भक्ति करते हुए 'श्रीकृष्ण गीता' किताब लिख डाली
भगवान की भक्ति करना अलग बात है और उस दौरान प्राप्त ज्ञान को साहित्यिक रूप से प्रस्तुत करना बड़ी बात है।
ज्ञान प्रसाद, रेवाड़ी
भगवान की भक्ति करना अलग बात है और उस दौरान प्राप्त ज्ञान को साहित्यिक रूप से प्रस्तुत करना बड़ी बात है। जिले के धारूहेड़ा स्थित द्वारकाधीश अरावली हाइट्स निवासी पुष्पा सिन्हा श्रीमद्भागवत गीता के संदेश को चरितार्थ करने में जुटी हैं। वे गीता के सार को चरितार्थ करते हुए आत्मा और परमात्मा को जानकर उसको प्राप्त करने के उद्देश्य से 58 साल की उम्र में धार्मिक और साहित्यिक अभिरुचि को मूर्त रूप दे रही हैं। उन्होंने सर्वप्रथम श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन किया और फिर योगेश्वर श्रीकृष्ण की कृपा से 'श्रीकृष्ण गीता' के नाम से किताब लिखने के साथ प्रकाशित भी कर दी। मात्र बारहवीं कक्षा तक पढ़ी लिखी एक साधारण घरेलु महिला होते हुए भी उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता के 18 अध्यायों के सभी सात सौ श्लोकों को अध्ययन किया। इसके बाद अपनी चार सौ पृष्ठ की किताब में श्लोकों का संधि विच्छेद करते हुए इनके अर्थ का विवरण और मानव जीवन में मौलिकता को दर्शाने का प्रयास किया है।
पुष्पा सिन्हा कहती हैं कि वर्ष 2011 में रेडियोलोजिस्ट पति अंजनी कुमार सिन्हा के निधन के बाद जब जीवन एकाकीपन लगने लगा तो भक्ति भावना को लेखन से प्रदर्शित की जिज्ञासा हुई। मूल रूप से बिहार के छपरा निवासी यह परिवार लंबे समय से बनारस के गुदौलिया गांव में रह रहे हैं। बेटा अनीष रंजन धारूहेड़ा के एक कंपनी में अधिकारी हैं। बेटे की शादी के बाद पुष्पा सिन्हा भी बेटा बहू के साथ धारूहेड़ा में रह रही हैं। धार्मिक आस्था को साहित्यिक रूप देते हुए उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता को बारीकी से अध्ययन किया। करीब दो से ढाई साल तक इन श्लोकों के भाव और जीवन में उपयोग को रेखांकित करना शुरू कर दिया।
हर साल गीता जयंती पर करती हैं पूजा
पुष्पा सिन्हा बताती हैं कि वे हर साल गीता जयंती पर पूजा करती हैं। इसके अलावा सोसायटी पर महिलाओं को श्रीमद्भागवत गीता का संदेश देते हुए जागरूक करती हैं। अब तो वे मोबाइल के वाट्सएप ग्रुप से भी गीता के संदेश को प्रचारित करने लगी हैं। वह कहती हैं कि भगवान की कृपा से भक्ति तो पहले से ही करती थी। पति के निधन के बाद उनके मन में गीता को पढ़ने की जिज्ञासा और प्रबल हुई। ऐसा लगा मानों जैसे उन्हें श्री कृष्ण प्रेरित कर रहे हों। अधिकांश समय गीता के अध्ययन करने लगी। धीरे धीरे तीनों बेटों की नौकरी, विवाह, पोता पोती के साथ उनका जीवन खुशहाल होता गया। उनका मानना है कि परमात्मा को पूर्ण रूप से जानने के लिए गीता का ज्ञान ग्रहण करना चाहिए। गीता किसी धर्म जाति या किसी संप्रेषण के लिए नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए है। उनका मानना है कि सकारात्मक सोच के साथ भक्तिमार्ग पर चलने से जीवन में विषम परिस्थितियों से उभरने का अवसर मिलता है।