पुरानी बस पर पेंट कर बदल दी जाती सूरत, खामियां नहीं होती दूर, बच्चों की जान से खिलवाड़

प्राइवेट स्कूल संचालक पंजाब और प्रदेश के दूसरे जिलों से पुरानी बसों को कम कीमत पर खरीद कर उनमें छात्रों को घर से लाने और ले जाने का काम कर रहे हैं। पहले से खस्ताहाल इन बसों पर रंग रोगन कर ऐसा बना दिया जाता है कि देखने वाला यही कहेगा कि स्कूल ने बच्चों के लिए नई बस खरीदी है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 06 Dec 2019 06:40 AM (IST) Updated:Fri, 06 Dec 2019 06:40 AM (IST)
पुरानी बस पर पेंट कर बदल दी जाती सूरत, खामियां नहीं होती दूर, बच्चों की जान से खिलवाड़
पुरानी बस पर पेंट कर बदल दी जाती सूरत, खामियां नहीं होती दूर, बच्चों की जान से खिलवाड़

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : प्राइवेट स्कूल संचालक पंजाब और प्रदेश के दूसरे जिलों से पुरानी बसों को कम कीमत पर खरीद कर उनमें छात्रों को घर से लाने और ले जाने का काम कर रहे हैं। पहले से खस्ताहाल इन बसों पर रंग, रोगन कर ऐसा बना दिया जाता है कि देखने वाला यही कहेगा कि स्कूल ने बच्चों के लिए नई बस खरीदी है। आधे से ज्यादा स्कूलों में ऐसा ही हो रहा है, क्योंकि पुरानी बस कबाड़ के भाव मिल जाती है, जिसकी मरम्मत आदि करा कर बसों की खामियों को छिपाया जा रहा है। पासिग के दौरान मिलीभगत कर इन खामियों को जानबूझ कर अनदेखा कर दिया जाता है।

स्कूलों ने बंद कर रखे बसों के मीटर

करीब छह सौ बसें प्राइवेट स्कूलों इस वक्त सड़कों पर चल रही हैं। इन बसों को कंडम होने से बचाने के लिए स्कूलों ने इनके मीटर बंद करवा रखे हैं। क्योंकि स्कूल बस किलोमीटर या फिर मॉडल के हिसाब से ही कंडम होती है। किलोमीटर के हिसाब से बस कंडम न हो, इसलिए आधे से ज्यादा बसों के मीटर बंद करा रखे हैं।आरटीए विभाग के अधिकारियों ने कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। अधिकारी दावा करते हैं वे स्कूलों में जाकर बसों की चेकिग करते हैं, लेकिन एक जगह खड़ी बस पर स्कूल का नाम, हेड लाइट, अग्निशमन यंत्र व फ‌र्स्ट एड बाक्स देख कर खानापूर्ति कर दी जाती है। आधी कीमत पर मिल जाती है बस

पंजाब में प्राइवेट ट्रांसपोर्टरों द्वारा जो बसें चलाई जाती हैं कुछ साल बाद उन्हें बोली लगाकर बेच दिया जाता है। इन्हीं बसों की एनओसी लेकर जिला में ट्रांसफर करा लिया जाता है। इसके बाद इनका लोकल रजिस्ट्रेशन नंबर ले लिया जाता है। पासिग से पहले बसों की सीट ठीक कर दी जाती हैं। पेंट कर स्कूल का नाम लिखवा दिया जाता है। बस खरीदने से लेकर उसकी खामियों को दूर करने के लिए हुए खर्च के बाद भी स्कूल काफी पैसा बचा लेते हैं। गत सप्ताह छछरौली में जो स्कूल बस हादसा हुआ वह इसी का परिणाम है। बस का स्टेयरिग फेल हो गया था। अनियंत्रित होकर खेतों में पलट गई।

लो-फ्लोर होनी चाहिए स्कूल बस

स्कूल में बच्चों के लिए जो बस लगाई जाती है, वे लो-फ्लोर की होनी चाहिए। लो-फ्लोर बस में चढ़ने के लिए बच्चों को परेशानी नहीं होनी चाहिए। परंतु स्कूलों द्वारा प्राइवेट ट्रांसपोर्टरों की यात्री बसें खरीदी जा रही हैं वे लो-फ्लोर नहीं है। इसके अलावा स्कूलों ने कई बसों में ड्राइवर के साथ बोनट के पास नई सीट फिट करवा दी है जिन पर बच्चों को बिठाया जा रहा है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।

10 साल से पुरानी नहीं होनी चाहिए : महेश कुमार

आरटीए के एमवीआइ महेश कुमार का कहना है कि यदि बस पुरानी है तो उसका मॉडल 10 साल से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिए। स्कूल बसों को पास करते समय सीसीटीवी, शीशे, अग्निशमन यंत्र, आरसी, मॉडल समेत अन्य जरूरी चीजों का ध्यान रखा जाता है। जिस बस में खामी मिलती है उसे दूर करने के लिए समय देते हैं।

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