जानलेवा हुई रोहतक की हवा, पीएम 2.5 की मात्रा सामान्य से अधिक

रोहतक की हवा अब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो रही है। हवा में पाि

By JagranEdited By: Publish:Mon, 22 Apr 2019 04:00 AM (IST) Updated:Mon, 22 Apr 2019 04:00 AM (IST)
जानलेवा हुई रोहतक की हवा, पीएम 2.5 की मात्रा सामान्य से अधिक
जानलेवा हुई रोहतक की हवा, पीएम 2.5 की मात्रा सामान्य से अधिक

केएस मोबिन, रोहतक

रोहतक की हवा अब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो रही है। हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की मात्रा सामान्य से अधिक हो चुकी है। इससे दिल और सांस के रोगी रहे हैं। रविवार को पीएम 2.5 की मात्रा शाम के समय 80 तक पहुंच गई। वहीं एयर क्वालिटी इंडेक्स में प्रदूषण का स्तर 155 रहा। जोकि स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। ग्रामीण क्षेत्रों में हवा में पीएम 2.5 की मात्रा शहरी क्षेत्रों से अधिक रही। विशेषज्ञों का मानना है कि फसलों की कटाई के चलते भारी मात्रा में धूल व अन्य कण हवा में घुल रहे हैं। इसके संपर्क में आने से गले में खराश और आंखों में जलन की शिकायत हो सकती है।

कुछ दिनों पहले विश्व के तीन हजार शहरों पर हुए एक सर्वे में प्रदेश के पांच शहर सबसे प्रदूषित घोषित किए गए थे, रोहतक का स्थान 25वां रहा था। वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहनों से उत्सर्जित धुंआ है। वाहनों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। प्रदूषण के मानकों का पालन किए बिना ही शहर की सड़कों पर वाहन दौड़ रहे हैं। प्रदूषण स्तर मापने वाले केंद्रों पर बिना जांच किए ही वाहनों को पास कर दिया जाता है। इसके अलावा अल्ट्राफाइन पार्टिकल, नाइट्रोजन आक्साइड और ओजोन भी हवा को जहरीला बना रहे हैं। खेतों में फसल कटाई के समय पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसे में जरूरी है कि मुंह पर कपड़ा बांधकर काम करें। शहरी क्षेत्र में पीएम 2.5 की मात्रा के बढ़ने का एक कारण एलिवेटेड ट्रैक का निर्माण भी है। निर्माण कार्य के दौरान उड़ते धूल के कण सीधे हवा में घुल रहे हैं।

रोजाना 2500 वायु प्रदूषण से ग्रसित मरीज पहुंच रहे पीजीआइ

पीजीआइ में रोजाना 8000 के करीब मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। इसमें से औसतन 2500 मरीज वायु प्रदूषण के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शिकार होते हैं। सांस, किडनी, फेफड़े, रक्त, त्वचा, आंखों की समस्या आदि के मरीज इलाज को पीजीआइ पहुंच रहे हैं। शहर में चल रहे 11 हजार से अधिक ऑटो

शहरी हवा का स्तर इतना खराब होने का एक कारण ऑटो रिक्शा भी हैं। करीब 11 हजार ऑटो रिक्शा चल रहे हैं। इसमें सिर्फ 8000 ने ही सभी मानक पूरे किए हैं। 3000 के करीब ऑटो रिक्शा बिना पासिग के सड़कों पर दौड़ रहे हैं। हरियाणा प्रदेश ऑटो जिला संघ के प्रदेश अध्यक्ष तस्वीर सिंह टांक ने बताया कि प्रशासन ने पासिग की फीस बहुत अधिक बढ़ा दी है। इसकी प्रक्रिया भी बहुत लंबी है। इस वजह से ऑटो चालक पासिग कराने से बचते हैं। उन्होंने बताया कि ऑटो की प्रत्येक 300 किलोमीटर के बाद सर्विस कराई जानी चाहिए। ऐसा नहीं होने पर इंजन अधिक मात्रा में धुंआ छोड़ता है। प्रदूषण जांच केंद्र अधिक पैसे लेकर वाहन को प्रदूषण सर्टिफिकेट दे देते हैं। घर से निकलते वक्त मुंह पर लगाएं मास्क

वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा परेशानी बुजुर्गो और बच्चों को होती है। सांस के रोगियों को अधिक सावधानी बरतनें की जरूरत होती है। सीधे दूषित हवा के संपर्क में आने से स्थिति गंभीर हो सकती है। घर से निकलते समय मुंह पर मास्क या कपड़ा रखने से बचा जा सकता है। बुजुर्गो और बच्चों को लंबी सैर करने से बचना चाहिए। सुबह, शाम हवा सबसे अधिक खराब

सुबह और शाम के समय शहरी क्षेत्र वायु की गुणवत्ता सबसे खराब रहती है। यह सुबह से शाम के समय यानी जब आफिस या फिर स्कूल, कालेज जाने वालों की भीड़ होती है। सड़कों पर इस दौरान वाहनों की संख्या अधिक होती है। वाहनों के धुएं से पार्टिकुलेट मैटर सबसे अधिक उत्पन्न होते हैं। देश के 241 शहरों की हवा सांस लेने लायक नहीं

वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। पूरा देश इसके चपेट में आ चुका है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड कि एक रिपोर्ट में सामने आया कि भारत में नॉन अटेंनमेंट शहरों की संख्या पूर्व में जहां 102 थी वह साल 2019 में बढ़कर 241 हो गई। इन शहरों में वायु की गुणवत्ता राष्ट्रीय मानकों से बदतर मानी गई। कारखानों, वाहनों से उत्सर्जित धुंआ, धूल के कण, ग्रामीण क्षेत्रों में घरों से निकला उत्सर्जन आदि हवा को जहरीला बना रहे हैं। वायु प्रदूषण नहीं बन पा रहा चुनावी मुद्दा

वायु प्रदूषण खतरनाक रूप ले चुका है। इसके बावजूद यह चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहा है। नेताओं अपने भाषणों से वायु प्रदूषण का जिक्र तक नहीं करते हैं। प्रत्याशी आरोप-प्रत्यारोप से आगे नहीं बढ़ पा रहे है। जातिगत समीकरण साधने के चक्कर में राजनीतिक पार्टियां जरूरी मुद्दों को भुला रही हैं। उत्सर्जन मानकों को सख्त किए जाने की है जरूरत

विशेषज्ञों का कहना है कि बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिए अधिक से अधिक संख्या में इलेक्ट्रिक वाहनों के चलाए जाने की जरूरत है। जिससे वायु प्रदूषण पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। जरूरत है कि प्रदूषण के आंकड़ों को हल्के में नहीं ले और उचित कदम उठाएं जाए। राजनैतिक के साथ सामाजिक चेतना की भी जरूरत है। लोगों को कम दूरी पर जाने के लिए साइकिल या पैदल सफर करना चाहिए। बहुत जरूरी हो तभी दुपहिया और चारपहिया वाहनों का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में त्वरित समाधान किए जाने की जरूरत है। घटता वन क्षेत्र एक गंभीर समस्या है, पौधरोपण युद्ध स्तर पर किए जाने की आवश्यकता है। वाहनों और कारखानों के धुएं से बचने के लिए उत्सर्जन के मानकों को सख्त किए जाने की जरूरत है।

पीएम 2.5 प्राकृतिक तत्व नहीं है। यह इंसानी गतिविधियों के कारण उत्पन्न होता है। हवा में इसकी मात्रा बढ़ने से श्वास की बीमारियों हो सकती हैं। इसके अलावा फेफड़ों का कैंसर, दिल का दौरा, हृदयघात की चपेट में भी लेाग आ सकते हैं। अभी गेहूं और सरसों की कटाई और सफाई के दौरान इसकी मात्र बढ़ गई है। सबसे ज्यादा वाहनों से उत्पन्न धुएं से इसकी मात्रा बढ़ती है। हालांकि हवा की गति तेज होने पर इसकी मात्रा कम भी हो जाती है। अक्टूबर-नवंबर में पीएम 2.5 की मात्रा सबसे अधिक बढ़ती है। इस समय हवा का दबाव नीचे से ऊपर की ओर कम होता है और पार्टिकल एक जगह ही हवा में तैरते रहते हैं।

डा. जेएस लौरा, प्रोफेसर पर्यावरण विज्ञान, एमडीयू

पीएम 2.5 एक हानिकारक तत्व है। हवा में इसकी अत्यधिक मात्रा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 60 के स्केल तक यह सामान्य होता है, इससे अधिक होने पर यह नुकसान पहुंचाता है।

प्रोफेसर राजेश धनखड़, पर्यावरणविद

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