो। जी हां! चंबयाली व गद्दी भाषा में गाये गए इस गीत के सुर मन को भिगो देते हैं। प्रजा की प्यास बुझाने की खातिर रानी सुनयना ने बलिदान दे दिया था। इतिहास बताता है कि रानी के बलिदान देते ही सूखी कूहल एकदम पानी से भर गई और चंबा नगर में पानी का फुहारा फूट गया। रानी के बलिदान देते ही चंबा की प्रजा ने मार्मिक गीत गया, जिसे सुन सब की आंखों से आंसू बहने लगे थे। आज भी मन को भिगो देने वाले इस गीत को सुनते ही आंखों में आंसू आ जाते हैं। रानी के इसी बलिदान की स्मृति में शहर की जनता उनके प्रति हृदय से कृतज्ञता प्रकट करते हुए सूही मेले को बड़े धूम-धाम से मनाती है।
राजाओं की राजधानी थी चंबा
रावी किनारे 996 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चंबा पहाड़ी राजाओं की प्राचीन राजधानी थी। चंबा को राजा साहिल वर्मन ने 920 ई. में स्थापित किया था। इस नगर का नाम उन्होंने अपनी प्रिय पुत्री चंपावती के नाम पर रखा था। सुंदर एवं साधन संपन्न चंबा नगर में पानी नहीं था।छठी शताब्दी में चंबा की रानी सुनयना ने प्रजा की प्यास बुझाने की खातिर जमीन में दफन हो गई थी। रानी के बलिदान का स्मारक सूही मंदिर के रूप में बन गया। राजा साहिल वर्मन के पुत्र और राज्य के उत्तराधिकारी ने ताम्रपत्र पर अपनी माता का नाम सुनयना देवी लिखा है। पहले यह मेला 15 चैत्र से मासांत तक लगता था लेकिन अब यह तीन दिन ही मनाया जाता है।
रानी के बलिदान देते ही सूखी कूहल में भरा था पानी
कहते हैं कि राजा ने नगर तो बसा लिया, पर चंबा में पीने के पानी की काफी समस्या थी। एक रात राजा को स्वपन आया कि यदि वह स्वयं, रानी या पुत्र की बलि कूहल के निवास स्थान पर दें, तो नगर में पानी की कमी दूर होगी। राजा परेशान हो गए। रानी ने राजा से परेशानी की वजह पूछी तो राजा ने स्वपन की बात बताई। तब रानी ने खुशी से प्रजा की खातिर अपना बलिदान देने का हठ बांध लिया। बलोटा गांव से लाई जा रही कूहल पर रानी को जिंदा दीवार में चिन दिया गया। इस दौरान पूरी घाटी आंसुओं से सराबोर हो गई। कहा जाता है कि जैसे दीवार चिनती गई कूहल मेें भी पानी चढ़ने लग पड़ा।