फसल अवशेषों को जलाएं नहीं, प्रबंधन करें : डा. गोयल
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दामला में फसल अवशेष प्रबंधन विषय पर किसान जागरूकता प्रशिक्षण का आयोजन किया गया।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर :
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दामला में फसल अवशेष प्रबंधन विषय पर किसान जागरूकता प्रशिक्षण का आयोजन किया गया।
कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ संयोजक डा. एनके गोयल ने फसल अवशेष जलाने के बदले तकनीकी विकल्प चुनने का संदेश दिया। उन्होंने बताया कि आर्थिक रूप से उपयोगी फसल के भाग को ही हम महत्व देते हैं। फसल के बचे हुए भाग को हम आर्थिक रूप से सही न समझ कर उसे नष्ट कर देते हैं। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि फसल अवशेष जलाने से निकलने वाला धुआं मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। गेहूं, गन्ना व धान के अवशेष जलाने से वातावरण में 70 प्रतिशत कार्बन डाइआक्साइड, सात प्रतिशत कार्बन मोनोआक्साइड, 0.66 प्रतिशत मिथेन और 2.09 प्रतिशत नाइट्रस आक्साइड निकलती है। जो मानव स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदेह होती है। इससे मनुष्य और पशुओं में श्वास व त्वचा रोगों को बढ़ावा मिलता है। मृदा की ऊपरी सतह से पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि एक टन पराली जमीन में मिलाने से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, सात किलोग्राम सल्फर, 60-100 किलोग्राम पोटाश तथा 1600 किलोग्राम आर्गेनिक कार्बन प्रति एकड़ तक जमीन को प्राप्त हो जाते हैं। जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के साथ-साथ किसान को आर्थिक लाभ पहुंचाने का भी कार्य करती है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के उप निदेशक डा. जसविद्र सिंह सैनी ने किसानों को सरकार द्वारा चलाई जा रही है विभिन्न प्रकार की स्कीम के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मेरी फसल मेरा ब्योरा पर फसल पंजीकरण अवश्य करवाएं। मेरा पानी मेरी विरासत स्कीम के तहत पानी व मिट्टी संरक्षण का कार्य करें।
डा. अजीत सिंह ने मौसम से जुड़े पहलुओं के बारे में व वातावरण में हो रहे परिवर्तन के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जंगलों की कटाई व अत्यधिक वायु प्रदूषण होने के कारण धरती का ताप संतुलन दिन प्रतिदिन बिगड़ता जा रहा है।