रोहतांग से मिली राहत पर वाहन चालकों को डरा रहा बारालाचा दर्रा, जानिए क्यों ज्यादा खतरनाक है 16050 फीट ऊंचा सफर
Pass on Manali Leh Road रोहतांग पास से जुड़े लोगों के दर्दनाक किस्से भले ही अटल टनल बन जाने से खामोश हो चुके हैं। लेकिन दर्द की यह दास्तां अब बारालाचा दर्रा से जुड़ती दिख रही है। मनाली-लेह मार्ग पर रोहतांग इतिहास में दर्ज हो चुका है।
मनाली, जसवंत ठाकुर। Pass on Manali Leh Road, रोहतांग पास से जुड़े लोगों के दर्दनाक किस्से भले ही अटल टनल बन जाने से खामोश हो चुके हैं। लेकिन दर्द की यह दास्तां अब बारालाचा दर्रा से जुड़ती दिख रही है। मनाली-लेह मार्ग पर रोहतांग सबसे खतरनाक दर्रों के रूप में इतिहास में दर्ज हो चुका है। यहां न जाने कितने लोगों की सांसों ने बेरहम मौसम के आगे घुटने टेक दिए और सैकड़ों रेस्क्यू ऑपरेशन में न जाने कितने हज़ारों लोगों की जान बचाई गई हो। अटल टनल बन जाने से अब 13050 फीट ऊंचे रोहतांग दर्रा से तो छुटकारा मिल गया है। लेकिन अब 16050 फीट ऊंचा बारालाचा दर्रा लोगों को खून के आंसू रुलाने लगा है।
पिछले कुछ ही दिनों में फंसे एक हज़ार से अधिक लोगों को बचाने के लिए चलाए चार रेस्क्यू ऑपरेशन ने यह साफ़ कर दिया है कि बारालाचा दर्रा रोहतांग से भी ज्यादा खतरनाक साबित होने वाला है। अटल टनल के निर्माण से दुनिया के खतरनाक दर्रों में शामिल रोहतांग दर्रे से तो छुटकारा मिल गया है। लेकिन सीमावर्ती क्षेत्र लेह लद्दाख की राह आसान नहीं हो पाई है।
लेह लद्दाख में बैठे देश के प्रहरियों तक आसानी से पहुंचने व सालभर लेह को मनाली से जोड़े रखने के लिए बारालाचा, तांगलांग ला व लाचुंगला में टनल निर्माण करना होगा। रोहतांग दर्रा अटल टनल बनते ही तीन अक्टूबर 2020 के बाद मानों खामोश सा हो गया है। लेकिन अब बारालाचा दर्रा सभी की जान जोखिम में डाल रहा है। हालांकि इस बार सभी राहगीर भाग्यशाली रहे हैं कि उन्हें लाहुल स्पीति पुलिस व बीआरओ फरिश्ता बनकर बचा रहा है। लेकिन आने वाले समय में बारालाचा दर्रा इस रोहतांग दर्रे से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।
एक महीने के भीतर बीआरओ चार बार बारालाचा दर्रे को बहाल कर चुका है। अब तक ढाई सौ लोगों को बचाया गया है। 13050 फीट ऊंचे रोहतांग के ठीक नीचे लाहुल की ओर 18 किमी कि दूरी पर कोकसर गांव है, जबकि कुल्लू की ओर 15 किमी दूर मढ़ी है। दूरसंचार सुविधा होने के चलते हर सम्भव मदद मिल जाती थी तथा विपदा के समय पैदल चलकर भी रेस्क्यू हो जाता था। लेकिन परिस्थितियों के हिसाब से बारालाचा दर्रा रोहतांग की तुलना में अधिक जोखिमभरा है।
मीलों दूरी तक न कोई बस्ती है न ही दूरसंचार सुविधा है। दारचा व पटसेउ से लेकर लेह के उपसी तक कोई दूरसंचार व्यवस्था नहीं है। मात्र बीआरओ व पुलिस के सरचू में अस्थायी कैम्प ही राहगीरों का सहारा है। बीआरओ कमांडर कर्नल उमा शंकर ने बताया टनलों का निर्माण ही इन समस्याओं का समाधान है।