इस बार भी नहीं लग रहा कपालमोचन मेला, बर्तन व्यापारी निराश

इस साल भी कपालमोचन मेला न लगने से केवल धार्मिक संगठनों में ही नहीं बल्कि बर्तन व्यापारियों में भी मायूसी है। हर साल मेले के दौरान चार से पांच करोड़ रुपये के बर्तन बिक जाते थे। मेले में इस बार भी बर्तन नहीं बिकने से इस काम से जुड़े फैक्ट्री संचालकों व दुकानदारों को नुकसान झेलना पड़ेगा। आखिरी समय तक बर्तन व्यापारी इसी उम्मीद में बैठे रहे कि प्रशासन व सरकार मेला लगाने को अपनी मंजूरी देगी।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 28 Oct 2021 05:31 PM (IST) Updated:Thu, 28 Oct 2021 05:31 PM (IST)
इस बार भी नहीं लग रहा कपालमोचन मेला, बर्तन व्यापारी निराश
इस बार भी नहीं लग रहा कपालमोचन मेला, बर्तन व्यापारी निराश

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : इस साल भी कपालमोचन मेला न लगने से केवल धार्मिक संगठनों में ही नहीं बल्कि बर्तन व्यापारियों में भी मायूसी है। हर साल मेले के दौरान चार से पांच करोड़ रुपये के बर्तन बिक जाते थे। मेले में इस बार भी बर्तन नहीं बिकने से इस काम से जुड़े फैक्ट्री संचालकों व दुकानदारों को नुकसान झेलना पड़ेगा। आखिरी समय तक बर्तन व्यापारी इसी उम्मीद में बैठे रहे कि प्रशासन व सरकार मेला लगाने को अपनी मंजूरी देगी। परंतु ऐसा नहीं हुआ। मेले को देखते हुए बहुत पहले कारोबारी बर्तन बनाने की तैयारियों में जुट जाते थे। मेले में आते हैं पांच से छह लाख श्रद्धालु:

कपालमोचन मेले में हर साल नवंबर माह में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पांच दिवसीय राज्यस्तरीय मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली समेत कई राज्यों से पांच से छह लाख श्रद्धालु स्नान व पूजा करने के लिए आते हैं। मेले के दौरान कपालमोचन मेले में अन्य दुकानों के साथ-साथ बर्तनों की भी बड़े स्तर पर दुकानें लगती हैं। जब श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा का स्नान करने के बाद वापस घर लौटते थे तो वह जगाधरी के बर्तन बाजार से बर्तन खरीद कर ले जाते थे। परंतु दो साल से मेला न लगने के कारण बर्तन व्यापारियों व दुकानदारों में निराशा का माहौल है। बर्तन नगरी के नाम से मशहूर जगाधरी :

जगाधरी बर्तन नगरी के नाम से मशहूर है। यहां पर ज्यादातर फैक्ट्री बर्तनों की हैं। जगाधरी में बनाया गया बर्तन देश के कई राज्यों में जाता है। यही बनने के कारण बर्तन सस्ता होता है।

कपालमोचन के सरोवरों में स्नान करने के उपरांत घर लौटते समय श्रद्धालुओं द्वारा बर्तन खरीदने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। मान्यता है कि जो श्रद्धालु यहां से बर्तन खरीदकर घर ले जाते हैं, उनके घर में सुख समृद्धि आती है। यही वजह है कि जगाधरी बस अड्डे से लेकर मटका चौक तक 300 से ज्यादा दुकानें बर्तनों की लगाई जाती हैं। श्रद्धालू चम्मच से लेकर बड़े टब, लोटा, परांत, बाल्टी, पतीली, कटोरी सेट, गिलास सेट, जग, डिनर सेट, प्लेट, कूकर अपने साथ लेकर जाते हैं। दूसरा इन दिनों शादियों के लिए शुभ महुर्त होते हैं। इसलिए शादियों के लिए भी बड़े स्तर पर बर्तन खरीद कर ले जाते थे। 40 हजार लोगों को रोजगार मिलता था : दर्शन लाल खेड़ा

बर्तन कारोबारी दर्शन लाल खेड़ा का कहना है कि मेले के दौरान जगाधरी में करोड़ों रुपये के बर्तन बिक जाते थे। पहले ही कोरोना महामारी की वजह से मेटल कारोबारियों का काम प्रभावित है। अब मेला भी नहीं लगने से उन्हें नुकसान है। मेले के दिनों में 40 हजार से अधिक लोगों को तो रोजगार ही मिल जाता था। बर्तन बनाने के कारोबार से जुड़े व्यापारियों में मेला आयोजित न होने से हताशा का माहौल है। कारोबारियों में निराशा है : देवेंद्र गुप्ता

स्माल स्केल एल्यूमीनियम अनटेंसिल्स के प्रधान देवेंद्र गुप्ता का कहना है कि जगाधरी में ही बर्तन बनाने की 700 से अधिक इकाइयां हैं। मेला न लगने से कारोबारियों में निराशा है। क्योंकि जो बर्तन यहीं बिक जाते थे अब उन्हें दूसरे राज्यों में एक्सपोर्ट करके बेचना पड़ेगा। मेले से बर्तन बनाने वाले से लेकर बेचने वाले दुकानदारों को काफी उम्मीदें होती हैं।

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