कभी विशेष पहचान रखने वाला राजा का तालाब आज बदहाल हालत में, सरकार खामोश

कस्बा राजा का तालाब में धमेटा रोड पर स्थित यह ऐतिहासिक तालाब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। अपने नाम की भांति ही यह राजा का तालाब कभी अपनी पहचान विशेष पहचान रखता था। तालाब की हालत नहीं सुधर सकी।

By Richa RanaEdited By: Publish:Wed, 08 Sep 2021 12:01 PM (IST) Updated:Wed, 08 Sep 2021 12:01 PM (IST)
कभी विशेष पहचान रखने वाला राजा का तालाब आज बदहाल हालत में, सरकार खामोश
राजा का तालाब की हालत आज भी नहीं सुधर सकी है।

राजा का तालाब, संवाद सूत्र। कस्बा राजा का तालाब में धमेटा रोड पर स्थित यह ऐतिहासिक तालाब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। अपने नाम की भांति ही यह राजा का तालाब कभी अपनी पहचान विशेष पहचान रखता था। इस क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की सरकार तथा कई राजनेताओं के द्वारा घोषणाएं तो कई की गई, मगर पर्यटन विभाग की लापरवाही इस कदर है कि सुंदर और स्वच्छ दिखने वाला यह तालाब आज चौतरफा गंदगी से भरा हुआ है। करीब सौ साल पहले अस्तित्व में आए इस राजा के तालाब की कहानी बड़ी अजीबोगरीब है। तालाब की हालत नहीं सुधर सकी।

चार भाइयों ने मिलकर बनाया था तालाब

सन 1928 में चारभाईयों ने मिलकर इसे बनाया तालाब था। ऐसा बजुर्ग लोगों का मत रहा है। स्थानीय लोगों तथा बुजुर्गों के कहे अनुसार 1928 में इलाका वासियों को आस- पास के लोगों को पानी की बहुत किल्लत ओर परेशानी थी। यहां मौजूद तालाब बाली जगह पर एक बहुत बड़ा गड्ढा हुआ करता था, बरसात के दिनों में अक्सर यहां पानी जमा हो जाया करता था। स्थानीय लोग इस पानी के साथ अपना जीवन यापन करते थे। इस पानी का इस्तेमाल बह अपना खाना पकाने ओर मवेशियों को पिलाने के लिए करते थे।

इस क्षेत्र के साथ लगते गांव नेरना के सवर्ण जाति के रजवाड़े हुआ करते थे। उन चारों भाइयों के नाम से भी तालाब काफी प्रसिद्ध है। एक दिन मथुरा दास, राजू, गुजर मल, और नकोदर ने लोगों को ऐसा करते देख तथा पानी की किल्लत होने के कारण उस छोटे से गड्ढे को खोदकर तालाब बना दिया, जिससे लोगों की पानी की समस्या का हल तो हो गया, मगर आधुनिक युग में बदलते समय के अनुसार तथा बढ़ती जनसंख्या के अनुसार ये जलसंसाधन आज गंदगी से भरे हुए हैं। राजू के नाम से बने इस तालाब वर्तमान में गंदगी की भरमार है। इस तालाब के किनारे से लेकर बीच तक खरपतवार पौधे इस प्रकार से हैं,मानों की यहाँ कभी सफाई हुए ही नहीं है। तालाब के साथ लगते राजा के तालाब में मौजूद दुकानों तथा बाजार की सारी गंदगी तालाब में फेंकी जाती थी।

2003 में हुअा मछली पालन शुरू

सन 2003 में तालाब में मछली पालन शुरू हुआ था। 2003 में मत्स्य विभाग द्वारा ग्राम पंचायत नेरना कि दो लाख रुपए की धनराशि दी गई जिससे तालाब की सही तरीके से साफ सफाई करवाई गई और ठेकेदार को मछली पालने के लिए सौंप दिया गया। उस दौरान अचानक तालाब की मछलियां मरना शुरू हो गई और ठेकेदार ने घाटे का सौदा बताकर अपना हाथ मत्स्य पालन से पीछे हटा लिया। कभी इस तालाब में कमल के फूल ही नहीं खिलते थे,बल्कि मछलियां इस कदर बड़ी होती थी कि वह सडक के ऊपर भी पहुंच जाती थी। सरकारें प्राकृतिक धरोहरों का सरंक्षण किए जाने को लेकर करोड़ों रुपये ऐसे तालाबों पर आंखें बंद करके ख़र्च करती जा रही हैं।

लाखों खर्चे पर नहीं हुअा तालाब का जीर्णोद्धार

लाखों रुपये खर्च किए जाने बाबजूद भी न तो ऐसे ऐतिहासिक तालाबों का अभी तक जीर्णोद्धार हो पा रहा है। यही नहीं तालाबों के आसपास की जमीनों पर नजायज कब्जे किए जा रहे जिस तरफ कोई ध्यान नहीं देना चाहता है। तालाबों के सिकुड़ते आकार को लेकर भू राजस्व भीभाग ने फाइलें तो जरूर बनाई,मग़र अतिक्रमणकारियों खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कि गई है।पंचायत प्रतिनिधि भी बोट बैंक की राजनीति चलते ऐसे ऐतिहासिक तालाबों को अतिक्रमणकारियों से नहीं छुड़ा पा रहे हैं।

आज जरूरत तालाबों के मिटते वजूद को बचाने की जिससे हम आने बाली पीढ़ी को बता सकें कि कभी आपके पूर्वज ऐसे प्राकृतिक जल स्त्रोतों पर पूरी तरह निर्भर थे। उधर नेरना पंचायत उप प्रधान राज कुमार से इस बारे में बात करने की कोशिश की गई, मग़र उनकी तरफ से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया। गौरतलब की राज कुमार नेरना पंचायत में पिछले पंद्रह वर्षो से पंचायत प्रधान रहते आए हैं। इस बार प्रधान पद की सीट आरक्षित होने की बजह से भी वह उप प्रधान पद पर काबिज होने में कामयाब बने हैं।

chat bot
आपका साथी