अब अफसर घर-घर जाकर बच्चों से पूछेंगे उनकी परेशानियां
अब अधिकारी घरों पर जाकर बच्चों की परेशानी जानेंगे। हर महीने बच्चों की समस्याओं का समाधान कराने को चौपाल का आयोजन किया जाएगा। वहां पर अफसर जरूरत के अनुसार बच्चों और उनके परिवारों वालों की काउंसिलिग करेंगे। आवश्यकता होने पर इनको दवाई और पोषाहार का वितरण भी किया जाएगा।
डीपी आर्य, सोनीपत
अब अधिकारी घरों पर जाकर बच्चों की परेशानी जानेंगे। हर महीने बच्चों की समस्याओं का समाधान कराने को चौपाल का आयोजन किया जाएगा। वहां पर अफसर जरूरत के अनुसार बच्चों और उनके परिवारों वालों की काउंसिलिग करेंगे। आवश्यकता होने पर इनको दवाई और पोषाहार का वितरण भी किया जाएगा। शहरों-कस्बों में प्रत्येक वार्ड और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक गांव में बाल संरक्षण समितियां बनाई जाएंगी। ये समितियां जनवरी से काम करने लगेंगी। बच्चों की शिकायत और पहचान को पूरी तरह से गुप्त रखा जाएगा। जिला बाल संरक्षण अधिकारी ने इसके आदेश जारी कर दिए हैं।
बच्चों के साथ होने वाली घटनाओं व हादसों का प्रभाव उनके बाल मन पर पड़ता है। इसका प्रभाव उनपर जीवनभर रहता है। इससे बच्चों का विकास और व्यक्तित्व प्रभावित होता है। ज्यादातर बच्चे अपने मनोभावों को प्रकट नहीं कर पाते हैं। परिवार के लोगों के पास उनकी भावनाएं समझने का वक्त नहीं होता है। बच्चों के साथ बैठकर अपनापन से व्यवहार किया जाए तो वह खुलकर अपनी परेशानी साझा करते हैं।
अब प्रदेश में भी अधिकारी हर महीने बच्चों से मुलाकात करेंगे। इसके लिए बाल संरक्षण समितियों की स्थापना की जाएगी। ग्रामीण क्षेत्र में सरपंच और शहरी क्षेत्रों में वार्ड पार्षद इस समिति के प्रधान होंगे। समिति में आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, ग्राम सचिव, अध्यापक, दो समाजसेवी और दो व्यक्ति जिला प्रशासन के द्वारा चयनित होंगे। आशा और एएनएम घर-घर जाकर हर महीने बच्चों से बातचीत करेंगी। वह बच्चों के स्वास्थ्य का परीक्षण भी करेंगी। सवालों की सूची दी जाएगी
बच्चों से उत्पीड़न करने, परेशान करने, मारपीट करने, भोजन मिलने, खेलने देने के साथ ही शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न के बारे में जानकारी ली जाएगी। इनको एक चार्ट दिया जाएगा, जिसमें बच्चों से पूछने योग्य सवाल होंगे। उनके अलावा बच्चों की अपनी राय भी जानी जाएगी। उस रिपोर्ट को पूरी तरह गुप्त रखकर समिति को सौंपा जाएगा। वहां पर मंथन के बाद इनकी काउंसिलिग की जाएगी। जरूरत होने पर स्पेशल काउंसलर से भी संवाद कराया जाएगा। समिति बच्चों के साथ ही इनके परिवार के लोगों से भी बातचीत करेगी। जरूरी होता है तो कानूनी सहायता लेने या रिपोर्ट दर्ज कराने का भी विकल्प समिति के पास होगा।
बाल संरक्षण समिति के नाम से बच्चों को अपने मनोभाव व अवसाद-परेशानी बताने का एक मंच मिलेगा। इसके बाद काउंसिलिग की जाएगी। काउंसिलिग के बाद बच्चे सामान्य हो सकेंगे, जिससे उनका शारीरिक व मानसिक विकास तेजी से होगा। प्रदेश में जनवरी से सभी शहरों-गांवों में इनका आरंभ कर दिया जाएगा। हमने सक्षम युवाओं को इसके प्रचार में लगाया है।
- डा. ऋतु गिल, जिला बाल संरक्षण अधिकारी, सोनीपत