क्षमा ही आत्मा का स्वभाव : मुनि राजेंद्र
जैन संत डा. राजेंद्र मुनि ने कहा कि क्षमा ही धर्म है। अर्थात आत्म का स्
संवाद सहयोगी, रानियां : जैन संत डा. राजेंद्र मुनि ने कहा कि क्षमा ही धर्म है। अर्थात आत्म का स्वभाव क्षमा है। जैन संत शुक्रवार को जैन सभा में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म की परिभाषा करते हुए भगवान महावीर ने वस्तु के मूल स्वभाव को अर्थात गुण को धर्म कहा है। क्रोध जीवन में आता जाता रहता है। क्रोध था तब भी आत्मा है, न था तो भी आत्मा है अर्थात क्रोध हमेशा नहीं रहता क्योंकि वह परभाव है। क्षमा जीवन का मूल रूप है। बिना क्षमा के इंसान जीवन नहीं जी पाता । क्रोध को छोड़कर वह लम्बे समय तक जीवनभर भी जीवन जी सकता है । इसी प्रकार सत्य, अहिसा के बिना जीवन नहीं चल पाता। झूठ हिसा लगातार नहीं रह पाते है। आज आवश्यकता है कि हम अपने आत्मधर्म को पहचाने। क्रोध के कारण मानव का पतन होता है। क्षमा से उत्थान होता है। बात-बात पर क्रोध करने वाला सर्वघ अनादर, असत्कार का कारण बनता है। क्रोधी व्यक्ति स्वयं का एवं पर का नुकसान करता है। प्रभु महावीर ने जीवन भर क्रोध न करने का सकंल्प लिया इसी के चलते मोक्ष को प्राप्त हुए। साहित्यकार सुरेन्द्र मुनि ने कहा कि काम, क्रोध, मोह, मद, मान व हर्ष आत्मा के अंतरंग शत्रु हैं। नवकार महामंत्र से इन पर विजयी पाई जा सकती है। सच्चे मन से क्षमापना का भाव नवकार महामंत्र का प्रथम चरण है। इस अवसर पर चंपा लाल जैन, विनोद जैन, रविंद्र जैन, नरेश जैन, मोहन लाल जैन, सुरेंद्र जैन, दर्शन लाल जैन, इन्द्र लाल फुटेला, राजकुमार जैन, जगरूप लाल जैन, मुकेश जैन, सुरेन्द्र मोहन जैन, मुकेश जैन उपस्थित थे।