बैजनाथ शिवरात्रि की अलग ही रंगत, 11 मार्च से शुरू होगा उत्सव

राज्य स्तरीय शिवरात्रि महोत्सव को लेकर बैजनाथ में तैयारियां शुरू हो गई है। हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के बैजनाथ में इतिहासिक शिव मंदिर स्थापित है। इस मंदिर की कला शैली अद्भुत है। ऐसे में यहां शिवरात्रि का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है।

By Richa RanaEdited By: Publish:Fri, 19 Feb 2021 01:59 PM (IST) Updated:Fri, 19 Feb 2021 02:01 PM (IST)
बैजनाथ शिवरात्रि की अलग ही रंगत, 11 मार्च से शुरू होगा उत्सव
राज्य स्तरीय शिवरात्रि महोत्सव को लेकर बैजनाथ में तैयारियां शुरू हो गई है।

मुनीष दीक्षित, बैजनाथ। राज्य स्तरीय शिवरात्रि महोत्सव को लेकर बैजनाथ में तैयारियां शुरू हो गई है। हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के बैजनाथ में इतिहासिक शिव मंदिर स्थापित है। इस मंदिर की कला शैली अद्भुत है। ऐसे में यहां शिवरात्रि का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है।

इस बार 11 मार्च को शिवरात्रि महोत्सव शुरू होने जा रहा है। हालांकि कोरोना महामारी के कारण इस बार अधिक कार्यक्रम नहीं होंगे। लेकिन मंदिर की शोभा यात्रा, हवन यज्ञ और मंदिर को फूलों से सजाने का कार्य को लेकर तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। बैजनाथ शिवरात्रि का अपना एक अलग महत्व है। ऐसा माना जाता है कि यहां पर स्थापित शिवलिंग वही शिवलिंग है, जिसे लंकापति रावण भगवान भोले शंकर की तपस्या करने के बाद लंका ले जा रहे थे। लेकिन एक शर्त को पूरा न करने के कारण यह शिवलिंग यही स्थापित हो गया था। यहां दशकों से शिवरात्रि का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है।

धौलाधार पर्वत श्रृंखला की तलहटी में स्थित शिव मंदिर बैजनाथ की स्थापना 12 वीं शताब्दी में मयूक और आहूक नाम के दो व्यापारी भाइयों ने की थी। यह मंदिर बेहद प्राचीन है और इसकी कला शैली काफी आकर्षक है। मंदिर के पुजारी सुरेंद्र आचार्य बताते हैं कि यहां साक्षात भोलेनाथ और मां पार्वती का निवास है। शिवरात्रि के दिन यहां पर पूजा अर्चना का विशेष महत्व माना जाता है। वर्ष 1905 में जिला कांगड़ा में आए भूकंप में यह मंदिर सुरक्षित बच गया था। शिवरात्रि के दौरान यहां पर कई क्षेत्रों के देवी देवताओं के रथ आते हैं और मंदिर प्रांगण में विशेष हवन का आयोजन किया जाता है।

बैजनाथ से जुड़े कई रहस्य भी हैं, इनमें एक सबसे बड़ा रहस्य बैजनाथ में दशहरा नहीं मनाया जाना है। ऐसा कहा जाता है कि लंकापति रावण ने इसी स्थान पर भगवान भोले शंकर की तपस्या की थी। ऐसे में यहां जो भी दशहरे के दिन रावण के पुतले का दहन करता था उसकी मौत हो जाया करती थी। 70 के दशक के बाद यहां दशहरा मनाने की परंपरा बंद कर दी गई थी। यहां शिवरात्रि के अलावा तारा रात्रि महोत्सव, मकर सक्रांति व अन्य कोई त्यौहार भी धूमधाम से मनाया जाते हैं।

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