Himachal Panchayat Election: हिमाचल के पंचायत चुनाव में जनता ने नए लोगों से जाहिर की अपेक्षाएं

हिमाचल प्रदेश के पंचायत चुनाव में जनता ने नए लोगों से अपेक्षाएं जाहिर की हैं। यहां कई स्थानों पर नए चेहरों ने स्थापित चेहरों पर वरीयता पाई है। ग्रामीण संसद के लिए मतदान करने के बाद शिमला के ठियोग में भेखलटी मतदान केंद्र के बाहर महिला शक्ति। जागरण आर्काइव

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 21 Jan 2021 11:37 AM (IST) Updated:Thu, 21 Jan 2021 11:37 AM (IST)
Himachal Panchayat Election: हिमाचल के पंचायत चुनाव में जनता ने नए लोगों से जाहिर की अपेक्षाएं
गांवों में बसते असली भारत की सेवा नए लोग अवश्य करेंगे, ऐसी उम्मीद है।

कांगड़ा, नवनीत शर्मा। सितारे केवल वही नहीं होते जो चमकते दिखाई देते हैं, गौर से देखने और अवसर उत्पन्न होने की बात है, सितारों के आगे भी सितारे होते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के सात सितारे जब किसी न किसी कारण से बाहर थे, तो नए सितारों ने अपनी चमक इस तरह बिखेरी कि उन्होंने ब्रिसबेन के गाबा में अमिट इतिहास लिख दिया। चुनौतियां कई थीं, जो प्रेरणा बन गईं। रिषभ पंत ऐसा और इतना तपे कि सोना बन गए। छोटी उम्र के अन्य नए सितारों में ऐसे भी हैं, जिन्होंने उम्र के 22 साल भी पूरे नहीं किए हैं।

यह घटनाक्रम नए लोगों से अपेक्षा करने की सार्थकता को साबित करता है। संयोगवश हिमाचल प्रदेश के पंचायत चुनाव में भी जनता ने नए लोगों से अपेक्षाएं जाहिर की हैं। बिलासपुर जिले की साई खारसी पंचायत की नवनिर्वाचित प्रधान जागृति शैल की उम्र है सिर्फ 22 साल। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई कर रही हैं। इसके अलावा, शिमला जिले में लोअर कोटी पंचायत में 22 साल की अवंतिका चौहान प्रधान बनी हैं। चंबा के सिलाघ्राट में 23 साल की रीना भी प्रधान बनी हैं। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के खंड में कल्हणी पंचायत को अब प्रधान के रूप में खीरामणी संभालेंगी, जिन्होंने उम्र के 22 साल भी अभी पूरे नहीं किए हैं। कुल्लू की गड़सा घाटी में पंचायत का नाम है मंझली। यहां 22 साल के रेवती राम प्रधान बने हैं।

चंबा जिले के भटियात खंड की मलूंडा पंचायत ने 21 साल की दिव्य ज्योति को पंचायत प्रधान पद का जिम्मा सौंपा है। शिमला जिले के रामपुर उपमंडल की फांचा पंचायत में भी 21 साल के ललित कश्यप को प्रधान चुना गया है। ऐसा क्यों हुआ, इसके कई कारण हैं, लेकिन फिलहाल जागृति शैल की बात सुनिए। वह कहती हैं, कोरोनाकाल में जब पढ़ाई ऑनलाइन हो रही थी, मैं अपनी पंचायत में गई.. भूमि सुधार का कार्य करवाना था। मुङो यह कह कर टाल दिया गया कि अभी तो सब बंद है, इस योजना को शेल्फ में डालेंगे.. उसके बाद आचार संहिता लागू हो जाएगी, आप अब पंचायत चुनाव के बाद आओ। लेकिन पंचायत के ही दूसरे लोगों ने मुङो बाद में बता दिया कि आपको टाल दिया गया है। सब कार्य ऑनलाइन हो रहे हैं। बस वहीं से चुनौती ले ली।’

बेशक राजनीतिक दल नगर निकायों में संख्याबल को लेकर अपने-अपने आंकड़ों की दलील देते रहें.. बेशक मंडी के सांसद का भाई वार्ड पंच का चुनाव हार जाए.. बेशक मंडलाध्यक्ष चुनाव हार जाएं.. कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के नगर की पंचायत पर भाजपा का कब्जा हो जाए.. बेशक निराशावादी सोच यह कहती रहे कि कुछ नया नहीं हुआ है, पर नया तो हुआ है। पहले चरण के 78 प्रतिशत और दूसरे चरण के 80 प्रतिशत से ऊपर मतदान में कढ़े और तपे हुए चेहरों के बजाय नई कोंपलों को मतदाता ने चुना है। यहां इस सब के पीछे एक शिक्षक की भूमिका में रहा है महामारी का काल। यह वह काल था जब देस-परदेस से कई लोग घरों को आए, पंचायतों की कार्यप्रणाली को देखा, सुविधाओं के स्तर को देखा, पंच कितने परमेश्वर हैं, इसे परखा।

जब शहरों से मोहभंग हुआ, जड़ों ने पुकारा और परिस्थितियों ने भी मूल की तरफ को खदेड़ा, तो नए मतदाताओं ने भी देखा कि कैसे कोई पंचायत तो सभी सुविधाओं से संपन्न है और कहीं गरीबी रेखा इतनी लचीली है कि पात्र के हाथ उसे छू नहीं पाते और कहीं वह अपात्रों के हाथ में पूरी की पूरी आ जाती है। लोगों ने देखा कि कैसे मनरेगा का दैनिक भत्ता 220 रुपये के बजाय 70 रुपये भी रहा। केंद्र और प्रदेश से पूरी सहायता मिलने के बावजूद कई आंगनवाड़ी केंद्रों की सीलन नहीं गई, जबकि वहां भविष्य की पौध को पनपना था। कहीं सीमेंट की बोरियों की धूल इतनी थी कि पंच परमेश्वर जैसा चेहरा दिखा ही नहीं सके। हर बार जो समाज शिकायत करता है कि शराब पिला कर मत लिए जाते हैं, इस बार करीब दस प्रत्याशियों का रोना इस शिकायत के साथ दर्ज है कि मतदाता ने शराब तो रख ली, लेकिन मत नहीं दिए।

वास्तव में जब यही लोग ग्रामीण संसद के गावस्कर, वेंगसरकर या तेंदुलकर बनेंगे, क्योंकि ये ही वाशिंगटन सुंदर, शुभमन गिल या शार्दूल ठाकुर हैं। जो लोग युवाओं के लिए बतौर कहावत यह बच्चों का काम नहीं है’ जैसे शब्द प्रयोग करते हैं, यह उनके लिए जानने का समय है कि कुछ काम बच्चों के लिए ही आसान होते हैं। अब जबकि परिवर्तन का मुहावरा अपवाद के स्थान से उठ कर नियम की ओर आ रहा है, नवनिर्वाचित पदाधिकारियों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इस अपेक्षा और विश्वास पर खरे उतरें। कुछ उच्च शिक्षित हैं और कुछ कम शिक्षित, लेकिन अनपढ़ कोई नहीं है।

पंचायती राज अगर ठीक से काम कर ले तो शासन-प्रशासन को उससे अधिक आवश्यक कार्यो के लिए समय मिलेगा। मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर आने वाली शिकायतों का अंबार कम हो सकता है, अगर स्थानीय निकाय अपने स्तर पर ही ऐसी समस्याप्रधान शिकायतों को निपटा दें। गांवों में बसते असली भारत की सेवा नए लोग अवश्य करेंगे, ऐसी उम्मीद है। उम्मीद का अर्थ है जीवन। आसी उल्दनी ने खूब कहा है : कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है जमाना, वो क्या करे जिसको कोई उम्मीद नहीं हो।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]

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