सुन लो राम के मन की बात
नगर निगम के वार्ड सात से पार्षद राम आसरे के मन में बहुत कुछ है। वह कुछ कहना चाहते हैं लेकिन उनके मन की बात को कोई सुन नहीं रहा। सत्ता पक्ष से हैं। इसलिए ज्यादा कुछ कह भी नहीं सकते। इसलिए इंटरनेट मीडिया पर अपने मन की बात कर रहे हैं। उन्होंने लिखा कि प्रधानमंत्री जी आप हमेशा अपने मन की बात करते हैं। कभी दूसरों के मन की बात भी सुन लिया करो।
नगर निगम के वार्ड सात से पार्षद राम आसरे के मन में बहुत कुछ है। वह कुछ कहना चाहते हैं, लेकिन उनके मन की बात को कोई सुन नहीं रहा। सत्ता पक्ष से हैं। इसलिए ज्यादा कुछ कह भी नहीं सकते। इसलिए इंटरनेट मीडिया पर अपने मन की बात कर रहे हैं। उन्होंने लिखा कि प्रधानमंत्री जी आप हमेशा अपने मन की बात करते हैं। कभी दूसरों के मन की बात भी सुन लिया करो। दरअसल कई दिनों से राम आसरे के सुर बगावती हो रहे हैं। हो भी क्यों न। सत्ता में रह कर भी उनके ज्यादा काम नहीं हो पाए। सेक्टर-17 के पाश एरिया में जो रहते हैं। वीआइपी लोगों को वीआइपी सुविधा चाहिए जो राम आसरे अब तक नहीं दे पाए हैं। वार्ड में सड़कें टूटी हैं, सफाई भी नहीं होती। लोग रोजाना पूछते हैं कि उनकी सड़क कब बनेगी। जिसका जवाब राम आसरे नहीं दे पाते।ये बैंक वाले नहीं सुनते राजकीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों व उनके अभिभावकों को बैंकों के मैनेजर व कर्मचारियों ने परेशान कर दिया है। अभिभावक दुखी हो चुके हैं, जो बच्चों को लेकर रोजाना बैंकों में चक्कर काट रहे हैं। उन्हें बस बच्चे का जीरो बैलेंस पर खाता खुलवाना है। वह भी इसलिए क्योंकि स्कूल के अध्यापक ने कहा है। फिर भी बैंकों में खाते खोलने को लेकर उन्हें परेशान किया जा रहा है। 7500 विद्यार्थियों के दस्तावेज बैंकों में फाइलों के नीचे दबे पड़े हैं। कभी स्टाफ नहीं है तो कभी कोई बहाना। डीईओ सतपाल सिंह बैंकों के डीजीएम तक को पत्र लिख चुके हैं। एलडीएम रणधीर सिंह भी खाते खोलने को कह चुके हैं। यानी बैंक एलडीएम के भी काबू नहीं आ रहे। बैंक वालों को जीरो बैलेंस पर खाता खोलने में दिक्कत है, लेकिन दो हजार रुपये में खाता खोलने को तैयार है। फिर पता नहीं कहां से स्टाफ आ जाता है।
अपनी ही छत नहीं बना पा रहा निगम
नगर निगम, जिसके पास जगह की कोई कमी नहीं है। पता नहीं कितनी ही जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है। कब्जा करने वाले मौज कर रहे हैं। परंतु नगर निगम के अधिकारियों को अपने ही कार्यालय के निर्माण के लिए जमीन नहीं मिल रही है। गोबिदपुरा में जमीन देखी थी, लेकिन मामला कोर्ट में चला गया। मार्च 2018 में भवन निर्माण के लिए 28 करोड़ का टेंडर लगाया गया। मुख्यमंत्री ने शिलान्यास भी कर दिया था। जब नगर निगम के अधिकारियों को पता है कि शहर के बीच में कई इतनी जगह नहीं है जहां निगम का भवन बनाया जा सकता हो। फिर क्यों समय बर्बाद किया जा रहा है। अब तो सेक्टर भी निगम के पास है। सेक्टर-18 में बहुत जगह खाली हैं। जो गांव निगम में शामिल किए थे उनकी भी बहुत सी जमीन है। परंतु अधिकारियों की इच्छाशक्ति इसमें बाधा बनती दिख रही है। यमुनानगर को दिलाया प्रदूषित शहर का तमगा
यमुनानगर, जिसके एक तरफ कलेसर नेशनल पार्क है तो साथ ही यमुना नदी व पश्चिमी यमुना नहर का बहता पानी। यहां हरियाली है, प्रकृति का मनोरम दृश्य है। स्कूल, कालेज, अस्पताल, पार्क सब कुछ तो यहां हैं। फिर भी अधिकारियों की सुस्ती के कारण यमुनानगर का नाम देश के टाप 50 सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार हो गया है। रोजाना लोग प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। फैक्ट्रियों की चिमनी से काला धुंआ निकल रहा है। सरेआम कचरा जलाया जा रहा है। इसके लिए आमजन से ज्यादा प्रशासनिक अधिकारी जिम्मेदार हैं। जो न तो प्रदूषण को कम करने के लिए कुछ कर रहे हैं और न ही हवा में जहर घोलने वालों पर कोई कार्रवाई कर पा रहे हैं। कार्रवाई क्यों नहीं करते इसके पीछे भी कोई न कोई कारण जरूर होगा। काला धुंआ अधिकारियों को आइना दिखाने के लिए काफी है। तभी शहर सबसे प्रदूषित शहरों में आ पाया है। प्रस्तुति
राजेश कुमार