दोस्ती में तीन हत्याएं कर फांसी के फंदे तक पहुंच गया हरीश

शातिर हरीश को सतेंद्र की दोस्ती ने फांसी के फंदे तक पहुंचा दिया। उसने दोस्त की झूठी शान की खातिर परिवार को मौत की नींद सुलाने की साजिश जेल से पैरोल पर आकर रची थी।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 12 Oct 2021 10:03 PM (IST) Updated:Tue, 12 Oct 2021 10:03 PM (IST)
दोस्ती में तीन हत्याएं कर फांसी के फंदे तक पहुंच गया हरीश
दोस्ती में तीन हत्याएं कर फांसी के फंदे तक पहुंच गया हरीश

डीपी आर्य, सोनीपत

शातिर हरीश को सतेंद्र की दोस्ती ने फांसी के फंदे तक पहुंचा दिया। उसने दोस्त की झूठी शान की खातिर परिवार को मौत की नींद सुलाने की साजिश जेल से पैरोल पर आकर रची थी। वह समाज में वैमनस्य फैलाने वाले 12 से ज्यादा मामलों में नामजद है, इनमें से कई में उसको सजा भी मिल चुकी है। दलित युवक से प्रेम विवाह करने की जानकारी मिलने पर वह आग बबूला हो गया था। अस्पताल में भर्ती सुशीला को भी मारने की साजिश रची गई थी, लेकिन पुलिस की कड़ी सुरक्षा के चलते वह कामयाब नहीं हो सका था। मंगलवार को कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई।

झज्जर जिले के गांव बिरधाना के सतेंद्र उर्फ मोनू और गांव हसनपुर के हरीश स्कूल के समय से ही दोस्त थे। हरीश एक आपराधिक गिरोह के संपर्क में आया और लगातार अपराध करता गया। 2013 में जब सतेंद्र की बहन सुशीला ने खरखौदा के दलित युवक प्रदीप से प्रेम विवाह किया तब वह जेल में था। सतेंद्र ने उसको जेल में मिलकर बहन के प्रेम विवाह करने की जानकारी दी। उसने झूठी शान के चलते और बदला लेने की इच्छा जताई। तब हरीश ने उसे साजिश के तहत सुशीला, प्रदीप और उनके परिवार से संबंध सामान्य करने की सलाह दी। हरीश 2016 में जेल से पैरोल पर आया और प्रदीप के परिवार को खत्म करने की साजिश रची।

सभी को मरा मानकर भाग गए थे

हरीश को वारदात के दौरान लगा था कि उन्होंने पूरे परिवार को खत्म कर दिया था, जिसके बाद वह और सतेंद्र भाग गए थे। दो दिन बाद हरीश को जानकारी मिली कि सुशीला और उसका देवर सूरज बच गए हैं। वह अस्पताल में भर्ती हैं। तब उन्होंने सुशीला को अस्पताल में ही मारने की तैयारी की थी, लेकिन पुलिस की सख्ती से वे हत्या नहीं कर सके थे। सरकारी अधिवक्ता प्रदीप चौधरी ने बताया कि हरीश पर समाज में वैमनस्य फैलाने और बड़े अपराधों को अंजाम देने के 12 से ज्यादा मामले दर्ज हैं। उसको इनमें से कई में सजा हो चुकी है। बुआ-भतीजी हमले में बची थीं :

सुशीला गोली लगने के बावजूद बच गई थी। वह कई सप्ताह तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद ठीक हो गई थी। बाद में सुशीला को उसकी बहन अपने साथ ले गई थी। मृतक प्रदीप की तीन वर्षीय बेटी प्रिया और प्रदीप की बहन ललिता अपने ताऊ के घर सो रही थीं, जिसके चलते परिवार के सात सदस्यों में से बुआ-भतीजी इस हमले में बच गई थीं। फैसले की तारीख लगने पर फरार हो गया था सतेंद्र : 2016 में घटना के बाद दो लोग बच गए थे। उन्हें भी गोली लगी थीं। सतेंद्र की घायल बहन सुशीला को उसकी बड़ी बहन अपने साथ ले गई थी। इस तरह एक गवाह टूट गया था। प्रदीप के भाई सूरज को बयान बदलने को कई बार धमकाया गया, लेकिन वह नहीं मुकरा। कोर्ट ने जुलाई में फैसले की तारीख लगा दी थी। उस तारीख पर सजा मिलना तय माना जा रहा था। इसके चलते जमानत पर चल रहा सतेंद्र भाग गया। उसको भगोड़ा घोषित कर दिया गया है। ऐसे में न्यायालय ने उसको दोषी करार देने के बावजूद सजा नहीं सुनाई है। कोर्ट ने इस घटना को दुर्लभ से दुर्लभतम की श्रेणी में मानते हुए दोनों दोषियों को समाज में वैमनस्य फैलाने का भी दोषी माना। फैसले से खुश लेकिन बदमाश सतेंद्र से खौफजदा

वारदात में प्रदीप, उसकी मां और पिता की हत्या के बाद शिकायतकर्ता सूरज को लगातार धमकियां मिल रही थी। धमकियों से खौफजदा होकर सूरज एक साल से खरखौदा स्थित अपने घर पर नहीं रहता। उसके पड़ोस में रह रहे परिवार के अन्य लोगों ने अदालत के फैसले पर खुशी जताई। नाम न छापने की शर्त पर स्वजन ने बताया कि अभी एक ही दोषी को फांसी की सजा सुनाई गई। वहीं घटना का मुख्य आरोपित सतेंद्र फरार है। वह कभी भी आकर वारदात को अंजाम दे सकता है। उसके खौफ के चलते ही प्रदीप का भाई सूरज व अन्य स्वजन यहां से चले गए थे। नहीं बना हथियार का लाइसेंस

मृतक प्रदीप के परिवार के एक सदस्य का कहना है कि वारदात के बाद जब उन्होंने माग की थी तो प्रशासन की तरफ से उन्हें हथियार का लाइसेंस बनाने का आश्वासन दिया गया था। लेकिन पाच वर्ष बीत चुके हैं, आज तक उनका शस्त्र लाइसेंस नहीं बना है। जिससे उनकी प्रशासन के प्रति भी नाराजगी है। उनकी माग है कि उन्हें एक शस्त्र लाइसेंस जल्द से जल्द उपलब्ध करवाया जाए।

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