सर्वेक्षण में आया सामने, मई में कोरोना से मरने वाले 107 मरीजों ने नहीं ली थी वैक्सीन की एक भी डोज
प्रदेशभर में कोरोना महामारी ने डेढ़ साल से अपना कहर बरपाया है। हजारों लोग अभी तक जान गंवा चुके हैं और हजारों परिवारों ने अपनों को खोया है। डाक्टरों का मानना है कि महामारी के बीच में वैक्सीन एक अहम हथियार साबित हो रहा है।
रामेश्वरी ठाकुर, शिमला। प्रदेशभर में कोरोना महामारी ने डेढ़ साल से अपना कहर बरपाया है। हजारों लोग अभी तक जान गंवा चुके हैं और हजारों परिवारों ने अपनों को खोया है। डाक्टरों का मानना है कि महामारी के बीच में वैक्सीन एक अहम हथियार साबित हो रहा है।
आइजीएमसी के कार्डियोलाजी विभाग की ओर से किए गए सर्वे के अनुसार मई में मरने वाले 113 में से 107 मरीजों ने वैक्सीन की एक डोज भी नहीं लगाई थी और वैक्सीन लगने के बाद मरने वाले मरीज महज छह थे। इससे साबित हो रहा है कि वैक्सीन कुछ हद तक मरीज गंभीर होने की स्थिति से बच सकता है।
सर्वे के अनुसार इन 113 मरीजों में 40 साल से कम उम्र में 14.29 जबकि 50 से 60 साल के बीच 26 फीसद मरीजों ने जान गंवाई है। हालांकि यह मरीज कोरोना के साथ अन्य बीमारी से भी पीडि़त थे। सर्वे के मुताबिक अधिकतर मरीजों की मौत अस्पताल पहुंचकर महज तीन दिन के भीतर हुई है। इससे स्पष्ट हुआ है कि मरीज अस्पताल देरी से पहुंचे और गंभीर स्थिति में आकर उन्हें बचाने की उम्मीद कम रही। यह सर्वे चार से 27 मई के बीच किया गया है। इस दौरान अस्पताल में करीब 322 मरीज दाखिल थे।
ग्रामीण क्षेत्रों के 54.55 और शहरी क्षेत्रों के 45.55 फीसद लोगों में संक्रमण देखा गया। इसमें 42.86 महिलाएं और 57.14 फीसद पुरुष शामिल थे। यह सर्वे कार्डियोलाजी विभाग के विशेषज्ञ डॉक्टर राजीव मरवाह की अध्यक्षता में किया गया है।
डायबिटीज सहित बीपी को नियंत्रण में रखना बेहद जरूरी
विशेषज्ञ डाक्टर राजीव मरवाह का कहना है कि मई में दाखिल मरीजों में दाखिले से पहले हफ्ता दस दिन से लेकर कोरोना के लक्षण थे। अधिकतर मरीजों की मौत कोरोना के साथ डायबिटीज व किडनी रोगों के कारण हुई गंभीरता के चलते हुई। उनका कहना है कि डायबिटीज, बीपी जैसे लंबे समय तक चलने वाले रोगों को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है क्योंकि ऐसे मरीजों की इम्यूनिटी कम रहती है और कोरोना संक्रमण उनकी स्थिति और गंभीर कर देता है। साथ ही लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लगवाना सुनिश्चित करना होगा ताकि संक्रमण से बचाव हो सके। उन्होंने कहा कि आमतौर पर लोग कोरोना के खौफ में अस्पताल आने से डरते हैं। हालत गंभीर होने पर अस्पताल का रूख करते हैं ऐसे में मरीज को बचाना बेहद मुश्किल होता है।