पांच दिन की मेहनत ने बदल दी सोलहराही तालाब की सूरत
सालों से जिस काम को जिला प्रशासन नहीं करा पाया उसे इस समिति के सदस्यों ने महज पांच दिनों में कर दिखाया। शहर के प्राचीन सोलहराही तालाब को इस बार पूर्वांचल सेवा समिति ने छठ पूजा के लिए चुना है।
अमित सैनी, रेवाड़ी
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं होता, जरा एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। अगर ईमानदारी से कुछ करने की ठान ली जाए तो बदलाव कहीं पर भी लाया जा सकता है इस बात को पूरी तरह से सही साबित किया है पूर्वांचल सेवा समिति ने। सालों से जिस काम को जिला प्रशासन नहीं करा पाया उसे इस समिति के सदस्यों ने महज पांच दिनों में कर दिखाया। शहर के प्राचीन सोलहराही तालाब को इस बार पूर्वांचल सेवा समिति ने छठ पूजा के लिए चुना है। समिति सदस्यों ने पांच दिनों के अथक प्रयासों से तालाब की सूरत को काफी हद तक बदलने का काम किया है। समिति सदस्यों ने न सिर्फ तालाब की साफ सफाई की है बल्कि इसकी छंटाई भी की जा रही है। तालाब के इस बदले हुए रूप को देखकर हर कोई दंग है। पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है छठ पूजा पर्व
बिहार और उत्तर प्रदेश के सैकड़ों लोग सालों से रेवाड़ी में रह रहे हैं। पहले यह लोग छठ पूजा के अवसर पर अपने गांव ही चले जाते थे लेकिन वर्ष 2018 से इन्होंने स्थानीय स्तर पर ही पूजा महोत्सव का आयोजन करना शुरू किया था। पूर्वांचल सेवा समिति से वर्तमान में 235 परिवार जुड़े हुए हैं। समिति सदस्यों के द्वारा इस बार सोलहराही तालाब की तलहटी में छठ पूजा के लिए कृत्रिम घाट तैयार किया जा रहा है। घाट को तैयार करने के लिए पांच दिनों से समिति सदस्य जुटे हुए हैं। समिति सदस्यों ने बदहाल सोलहराही तालाब में फैला कई टन कचरा खुद साफ किया है। इतना ही नहीं आसपास की गंदगी हटाने के साथ ही जेसीबी से तालाब की छंटाई भी कराई जा रही है। यहां बता दें कि सैकड़ों साल पुराने सोलहराही तालाब के लिए सरकार और जिला प्रशासन ने योजनाएं तो कई बार बनाई लेकिन वह कभी कागजों से बाहर ही नहीं आ सकी। अब पूर्वांचल सेवा समिति ने जब तालाब की तस्वीर बदलनी शुरू की है तो देखने वाले लोग भी उनके काम की प्रशंसा किए बगैर नहीं रह पा रहे हैं। समिति से जुड़े अश्विनी कुमार बताते हैं कि छठ मैया की पूजा के इस त्योहार के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का एक बड़ा संदेश दिया जाता है। पूजा से पूर्व घाट के आसपास सफाई करके जहां स्वच्छता का संदेश दिया जाता है वहीं पूजा के दौरान भी प्लास्टिक की पालीथिन की बजाय बांस की टोकरी का इस्तेमाल किया जाता है। छठ पूजा महोत्सव में हमारी संस्था के करीब पांच लाख रुपये खर्च होते हैं, जिसमें स्थानीय लोगों का पूरा साथ मिलता है। हमारा विशेष ध्यान स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण पर होता है। खुशी इस बात की है कि शहर की ऐतिहासिक धरोहर को संवारने में हमें योगदान देने का मौका मिल रहा है। अगर भविष्य में मौका मिला तो हम इस तालाब को पुर्नजीवित करने में अपना योगदान देना चाहते हैं ताकि कृत्रिम घाट बनाने की आवश्यकता ही न पड़े।
- रामाधार शर्मा, प्रधान पूर्वांचल सेवा समिति