स्पंदन संस्था ने किया ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन
शिक्षित होने के बावजूद हम समाज के रूप में महिलाओं को वह सम्मान नहीं दे पाए हैं जिसकी वह अधिकारी हैं। यह विडंबना ही है कि शिक्षित होने के बावजूद हमने महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग मापदंड स्थापित किए हुए हैं।
जागरण संवाददाता, रोहतक : शिक्षित होने के बावजूद हम समाज के रूप में महिलाओं को वह सम्मान नहीं दे पाए हैं जिसकी वह अधिकारी हैं। यह विडंबना ही है कि शिक्षित होने के बावजूद हमने महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग मापदंड स्थापित किए हुए हैं। घर, परिवार या समाज में कुछ भी घटित होता है तो ज्यादातर मामलों में महिला को ही दोषी ठहरा दिया जाता है। एक महिला का कार्यक्षेत्र केवल घर तक ही सीमित नहीं है। घर के साथ-साथ वह घर के बाहर भी अपनी भूमिका निभा रही है। जिसके कारण उसके कंधों पर दोहरी जिम्मेदारी है। लेकिन इसके बावजूद वह अपने वास्तविक सम्मान एवं अधिकारों से वंचित हैं। इन्हीं मुद्दों पर स्पंदन संस्था की ओर से ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन मंगलवार को किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता के तौर पर रोहतक से डा. प्रोमिला बतरा (मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता) और डा. अरुणा आंचल (शिक्षाविद) ने शिरकत की। इसके अलावा बहादुरगढ़ से रितु दहिया (विद्यार्थी) और दिल्ली से मालती मिश्रा (साहित्यकार) और सुमन तंवर (एडवोकेट) ने भी वर्तमान समय में नारी की स्थिति, उनकी भूमिका, उनकी दोहरी जिम्मेदारी, समाज में उनके प्रति होने वाले भेदभाव, दुर्व्यवहार, लैंगिक मुद्दों, कानूनी अधिकारों, समाज में उनके योगदान और महत्व आदि बिदुओं पर पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन पवन गहलोत ने किया। परिचर्चा में कंचन मखीजा, रश्मि श्रीवास्तव, दर्शना जलंधरा, डा. सुशीला शर्मा, एडवोकेट नेहा धवन, महिमा, ओम सपरा, प्रवीन गहलोत, बृजबाला गुप्ता, डा. संगीता मनचंदा, पूनम मटिया, भारती अरोड़ा, नितिज्ञा शर्मा, ऐडवोकेट विकास कुमार, विकास मेहरा, सुनीता रानी की भी उपस्थिति भी रही।