सौ साल पुरानेे इस प्याऊ की कहानी है बड़ी निराली, लाहौर हाईकोर्ट में चला था केस

करीब सौ साल पुराना प्याऊ। कभी इसे शुरू कराने के लिए लाहौर हाईकोर्ट तक की शरण लेनी पड़ी थी और इसे स्थापित करने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा था।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Sat, 18 May 2019 08:11 PM (IST) Updated:Sun, 19 May 2019 07:50 PM (IST)
सौ साल पुरानेे इस प्याऊ की कहानी है बड़ी निराली, लाहौर हाईकोर्ट में चला था केस
सौ साल पुरानेे इस प्याऊ की कहानी है बड़ी निराली, लाहौर हाईकोर्ट में चला था केस

रोहतक [केएस मोबिन]। यहां शहर में रेलवे रोड पर चलता पंचायती प्याऊ। करीब सौ साल पुराना। वाटर कूलरों के दौर में भी गंगा सागर (पानी रखने का एक पात्र) में पानी पिलाकर पुरानी परंपरा को जिंदा रखे हुए है। खास इसलिए भी कि इसे शुरू कराने के लिए लाहौर हाई कोर्ट तक की शरण लेनी पड़ी थी और इसे स्थापित करने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा था।

आज जिस जगह पर प्याऊ है, वह कभी नगरपालिका की जमीन हुआ करती थी। रेलवे रोड बाजार के दुकानदारों ने चंदा इकट्ठा कर यहां प्याऊ लगवाने का कार्य शुरू किया। तत्कालीन नगर पालिका प्रशासन को जब प्याऊ स्थापित करने का पता चला तो उसने एतराज जताया। पालिका प्रशासन ने प्याऊ के निर्माण पर रोक लगाते हुए इसे तोड़ने के आदेश दे दिए। लाख मिन्नतों के बावजूद पालिका प्रशासन ने जब अडिय़ल रवैया नहीं छोड़ा। प्याऊ को तोड़ने के लिए कर्मचारी भेज दिए। दुकानदारों ने विरोध किया। एकजुट हुए दुकानदारों ने रातों-रात निर्माण कार्य कराया। अगले दिन से ही पानी पिलाने की शुरूआत कर दी गई।

पंचायती प्याऊ को स्थापित कराने वाले लाला मथुरा प्रसाद गुप्ता के पोते और वर्तमान प्रधान अनिल गुप्ता बताते हैं कि राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते मामले ने इतना तूल पकड़ा कि जिलेभर में चर्चा का केंद्र बन गया। नगर पालिका ने खुद का पक्ष कमजोर होते देख दुकानदारों पर दबाव बनाने के लिए कानूनी दांव खेल दिया। रेलवे रोड के दुकानदारों को कानूनी नोटिस भेजा गया। दुकानदारों ने इस पर हार नहीं मानी और तत्कालीन लाहौर हाई कोर्ट में केस डाल दिया। फैसला भी उनके पक्ष में आया। तभी से निर्बाध रूप से प्याऊ संचालित किया जा रहा है।

पांच साल, 50 तारीखों के बाद जीता केस

प्याऊ का संचालन कराने के लिए लाला मथुरा प्रसाद गुप्ता, लाला पदम सैन जैन व रूपचंद जैन समिति के पहले इंचार्ज बने। करीब पांच साल तक लाहौर हाई कोर्ट में केस चला। 50 तारीखें पड़ीं। तीनों ही इंचार्ज बारी-बारी से कोर्ट की तारीखों पर जाते। आर्थिक तंगी हुई तो लड़ाई लडऩे के लिए चंदा इकट्ठा करने में भी संकोच नहीं किया। पांच सौ किलोमीटर दूर लाहौर हाई कोर्ट में तारीख से दो दिन पहले निकलना होता था। पंजाब के गुरदासपुर के रास्ते लाहौर तक सफर तय किया जाता था। आखिर लाहौर हाई कोर्ट ने दुकानदारों के पक्ष में फैसला सुनाया।

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