स्वाध्याय से चरित्रवान बनता है मनुष्य: विशोक सागर

दिगंबर मुनि विशोक सागर महाराज ने कहा कि स्वाध्याय का तात्पर्य केवल पुस्तकों का पढ़ना-पढ़ाना ही नहीं है। स्वाध्याय व्यक्ति के आत्मनिरीक्षण और जीवन के उत्थान का आधार है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 01 Dec 2021 06:47 PM (IST) Updated:Wed, 01 Dec 2021 06:47 PM (IST)
स्वाध्याय से चरित्रवान बनता है मनुष्य: विशोक सागर
स्वाध्याय से चरित्रवान बनता है मनुष्य: विशोक सागर

जागरण संवाददाता, सोनीपत: दिगंबर मुनि विशोक सागर महाराज ने कहा कि स्वाध्याय का तात्पर्य केवल पुस्तकों का पढ़ना-पढ़ाना ही नहीं है। स्वाध्याय व्यक्ति के आत्मनिरीक्षण और जीवन के उत्थान का आधार है। इससे व्यक्ति खुद चरित्रवान बनने के साथ ही समाज और परिवार में सुख-शांति की स्थापना कर सकता है। वह बुधवार को हलवाई हट्टा स्थित जैन मंदिर में आयोजित सत्संग में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने श्रद्धालुओं को परस्पर प्रेम व सौहार्द से रहने को प्रेरित किया।

विशोक सागर महाराज ने कहा कि समाज और परिवार में व्यक्ति का संपर्क लगातार दूसरे लोगों से रहता है। ऐसे में ध्यान रखने की जरूरत है कि उसके व्यवहार से किसी को पीड़ा न पहुंचे। हमको प्रयास करना चाहिए कि हमारे सानिध्य में रहने वालों के चेहरों पर प्रसन्नता रहे। इसके लिए नियमित तपस्चर्या की जरूरत है। उसकी का एक भाग स्वाध्याय है। स्वाध्याय का तात्पर्य खुद का अवलोकन करना। व्यक्ति को चितन में बैठकर रोजाना यह देखना चाहिए कि उसका जीवन व व्यवहार परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए सुखकारक हो। उससे किसी को पीड़ा न पहुंचे। यह रोजाना के स्वाध्याय से ही संभव है। इसके लिए अपने व्यवहार और जीवन में एक-एक कर गलतियों को दूर करते जाएं। महापुरुषों के जीवन को पढ़कर उससे शिक्षा लें। गुरुओं के उपदेश को ध्यान से सुनकर अपने जीवन और व्यवहार में धारण करें।

स्वेतांबर मुनि आनंद महाराज ने कहा कि संसार में सबसे बड़ी पूंजी व्यक्ति का चरित्र है। इसका निर्माण एक दिन में नहीं होता है। यह निरंतर चितन और सुधार की प्रक्रिया है। हमको समाज में प्रबुद्ध लोगों और धर्म गुरुओं के व्यवहार को देखकर अपने जीवन में सुधार का अनवरत प्रयास करना चाहिए। उन्होंने लोगों से सत्संग में लगातार आने और अपने साथियों को लेकर साथ लाने पर जोर दिया। कार्यक्रम की व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान संजय जैन और अवनीश कुमार जैन ने दिया।

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