भगवान शिव के नेत्र से हुई रूद्राक्ष की उत्पत्ति: रामस्वरूप

श्री गौरी शंकर मंदिर में श्रावण मास के पावन अवसर पर चल रही शिव महापुराण कथा में कथावाचक पंडित रामस्वरूप उपाध्याय ने शिव पूजन में बेलपत्र की महिमा का वर्णन किया। उन्होंने बेलपत्र को साक्षात शिव का स्वरूप बताया। उन्होंने बताया कि शिव के ध्यान की गंभीरता से नेत्रों से भावयुक्त आंसू गिरने से बेलपत्र व बेल वृक्ष का उदय हुआ। बेलपत्र स्वयं शिव का स्वरूप है। नदियों में जैसे गंगा मां का स्थान है उसी प्रकार लिग पार्थिव लिग एवं वृक्षों में विल्व वृक्ष (बेलपत्र वृक्ष) श्रेष्ठ है। बेल के वृक्ष की पूजा करने से श्री लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। धन धान्य की वृद्धि चाहने वाले जन बेल वृक्ष को शहद जल से पूजा करें।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 07:05 AM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 07:05 AM (IST)
भगवान शिव के नेत्र से हुई रूद्राक्ष की उत्पत्ति: रामस्वरूप
भगवान शिव के नेत्र से हुई रूद्राक्ष की उत्पत्ति: रामस्वरूप

संवाद सहयोगी, जगाधरी : श्री गौरी शंकर मंदिर में श्रावण मास के पावन अवसर पर चल रही शिव महापुराण कथा में कथावाचक पंडित रामस्वरूप उपाध्याय ने शिव पूजन में बेलपत्र की महिमा का वर्णन किया। उन्होंने बेलपत्र को साक्षात शिव का स्वरूप बताया। उन्होंने बताया कि शिव के ध्यान की गंभीरता से नेत्रों से भावयुक्त आंसू गिरने से बेलपत्र व बेल वृक्ष का उदय हुआ। बेलपत्र स्वयं शिव का स्वरूप है। नदियों में जैसे गंगा मां का स्थान है, उसी प्रकार लिग पार्थिव लिग एवं वृक्षों में विल्व वृक्ष (बेलपत्र वृक्ष) श्रेष्ठ है। बेल के वृक्ष की पूजा करने से श्री लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। धन धान्य की वृद्धि चाहने वाले जन बेल वृक्ष को शहद, जल से पूजा करें। रूद्राक्ष की महिमा का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि रूद्राक्ष की उत्पत्ति भी भगवान शिव के नेत्रों के जल से हुई है। रूद्राक्ष धारण करने से शिव कृपा एवं अरोग्यता प्राप्त होती है। रूद्राक्ष चौदह मुख तक होते हैं। जो विभिन्न देव रूप है और अनेक कामनाओं को सिद्ध करने वाले मोक्ष पदायता है।

शिव की महिमा से जीव का कल्याण संभव है। सावन मास में शिव का पूजन करने तथा शिव महापुराण का श्रवण करने से श्रद्धालुओं को विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दौरान श्रद्धालुओं को शिव भजनों पर झूमते भी देखा गया। उपाध्याय ने कहा कि कलयुग के प्रभाव की वजह से लोगों में धर्म के प्रति उत्साह का अभाव है, लेकिन शिव पुराण की महिमा के अंतर्गत शिव चरित्र ही सारे पुराणों का तिलक माना गया है। शिव की महिमा से ही जीव का कल्याण संभव है। कथा के दौरान उन्होंने कलयुग की व्याख्या की। साथ ही शिव के साकार तथा निराकार पूजन का विधान भी बताया। उन्होंने कहा कि शिव का साकार रूप चर्तुभूज है, जबकि निराकार रूप पिडी स्वरूप है। सावन मास में विधि विधान से शिव की पूजा अर्चना करने से लोगों को विशेष फल की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि शिव पुराण कथा का श्रवण करने से मात्र से लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं। उन्होंने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि वे शिव की अराधना कर, जीवन को उन्नति के पथ पर अग्रसर करें। शिवलिग पर चढ़ाए गऐ थे 13000 बेलपत्र :

सोमवार को शिवलिग की पूजा अर्चना के दौरान 13000 बेलपत्र अर्पित किए गए। पंडित उपाध्याय ने बताया कि हर रोज शिवलिग को सजाया जाता है। बेलपत्र की गिनती के बाद शिवलिग पर 13000 बेलपत्र अर्पित किए गए।

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