फर्जी फर्म मामले में दो की जगह दर्ज हुई एक एफआइआर, विभाग को आपत्ति
जागरण संवाददाता सिरसा फर्जी फर्मों के मामले में पुलिस ने दो की जगह एक एफआइआर दर्ज कर
जागरण संवाददाता, सिरसा : फर्जी फर्मों के मामले में पुलिस ने दो की जगह एक एफआइआर दर्ज कर ली। विभाग से भेजे गए दो फर्मों के अलग-अलग विवरण को पुलिस ने एक एफआइआर में सम्मिलित कर लिया जबकि दो अधिकारियों के नाम एफआइआर में नहीं आए। जिसके बाद कराधान विभाग ने सिरसा पुलिस को पुन: पत्र भेजा है। कराधान अधिकारी दो एफआइआर की जगह एक दर्ज करने को भी तकनीकी रूप से सही नहीं मान रहे हैं। कराधान अधिकारियों का मानना है कि थाना स्तर पर एफआइआर दर्ज होते समय चूक रही है।
बता दें कि सिरसा के नवनियुक्त एसपी भूपेंद्र कुमार ने लंबित मामलों की समीक्षा के दौरान फर्जी फर्मों के मामले में एफआइआर न होने की जानकारी मिली। इसके बाद पुलिस ने फर्जी फर्मों के खिलाफ 19 एफआइआर दर्ज की और जांच के लिए एएसपी के नेतृत्व में एसआइटी गठित कर दी। कराधान विभाग की ओर से पूर्व में हुई जांच के दौरान सिरसा की दो फर्मों में कुछ अधिकारियों की कथित संलिप्तता उजागर होने के बाद जांच करवाई जिसमें छह अधिकारियों के खिलाफ एफआइआर के निर्देश हुए। अलग-अलग भेजा गया था विवरण, एफआइआर में कर दी एक
कराधान विभाग के अधिकारियों ने सिरसा की दो फर्मों द्वारा करोड़ों रुपये के बोगस बिल के मामले में अधिकारियों व फर्म के खिलाफ अलग-अलग विवरण दिया गया था। श्री ट्रेडिग कंपनी से संबंधित जांच में सामने आया कि इस मामले में पांच अधिकारियों पर कार्रवाई की सिफारिश की गई जिसमें एक्साइज एंड टेक्सटेशन आफिसर (इटीओ) डीपी बैनीवाल, इटीओ अशोक सुखीजा, सहायक आबकारी एवं कराधान अधिकारी (एइटीओ) ओपीएस अहलावत, इटीओ माल्हा राम व कुछ अन्य का उल्लेख किया गया। दूसरी जांच विनय ट्रेडिग कंपनी से संबंधित रही। इसमें इटीओ डीपी बैनीवाल, इटीओ अनिल मलिक, इटीओ अशोक सुखीजा, एइटीओ ओपीएस अहलावत तथा निरीक्षक हनुमान सैनी को आरोपित बनाया गया है। 2011 से 2014 में हुआ वैट घोटाला
बताया जा रहा है संबंधित फर्मों ने बोगस बिलों के सहारे सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व नुकसान किया और फर्जी क्लेम लिए। विनय ट्रेडिग कंपनी पर 40 करोड़ से अधिक तथा श्री ट्रेडिग कंपनी पर साढ़े 46 करोड़ से अधिक का फर्जी क्लेम ले लिया गया।श्री ट्रेडिग कंपनी का मामला 2011, 2013, 2014 के दौरान का है जबकि विनय ट्रेडिग कंपनी का मामला वर्ष 2013, 2014 का बताया गया है जिसमें दोनों ही फर्मों ने फर्जीवाड़ा किया। दो अलग-अलग ड्राफ्ट भेजे गए थे। हमारे हिसाब से दो एफआइआर होनी चाहिए थी। थाना स्तर पर एक एफआइआर हो गई। इस संबंध में पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखा है। उनकी पहल पर ही एसआइटी गठित हो पाई। पुलिस अधीक्षक से पुन: आग्रह करेंगे कि जिन आरोपित अधिकारियों के नाम एफआइआर में नहीं आए हैं उन्हें शामिल किया जाए।
- जितेंद्र राघव, आबकारी एवं कराधान आयुक्त