आस्था ही नहीं रोजगार का जरिया भी है कपालमोचन मेला, पांच दिन में होता है 70 करोड़ का कारोबार

तीर्थराज कपालमोचन केवल आस्था का ही केंद्र नहीं है बल्कि इस मेले से हजारों लोगों का रोजगार भी मिलता है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 21 Nov 2018 11:09 PM (IST) Updated:Wed, 21 Nov 2018 11:09 PM (IST)
आस्था ही नहीं रोजगार का जरिया भी है कपालमोचन मेला, पांच दिन में होता है 70 करोड़ का कारोबार
आस्था ही नहीं रोजगार का जरिया भी है कपालमोचन मेला, पांच दिन में होता है 70 करोड़ का कारोबार

जागरण संवाददाता, कपालमोचन : तीर्थराज कपालमोचन केवल आस्था का ही केंद्र नहीं है बल्कि इस मेले से हजारों लोगों का रोजगार भी मिलता है। मेले में कारोबार करने के लिए दुकानदार न केवल हरियाणा बल्कि पंजाब, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश समेत अन्य राज्यों से यहां आते हैं। स्थानीय लोग मेले में पांच दिन तक यदि दुकान लगाते हैं। यदि तीन-चार माह तक परिवार के मुखिया को कोई काम भी न मिले तो वे मेले से इतना कमा लेते हैं कि परिवार का गुजारा आसानी से हो जाता है। जानकारों की माने तो हर साल मेले में 70 करोड़ से अधिक का कारोबार होता है।

125 एकड़ मेले में लगती हैं करीब सात हजार दुकानें

कपालमोचन में हर साल पांच दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। इस बार मेला 125 एकड़ जमीन पर लगाया गया है। मेले में छोटी-बड़ी करीब सात हजार दुकानें लगती हैं। जिन पर पांच दिनों में करोड़ों का कारोबार होता है। यही वजह है कि इस मेले का दुकानदारों व स्थानीय लोगों को बेसब्री से इंतजार होता है। मेले में दुकानों का किराया भी 500 रुपये से लेकर 10 हजार रुपये तक है।

घर तक किराये पर दे देते हैं लोग

मेले से केवल बाहर से आने वालों को ही नहीं बल्कि स्थानीय लोगों को भी अच्छी कमाई हो जाती है। कपालमोचन के आसपास जितने भी घर या दुकानें हैं उनमें से ज्यादातर को श्रद्धालुओं को किराये पर दे दिया जाता है। यहां जगह की इतनी वेल्यू है कि लोगों के कमरों व दुकानों की छत तक किराये पर चढ़ जाती है। यदि किसी व्यक्ति के पास दो मंजिला घर है तो वे मेले के दौरान चौबारे पर शिफ्ट हो जाते हैं। ताकि नीचे के एरिया को किराये पर दिया जा सके। मेले में करोबार का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि जिस पराली को किसान खेतों में आग लगाकर जला देते हैं उसी पराली का एक पूला 10 रुपये में यहां बिकता है।

प्रशासन को हो जाती है 30 से 35 लाख की कमाई

मेले में पंजाब समेत विभिन्न राज्यों से आए श्रद्धालु दिल खोलकर दान करते हैं। दुकानों को ठेके पर देकर, तह बाजारी व मंदिरों में चढ़े दान से ही श्राइन बोर्ड को हर साल 30 से 35 लाख रुपये की आमदनी हो जाती है। इतनी कमानी होने के बावजूद प्रशासन मेले पर ये सारा पैसा खर्च नहीं कर पाता। प्रशासन चाहे तो इस आमदनी को बढ़ा सकता है। मेला परिसर में जगह-जगह विज्ञापन लगाने के लिए साइट बनाई जा सकती हैं। जिन्हें ठेके पर देकर प्रशासन लाखों रुपये की कमाई कर सकता है। वहीं, प्रशासन मेला स्थल में प्लेसमेंट के लिए विभिन्न कंपनियों को आमंत्रित कर सकता है। इससे बेरोजगारों को रोजगार भी मिल सकता है।

किसानों को होती है अतिरिक्त आय

कपालमोचन मेले से स्थानीय किसानों को भी अतिरिक्त आय हो जाती है। क्योंकि जिस जमीन पर मेला लगता है वो किसानों की है। प्रशासन मेले के लिए किसानों से 5000 से 5500 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से किसानों से जमीन अधिग्रहण करता है। किसी किसान की यदि पांच एकड़ जमीन है तो उसे 25 से 28 हजार रुपये की आमदनी महज एक सप्ताह में हो जाती है। दूसरी ओर धान के बाद खेत खाली रहने से भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ जाती है।

बर्तन व्यापारियों की भी चांदी

मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु कपालमोचन में माथा टेकने आता है वो जाते समय बर्तन नगरी के नाम से मशहूर जगाधरी से बर्तन खरीद कर ले जाता है। यही वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा का स्नान करने के बाद श्रद्धालु सीधे जगाधरी में जाते हैं। वहां विभिन्न प्रकार के बर्तन खरीदते हैं। एक दिन में ही व्यापारियों के दो करोड़ से ज्यादा के बर्तन बिक जाते हैं। मेले में भी सैकड़ों दुकानें बर्तनों की लगती हैं। जिन पर हर समय भीड़ देखने को मिलती है।

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