अव्यवस्था पर आंसू बहा रहा लम डल धाम

विकास खंड मैहला की पंचायत ब्रेही के दुरकुंड नामक स्थान से करीब 14 किलोमीटर दूर लम डल धाम में अव्यवस्था है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 07 Sep 2021 06:50 PM (IST) Updated:Tue, 07 Sep 2021 06:50 PM (IST)
अव्यवस्था पर आंसू बहा रहा लम डल धाम
अव्यवस्था पर आंसू बहा रहा लम डल धाम

कमल ठाकुर, मैहला

विकास खंड मैहला की पंचायत ब्रेही के दुरकुंड नामक स्थान से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भगवान शिव का पवित्र धाम लम डल प्रशासन तथा सरकार की नजर-ए-इनायत को तरस गया है। मौजूदा सयम में यह पवित्र स्थल हालत पर आंसू बहा रहा है। यहां अव्यवस्था का अंबार होने के बावजूद कृष्ण जन्माष्टमी से राधाष्टमी तक हजारों की तादात में श्रद्धालु पवित्र झील में डुबकी लगाने आते हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने मणिमहेश में पवित्र धाम की बजाय सर्वप्रथम इसी जगह को चुना था। कहते हैं कि जब भस्मासुर वरदान प्राप्ति के पश्चात भगवान शिव को ही भस्म करने के लिए उनके पीछे भागा था तो वे दुरकुंड से पैदल सफर के दौरान इस रमणीय स्थल को देखकर यहां कई महीने तक रुके थे। इसका प्रमाण यहां जगह-जगह बने सात डल देते हैं।

लम डल झील का दायरा मणिमहेश से करीब दोगुना है। कहते हैं एक राक्षसी द्वारा भगवान शिव का ध्यान भंग करने के उपरांत वह यहां से चले गए तथा मणिमहेश जा बसे थे, लेकिन इससे यहां की मान्यता कम नहीं हो जाती। लम डल की धर्मशाला के मैक्लोडगंज से दूरी कम होने के कारण हर वर्ष इस रास्ते यहां हजारों श्रद्धालु आते हैं। लम डल में भगवान शिव के चमत्कार का सबसे बड़ा प्रमाण यह मिलता है कि जो भी श्रद्धालु यहां पर भोग के लिए नारियल या सेब चढ़ाता है, तो यह पानी के बहाव के विपरीत बहता है।

कई बार प्रशासन से मांग किए जाने पर अब तक न तो इस ओर प्रशासन का ध्यान गया है और न ही सरकार का। यदि उक्त पवित्र स्थान पर सरकार व प्रशासन की नजर-ए-इनायत होती है तो निश्चित तौर पर श्रद्धालुओं का यहां पहुंचना पहले से आसान होगा। इससे यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में भी आने वाले समय में इजाफा होगा। लम डल से ऊपर भी दो डल होने की मान्यता

बुद्धिजीवियों का कहना है कि लम डल से ऊपर भी दो अतिरिक्त छोटे डल हैं, जिन्हें पार्वती डल कहा जाता है जो पूर्णतया दूध के समान पानी से भरा हुआ है। इसके अलावा काली डल है, जहां का पानी खून के समान लाल रंग का है। दूध डली तक तो कई गद्दी मवेशियों को लेकर पहुंच गए हैं, लेकिन यहां काली डल में कोई नहीं जा पाया है। बुजुर्ग बताते हैं कि पानी के रंग को देखकर ही इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

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