केसर और हींग की कृषि तकनीकें बनाएंगी आर्थिक रूप से मजबूत, छह जिलों में उत्‍पादन की तैयारी

Saffron and Asafoetida Farming सीएसआइआर-आइएचबीटी पालमपुर में केसर व हींग की उत्पादन तकनीक पर कृषि विभाग हिमाचल प्रदेश के कृषि अधिकारियों के लिए पांच दिवसीय दक्षता विन्‍यास कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम में हिमाचल के चंबा कांगड़ा किन्नौर कुल्लू लाहुल स्पीति और मंडी जिला के बारह अधिकारियों ने प्रतिभागिता की।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 11:56 AM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 11:56 AM (IST)
केसर और हींग की कृषि तकनीकें बनाएंगी आर्थिक रूप से मजबूत, छह जिलों में उत्‍पादन की तैयारी
सीएसआइआर-आइएचबीटी पालमपुर में केसर व हींग की उत्पादन तकनीक पर दक्षता विन्‍यास कार्यक्रम हुआ।

पालमपुर, संवाद सहयोगी। Saffron and Asafoetida Farming, सीएसआइआर-आइएचबीटी पालमपुर में केसर व हींग की उत्पादन तकनीक पर कृषि विभाग हिमाचल प्रदेश के कृषि अधिकारियों के लिए पांच दिवसीय दक्षता विन्‍यास कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम में हिमाचल के चंबा, कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लू, लाहुल स्पीति और मंडी जिला के बारह कृषि अधिकारी विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि विकास अधिकारी और कृषि विस्तार अधिकारियों ने प्रतिभागिता की। संस्थान के निदेशक डाक्‍टर संजय कुमार ने कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य में कृषि से संपन्न योजना, के तहत केसर एवं हींग पर परियोजनाओं को वित्त पोषित किया है।

सीएसआइआर हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर हिमाचल प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के सहयोग से प्रदेश में इस परियोजना को लागू कर रहा है। संयुक्त परियोजना के सफल क्रियान्वयन के लिए कृषि अधिकारियों एवं किसानों की क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।

इस गतिविधि को जारी रखते हुए हिमाचल प्रदेश के गैरपारंपरिक क्षेत्रों में केसर एवं हींग की सफल खेती हेतु समय-समय पर किसानों के प्रक्षेत्रों एवं सीएसआइआर आइएचबीटी में प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने हिमाचल प्रदेश को केसर एवं हींग का प्रमुख उत्पादक राज्‍य बनाने के अपने संकल्प को भी दोहराया। उन्होंने कृषि अधिकारियों को केसर एवं हींग की खेती के प्रत्‍येक क्षेत्र में संस्‍थान की टीम  के सहयोग का आश्वासन भी दिया।

डाक्‍टर राकेश कुमार वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम समन्वयक दक्षता विन्‍यास कार्यक्रम ने देश की अर्थव्यवस्था के लिए मसाला फसलों, केसर और हींग के उत्पादन के महत्व के बारे में चर्चा की। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में संस्थान के संकाय सदस्यों द्वारा कृषि तकनीक, बुवाई, स्थल चयन, मिट्टी के नमूने, पौधारोपण, पौधारोपण तकनीक, पोषक तत्व प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, कीट प्रबंधन, कटाई, भंडारण, पैकेजिंग और केसर व हींग के उत्तक संवर्धन तकनीकों पर जानकारी प्रदान की। प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में केसर की वार्षिक मांग लगभग 100 टन है, जबकि जम्मू और कश्मीर में केवल 6.7 टन का उत्पादन होता है जो देश की मांग आपूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं है।

अतः ईरान व अफगानिस्तान जैसे देशों से इसका आयात किया जाता है। इन फसलों के आयात को कम करने के लिए इसकी खेती के लिए वैकल्पिक स्थलों का चयन और कृषि अधिकारियों व किसानों को प्रशिक्षित करने पर बल दिया गया है।

वर्तमान में केसर केवल जम्मू कश्मीर के पंपोर और किश्तवाड़ क्षेत्र में उगाया जा रहा है। डॉ. अशोक कुमार परियोजना अन्वेषक ;हींग परियोजना, ने बताया कि इसी प्रकार अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान से 1540 टन हींग आयात करने के लिए देश प्रति वर्ष लगभग 942 करोड़ रुपये खर्च करता है। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आवशयक है कि इन मसाला फसलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त क्षेत्रों में इनकी खेती की जाए। नवंबर 2020 में राज्य सरकार द्वारा कृषि से संपन्नता योजना, के तहत केसर और हींग की खेती की शुरुआत की गई।

उद्घाटन कार्यक्रम में डॉ. दिगविजय संयुक्त निदेशक कृषि विभाग हिमाचल प्रदेश ने भी वर्चुअल रूप से भाग लिया। उन्होंने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए विश्वास व्यक्त किया कि प्रतिभागी इन फसलों की सफल खेती के लिए आवश्यक तकनीकों से संबंधित ज्ञान प्राप्त करेंगे। उन्होंने अधिकारियों और किसानों के लाभ के लिए इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करने के लिए सीएसआइआर आईएचबीटी का आभार प्रकट किया।

पांच दिवसीय कार्यक्रम में कृषि अधिकारियों को केसर व हींग की उन्नत कृषि तकनीक, गुणवत्ता विश्लेषण, जैविक तथा अजैविक स्ट्रैस प्रबंधन एवं फसलौपरांत परक्रामण एवं भंडारण के बारे में व्यावहारिक प्रदर्शन के माध्यम से जानकारी दी गई। अधिकारियों को केसर एवं हींग की ऊतक संवर्धन तकनीकों से भी रूबरू कराया गया एवं उसका व्यावहारिक अनुभव भी दिया गया। कार्यक्रम का समापन समारोह में निदेशक हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर डाक्‍टर संजय कुमार ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र देकर किया।

निदेशक ने समापन सत्र में कृषि अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा की हिमाचल प्रदेश को केसर एवं हींग का अग्रणी निर्माता बनाना ही इस परियोजना का उद्देश्य है। केसर एवं हींग का अधिक से अधिक उत्पादन इस क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने हेतु अति आवश्यक है। उन्होंने आगे कहा की की इस परियोजना को सफल बनाने में कृषि अधिकारियों का अहम भूमिका रहेगी। उन्होंने प्रतिभागियों को पूरे सहयोग का आश्वासन दिया तथा आह्वान किया कि केसर और हींग की अच्छी कृषि पद्धतियों का विस्‍तार अपने क्षेत्रों में करें ताकि किसानों को आत्‍मनिर्भर बनाया जा सके। ड़ा सनतसुजात सिंह, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं विभागाध्यक्ष कृषि प्रौद्योगिकी प्रभाग, ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया एवं इस परियोजना की सफलता की कामना की।

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