बहन के त्याग और पिता के आशीर्वाद से सीमा ने दिलाया ओलंपिक कोटा

पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी पहलवान सीमा बिसला ने बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। टोक्यो ओलंपिक में देश को कुश्ती में आठवां कोटा दिलाने वाली सीमा बिसला की इस सफलता में बड़ी बहन का त्याग और पिता का आशीर्वाद अहम रहा है। कैंसर पीड़ित पिता को जब उसके ओलंपिक में क्वालिफाइ करने की सूचना मिली तो शरीर में नई ऊर्जा का संचार हो गया। सीमा के बुल्गारिया के सोफिया में आयोजित ओलंपिक क्वालिफायर विश्व कुश्ती में सिल्वर मेडल जीतने के साथ ही देश को ओलंपिक में कोटा भी मिल गया।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 09 May 2021 08:47 AM (IST) Updated:Sun, 09 May 2021 08:47 AM (IST)
बहन के त्याग और पिता के आशीर्वाद से सीमा ने दिलाया ओलंपिक कोटा
बहन के त्याग और पिता के आशीर्वाद से सीमा ने दिलाया ओलंपिक कोटा

ओपी वशिष्ठ, रोहतक :

पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी पहलवान सीमा बिसला ने बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। टोक्यो ओलंपिक में देश को कुश्ती में आठवां कोटा दिलाने वाली सीमा बिसला की इस सफलता में बड़ी बहन का त्याग और पिता का आशीर्वाद अहम रहा है। कैंसर पीड़ित पिता को जब उसके ओलंपिक में क्वालिफाइ करने की सूचना मिली तो शरीर में नई ऊर्जा का संचार हो गया। सीमा के बुल्गारिया के सोफिया में आयोजित ओलंपिक क्वालिफायर विश्व कुश्ती में सिल्वर मेडल जीतने के साथ ही देश को ओलंपिक में कोटा भी मिल गया।

रोहतक जिले के गांव गुढ़ान में तीन एकड़ जमीन के किसान आजाद सिंह की चार बेटियां और एक बेटा है। सीमा भाई-बहनों में सबसे छोटी है। सात साल की उम्र में ही उसने कुश्ती खेलना शुरू कर दिया। हालांकि पिता आजाद सिंह अपने क्षेत्र के नामी कबड्डी खिलाड़ी रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं खेल सके। पारिवारिक परिस्थितियों में चलते खेल को बीच में ही छोड़ना पड़ा। सीमा ने कुश्ती को इसलिए चुना क्योंकि बड़ी बहन सुशीला के पति नफे सिंह कुश्ती करते थे। इसलिए सीमा को भी सुशीला रोहतक के बसंत विहार में अपने पास ही रखने लगी। वैसे कुश्ती करना तो 1999 में शुरू कर दिया था, लेकिन 2004 में ईश्वर दहिया अखाड़े में नियमित रूप से प्रैक्टिस करने लगी। इसके बाद सीमा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज वह बड़े मुकाम पर है। बहन के त्याग को नहीं भूल सकती : सीमा

सीमा जब आठ-नौ साल की थी, तभी उसकी बड़ी बहन सुशीला अपने पास ले आई। राजीव गांधी खेल स्टेडियम के सामने बसंत विहार कालोनी में रहने लगी। रोजाना सीमा को प्रैक्टिस के लिए अखाड़े में ले जाती। खुराक व प्रैक्टिस का पूरा ध्यान रखती। साथ ही पढ़ाई-लिखाई भी करवाती। सीमा ने भी बहन के त्याग को बेकार नहीं जाने दिया। कुछ ही दिनों में वह अच्छी पहलवान बन गई। जूनियर में नेशनल- इंटरनेशनल पदक हासिल किए। इस उपलब्धि में बहन सुशीला के साथ-साथ उसके जीजा नफे सिंह का भी बड़ा योगदान है। नफे सिंह पहलवानी करते थे और बाद में हरियाणा पुलिस में भर्ती हो गए, जो एएसआइ के पद पर कार्यरत हैं। ग्रामीण करते थे एतराज, पिता ने नहीं की परवाह

पहले पहल ग्रामीणों ने बेटी के कुश्ती खेलने पर एतराज भी किया, लेकिन सीमा के पिता ने ग्रामीणों की परवाह नहीं की, क्योंकि वह खुद खेल से जुड़े थे और खेल की अहमियत को समझते थे। बाद में पिता ने बड़ी बेटी सुशीला के पास रोहतक भेज दिया ताकि कोचिग में सीमा को दिक्कत न हो। रेलवे की नौकरी छोड़ कोच की नौकरी की स्वीकारी

26 वर्षीय सीमा ने 2018 में देश के लिए कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल हासिल किया। इससे पहले भी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी पदक जीत चुकी हैं। व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में भी ब्रांज मेडल हासिल किया। खेल कोटे से सीमा को रेलवे में क्लर्क की नौकरी मिल गई थी। बाद में हरियाणा सरकार की खेल नीति से प्रभावित हुई और सरकार द्वारा सीनियर कोच के प्रस्ताव को स्वीकार किया। कोच की नौकरी को इसलिए चुना ताकि भविष्य में प्रदेश के युवाओं को खेल के प्रति प्रोत्साहित कर सके। सीमा वर्तमान में पानीपत में सीनियर कोच के पद पर कार्यरत हैं।

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