कार्रवाई करने वाले नहीं मान रहे तो पैमाइश का क्या लाभ

हालांकि पैमाइश में सहारनपुर प्रशासन की ओर से कोई भी शामिल नहीं हुआ। बेहट एसडीएम दिप्त देव यादव कहते हैं कि पैमाइश की सूचना जरूरी आई थी।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 01 Jun 2020 05:20 AM (IST) Updated:Mon, 01 Jun 2020 05:20 AM (IST)
कार्रवाई करने वाले नहीं मान रहे तो पैमाइश का क्या लाभ
कार्रवाई करने वाले नहीं मान रहे तो पैमाइश का क्या लाभ

कर्मचारियों की गिरफ्तारी के बाद बेलगढ़ एरिया में उप्र-हरियाणा सीमा पर पैमाइश के लिए यमुनानगर व सहारनपुर के अधिकारी तैयार हुए। स्थानीय प्रशासन ने पैमाइश का काम पूरा कर दावा किया कि विवादित एरिया हरियाणा का निकला है। हालांकि पैमाइश में सहारनपुर प्रशासन की ओर से कोई भी शामिल नहीं हुआ। बेहट एसडीएम दिप्त देव यादव कहते हैं कि पैमाइश की सूचना जरूरी आई थी। जिस नक्शे से पैमाइश हुई है। वह मान्य नहीं है। हमारे पास वर्ष 1918 का नक्शा है। इससे पैमाइश होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। अब सवाल है कि जब उप्र प्रशासन हाल ही में हुई पैमाइश को स्वीकार नहीं कर रहा है। क्या फिर से वहां का प्रशासन दोबारा से ठेकेदार के कर्मचारियों पर कार्रवाई नहीं करेगा। छछरौली तहसीलदार तुलसीराम तो पैमाइश के बाद बुर्जी लगाने की बात कह रहे हैं। बेहट पुलिस ने आठ लोगों पर हत्या के प्रयास का केस दर्ज किया। मुझे नहीं चाहिए जरूरतमंत को मिले :

एक तरफ तो राशन के लिए खूब हो हल्ला हो रहा है। प्रयास है कि बस किसी तरह सूची में नाम आ जाए। इसके लिए खूब जोर लगाया जा रहा है। कुछ ऐसे लोगों के नाम भी सूची में आ गए, जो पहले से संपन्न है, लेकिन राशन लेने में पीछे नहीं हट रहे। दोनों हाथों से सरकारी राशन लाया जा रहा है। अब ऐसे लोगों के बीच में राम निवास ने एक ऐसा संदेश दिया है कि हर तरफ उनकी प्रशंसा हो रही है। पंचायत सचिव गोपाल उनको राशन का टोकन देने के लिए गए। वह राम निवास की बात सुनकर बहुत प्रभावित हुए। टोकन को यह कहते हुए लौटा दिया कि मेरे पास घर है, गाड़ी और सभी सुख सुविधा है। मैं इस टोकन को नहीं ले सकता। ये ऐसे व्यक्ति को दिया जाए, जिसको इसकी जरूरत है। सचिव लोगों को जागरूक करने के लिए यह कहानी हर जगह सुना रहे हैं।

काम बह भी गए तो नई बात नहीं होगी :

जून माह आ गया। अभी तक बाढ़ बचाव के काम अधर में लटके हुए हैं। 26 साइटों पर 12 करोड़ से ज्यादा का खर्च होगा। पहले सिचाई विभाग का बहाना था कि कोरोना के चलते मोटा पत्थर नहीं मिल रहा है। अब प्रशासन कुछ सख्त हुआ तो पत्थर मिलने लगा। काम भी चल रहा है। पूरा करने का निर्धारित समय 30 जून तय है। हालांकि सभी काम तय समय सीमा तक पूरे हो बड़ी चुनौती है। वहीं, प्रभावित एरिया के लोगों कहते हैं कि बाढ़ बचाव कार्यों का हर साल यहीं हालत रहती हैं। मानसून सीजन से कुछ समय पहले काम शुरू किए जाते हैं। बरसात शुरू होने तक काम पूरे नहीं हो पाते। यमुना नदी में पानी आते ही पूरा खर्च बाढ़ के नाम पर फाड़ दिया जाता है। यदि अधिकारी समय पर काम शुरू करवाएं तो सरकार का पैसा व लोग होने वाली तबाही से बचा सकते हैं। इस बार तो शहर को डूबोने की पूरी तैयारी

मानसून से पहले नालों की सफाई जरूरी है। इसके लिए अलग से बजट और टीम भी है। अधिकारी भी दौरे कर रहे हैं। लेकिन हालतों में सुधार नहीं है। नाले गंदगी से अटे पड़े हैं। जिन नालों पर अतिक्रमण हैं, उसको हटाया नहीं जा रहा। बिना अतिक्रमण हटाए नालों की सफाई संभव नहीं है। अब सवाल है कि अधिकारियों के दौरा का लाभ क्या हो रहा है जब अभी तक नालों की सफाई नहीं हो रही। जगाधरी की आर्मी कैंटीन के पास तो कमाल ही किया हुआ है। पहले प्लाट काटे गए। रास्ता नहीं होने पर नालों पर कब्जा कर उसको छाप दिया गया। अब उसको सड़क के तौर पर प्रयोग किया जा रहा है। मामला नगर निगम के अधिकारियों की जानकारी में भी है, लेकिन उनको डर है कि नाले को कब्जा मुक्त करने की कार्रवाई उन पर भारी न पड़ जाए। क्योंकि सड़क बनाने वाले पूर्व विधायक के नजदीकी जो है।

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