किसानों ने मनाया दमन विरोधी दिवस, तहसीलदार को सौंपा ज्ञापन
संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर बुधवार को कृषि कानूनों को लेकर
जागरण संवाददाता, सिरसा : संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर बुधवार को कृषि कानूनों को लेकर आंदोलनरत किसानों ने दमन विरोधी दिवस मनाते हुए राष्ट्रपति के नाम तहसीलदार दिलबाग सिंह को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन के माध्यम से किसानों ने किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने और जेल में बंद किसानों को बिना शर्त रिहा करने की मांग की। किसानों के प्रतिनिधिमंडल ने लघु सचिवालय परिसर में अधिकारी के कार्यालय में जाकर ज्ञापन सौंपने व बैठकर चर्चा करने की बात कही। परंतु पुलिस प्रशासन द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से प्रवेश गेट के आगे पुलिस कर्मी तैनात किए थे तथा गेट बंद कर दिया। ज्ञापन लेने पहुंचे तहसीलदार गुरदेव सिंह से किसानों ने कहा कि वे उनके कार्यालय में बैठकर चर्चा करेंगे, जिस पर तहसीलदार ने कहा कि दो लोग आ जाओ। परंतु प्रतिनिधिमंडल के सभी सदस्य जाने पर अड़े हुए थे। जिसके चलते एक बार तो तहसीलदार वापस जाने लगे। बाद में किसानों ने उन्हें दोबारा बुलाकर ज्ञापन सौंपा।
लघु सचिवालय पहुंचे हरियाणा किसान मंच के प्रदेशाध्यक्ष प्रहलाद सिंह भारूखेड़ा, स्वर्ण सिंह विर्क, लक्खा सिंह अलीकां, सुखदेव सिंह जम्मू, तिलकराज विनायक व अन्य ने तहसीलदार को ज्ञापन सौंपा। किसान नेताओं ने कहा कि आज वे विरोध प्रदर्शन करने नहीं बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष अपनी बात रखने आए है। सरकार किसानों के नाम से डरने लगी है। प्रहलाद सिंह भारूखेड़ा ने कहा कि किसान न तो कोई झंडा लेकर आए हैं और न ही कोई बैनर। प्रशासन को लघु सचिवालय में किसानों की नो एंट्री का बोर्ड लगा देना चाहिए।
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किसान आंदोलन को कुचलने के लिए हथकंडे अपना रही है सरकार
पत्रकारों से रूबरू होते हुए किसानों नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर देशभर में किसान आंदोलनरत है। सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए हर प्रकार के हथकंडे अपनाए। जिससे किसानों, लेखकों, कलाकारों, साहित्यकारों ने कानूनों के विरोध में आकर किसानों का समर्थन किया है, उन पर सरकार की ओर से देशद्रोह जैसे संगीन आरोप लगाकर उन्हें जेलों में बंद किया जा रहा है। जो किसान ट्रैक्टर लेकर दिल्ली में बैठे हैं, उन्हें बार-बार नोटिस भेजे जा रहे हैं। सरकार ये मानकर चल रही है कि इस प्रकार की नीतियों से किसान डरकर यहां से चले जाएंगे। भारूखेड़ा ने कहा कि अंग्रेजों ने भी अपने कार्यकाल के दौरान किसानों पर हर प्रकार से जोर जुल्म किए, लेकिन इसके बाद भी किसानों ने आंदोलनों में जीत हासिल की थी और सरकार को अपने कानूनों को वापस लेना पड़ा था। जब तक तीनों कानून रद नहीं होते, देश का किसान यहां से टस से मस नहीं होने वाला है।