संस्कारों के निर्माण में मनुष्य के मित्रों का भी अहम योगदान : जयदेव शर्मा

संस्कारों के निर्माण में मनुष्य के मित्रों का भी योगदान रहता है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 23 Sep 2020 07:50 PM (IST) Updated:Thu, 24 Sep 2020 05:16 AM (IST)
संस्कारों के निर्माण में मनुष्य के मित्रों
का भी अहम योगदान : जयदेव शर्मा
संस्कारों के निर्माण में मनुष्य के मित्रों का भी अहम योगदान : जयदेव शर्मा

संस्कारों के निर्माण में मनुष्य के मित्रों का भी योगदान रहता है। मित्रता का संबंध जीवन में पुस्तक की भांति है जो हमें सही मार्ग दिखलाती है। मित्रता के कई अर्थ हैं, उनमें सबसे सच्चा अर्थ है हमें मुश्किल समय में एक-दूसरे का सहायक बनना चाहिए। मित्रता संस्कारों के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि आपके मित्र अच्छे हैं तो आप एक अच्छे संस्कारी व्यक्ति बनेंगे और यदि आपके मित्र किसी प्रकार के दोषों में शामिल हैं तो इसका कहीं न कहीं आप पर भी असर पड़ेगा।

ईश्वर ने मनुष्य को दुर्लभ जीवन दिया है, क्योंकि मनुष्य विवेकशील है। यदि विवेक का प्रयोग करें तो वह अपने इस जीवन का उद्देश्य प्राप्त कर सकता है और यदि वह अपने संस्कारों आदि से भटक जाए तो उसका जीवन नारकीय हो जाता है। वहीं संस्कारयुक्त होने पर समाज का भी विकास साथ में होता है।

जब बच्चा जन्म लेता है तो उसे माता-पिता व समाज का सान्निध्य प्राप्त होता है, तब वह किसी भी प्रकार की उन्नति को प्राप्त कर लेता है। संस्कारी मनुष्य जीवन में हर प्रकार की उन्नति कर सकता है, जबकि संस्कारहीन मनुष्य किसी भी प्रकार के लाभ प्राप्त नहीं कर सकता है। वैदिक या सनातन धर्म में 16 संस्कारों का वर्णन है। 16 संस्कारों का समायोजन जीवन के प्रत्येक महत्वपूर्ण कदम पर उसका मार्गदर्शन करता है।

अब यदि मैं वर्तमान परिपेक्ष में विद्यार्थियों के संदर्भ में कहूं तो आप मान के चलिए यदि हम विद्यार्थी में अच्छे संस्कार रोपित नहीं करेंगे तो उसका जीवन स्वयं नष्ट हो जाएगा। यदि कोई कार्य हम प्रतिदिन करते हैं तो आप देखेंगे बालक वह गुण स्वयं ग्रहण कर लेता है। जो कार्य उसके माता-पिता व गुरुजन अपनी दिनचर्या में करते हैं, बच्चा उसे कहीं न कहीं सीखता जरूर है। हमारे संस्कारों में कल नहीं है। हम स्वयं इस बात का अनुसरण नहीं करते और केवल बच्चों को उसे सिखाने का प्रयास करते हैं तो आप देखेंगे फिर वह संस्कार बालक साधारण रूप से ग्रहण नहीं करता, यदि करता भी है तो वह उससे भटक जाता है।

अनुशासन का संस्कार वह कुंजी है जो जीवन के अन्य संस्कारों को सीखने में आपकी मदद करता है। यदि हम बच्चों में बचपन व उनके विद्यार्थी जीवन से ही अनुशासन के संस्कार का निर्माण करते हैं तो आप देखेंगे कि अन्य संस्कारों को ग्रहण करने में उसे कोई कठिनाई नहीं होती है। यदि मनुष्य अनुशासित जीवन व्यतीत नहीं करता है तो वह कई तरह के दोषों का शिकार हो जाता है। यदि मनुष्य समय का सदुपयोग करता है तो वह स्वयं ही अनुशासित हो जाता है और अनुशासन का दूसरा अर्थ यह भी है कि हम अपने आप पर संयम रखें। साधारण शब्दों में संयम ही अनुशासन का दूसरा नाम है और संयम के साथ समय का ध्यान रखना भी अनुशासन का ही एक मुख्य आयाम है।

अनुशासन का संस्कार मनुष्य के अंदर अपने सभी कार्य योजनाबद्ध तरीके से करने के लिए मनुष्य को एक सही मार्ग दिखलाता है। यदि मनुष्य अनुशासन और सत्य के मार्ग पर चलता है तो उसका जीवन में उन्नति करना निश्चित है। अंत में मैं यही कहूंगा, संस्कार मनुष्य के जीवन का आधार है। यदि मनुष्य संस्कारों पर रहकर अपने जीवन को चलाता है तो वह समाज व स्वयं के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करता है।

जयदेव शर्मा, प्रधानाचार्य डीएवी स्कूल गोहजू।

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