Sukhram Family Politics: आश्रय को नहीं मिल रहा आश्रय, भाजपा भाव नहीं दे रही तो कांग्रेस ने भी किया दरकिनार
Sukhram Family Politics खेल चाहे शतरंज का हो या फिर सियासत का। जल्दबाजी में चली चाल से मोहरे कभी भी मात खा सकते हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम के परिवार ने भी जल्दबाजी में एक ऐसी ही सियासी चाल चली थी
मंडी, हंसराज सैनी। कहावत है कि शतरंज व सियासत में चाल हमेशा सोच समझ कर चलनी चाहिए। खेल चाहे शतरंज का हो या फिर सियासत का। जल्दबाजी में चली चाल से मोहरे कभी भी मात खा सकते हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम के परिवार ने भी जल्दबाजी में एक ऐसी ही सियासी चाल चली थी,जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता था। चाल निशाने पर स्टीक बैठी थी। सुखराम परिवार को राजनीतिक तौर पर इसका फायदा हुआ था। भाजपा की लहर में सदर हलके से अनिल शर्मा की चुनावी नाव सुरक्षित ठिकाने लग गई थी।
जयराम सरकार में ऊर्जा मंत्री की कुर्सी मिली थी। क्षेत्र की जनता ने भी सुखराम परिवार के दल बदलने को लेकर ज्यादा मलाल नहीं किया था। भाजपा को जिला में एक ब्राह्मण नेता व सदर हलके की जनता को दोबारा मंत्री पद मिल गया था। 2019 का लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही सुखराम परिवार की महत्वाकांक्षा एक बार फिर हिलोरे मारने लगी। टिकट रुपी महत्वाकांक्षा में दूसरी बार चली सियासी चाल उल्टा गले पड़ गई। टिकट को लेकर भाजपा नेतृत्व के साथ कई माह तक वाकयुद्ध चलता रहा।
रामस्वरूप शर्मा को टिकट मिला तो 2017 के विधानसभा चुनाव की तरह पलटी मार कांग्रेस में वापसी कर टिकट का भी जुगाड़ कर लिया। बेटे आश्रय शर्मा व पिता सुखराम की इस सियासी चाल से अनिल शर्मा धर्मसंकट में फंस गए। विवाद बढ़ा तो उन्हें मंत्री पद छोडऩा पड़ा। चुनावी नतीजा एक तरफा रहा। चार लाख से अधिक मतों से हुई पराजय ने सुखराम परिवार की सियासी जमीन पूरी तरह से हिला कर रख दी। आया राम गया राम का ठपा लग गया। भाजपा ने अनिल शर्मा से पूरी तरह किनारा कर लिया।
रामस्वरूप शर्मा के निधन के बाद सभी ऐसी उम्मीद लगाए बैठे थे कि आश्रय शर्मा ही कांग्रेस उम्मीदवार होंगे। पहले उपचुनाव में उतरने के लिए आनाकानी करते रहे,जैसे ही संगठन की तरफ से पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह का नाम आगे बढ़ाया। सुखराम परिवार ने फिर से सियासी पैंतरेबाजी शुरू कर दी। कांग्रेस ने पूरी तरह दरकिनार किया तो भाजपा से मोल भाव शुरू कर दिया। भाजपा नेतृत्व की तरफ से कोई भाव न मिलने से सुखराम परिवार अब पूरी तरह से हाशिये पर आ गया है। बाप बेटा भविष्य में एक ही दल में रहने का राग कई दिनों से अलाप रहे हैं। जनता को यह राग भी नहीं भा रहा है।