परमात्मा को जानना ही नहीं, मानना भी जरूरी : दीपक
संत निरंकारी सत्संग भवन मुगला में रविवार को साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया। सत्संग का आगाज अवतार वाणी गायन के साथ हुआ। इसके उपरांत मंच पर विराजमान महात्मा दीपक ने अपने विचारों में सतगुरू माता सुदीक्षा सविद्र हरदेव सिंह महाराज के भावों को व्यक्त करते हुए कहा कि इंसान जब तक संसार में मैं की भावना लिए हुए विचरण होगा। तब तक व्यक्ति स्वयं को परमात्मा के असली रूप से नहीं जुड़ पाएगा। परमात्मा से जुड़ने के लिए इसे अपना सर्वस्व परम पिता परमात्मा के आगे न्योछावर करना होगा। उन्होंने कहा कि न केवल परमात्मा को जानना बल्कि परमात्मा की मानना भी जरूरी है। परमात्मा की मानने में तभी आनंद
संवाद सूत्र, मुगला : संत निरंकारी सत्संग भवन मुगला में रविवार को साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया। सत्संग का आगाज अवतार वाणी गायन के साथ हुआ। इसके उपरांत मंच पर विराजमान महात्मा दीपक ने अपने विचारों में सतगुरु माता सुदीक्षा सविद्र हरदेव सिंह महाराज के भावों को व्यक्त करते हुए कहा कि इंसान जब तक संसार में मैं की भावना लिए हुए विचरण होगा। तब तक व्यक्ति स्वयं को परमात्मा के असली रूप से नहीं जुड़ पाएगा। परमात्मा से जुड़ने के लिए इसे अपना सर्वस्व परम पिता परमात्मा के आगे न्योछावर करना होगा। उन्होंने कहा कि न केवल परमात्मा को जानना, बल्कि परमात्मा की मानना भी जरूरी है। परमात्मा की मानने में तभी आनंद है, जब हम परमात्मा को जान लेते हैं। इसीलिए कहा गया है कि पहले जानो फिर मानो। सत्संग के दौरान उन्होंने गुरु के महत्व के बारे में प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अगर परमात्मा को पाने के लिए पहले गुरु का आशीर्वाद जरूरी है। बिना गुरु के आशीर्वाद के परमात्मा को पाना कठिन है। महात्मा ने कहा कि परमात्मा कण-कण में व्याप्त है। इसका बोध पूर्ण गुरु की ओर से ही संभव है, लेकिन परमात्मा के बोध का सही आनंद तभी आता है, जब हम सतगुरु के बताए रास्ते पर चल पाएं। उन्होंने कहा कि सतगुरु का यही संदेश है कि गृहस्थ जीवन में रह कर ही इंसानियत की सेवा करें। दूसरों के दुख बांटे वहीं दूसरों की खुशी में भी सहभागी बने। ईश्वर को वह लोग प्रिय हैं जो इंसानियत से प्यार करते हैं। परोपकारी जीवन जीते हैं और जहां भी मौका मिले दूसरों के हमदर्द बनने के प्रयास में रहते हैं। महात्मा ने कहा कि सतगुरु से परमात्मा को बोध कर हम बह्मज्ञानी अर्थात निरंकारी तो कहलाते हैं, मगर वास्तविक निरंकारी हम तभी कहलाते हैं जब सतगुरु के उपदेश का अनुसरण करते हैं।