धीरे-धीरे बुजुर्गों की राह पर है युवा पीढ़ी

बात चाहे 65 से ऊपर के बुजुर्गों की हो या फिर 25 से 35 वर्ष के युवाओं में पर्यावरण के लिए काफी जागरूकता है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 02 Jul 2020 07:08 PM (IST) Updated:Thu, 02 Jul 2020 07:08 PM (IST)
धीरे-धीरे बुजुर्गों की राह पर है युवा पीढ़ी
धीरे-धीरे बुजुर्गों की राह पर है युवा पीढ़ी

जागरण टीम, रेवाड़ी : बात चाहे 65 से ऊपर के बुजुर्गों की हो या फिर 25 से 35 वर्ष के युवाओं की, पौधरोपण के मामले में दोनों की सोच लगभग एक जैसी है, मगर जब पौधों की देख-रेख की बात आती है तो युवा पीढ़ी बुजुर्गों के जमाने से पीछे खड़ी दिखाई पड़ती है। सकारात्मक पक्ष यह है कि युवा पीढ़ी अब धीरे-धीरे बुजुर्गों की राह पर आगे बढ़ रही है। मतलब पौधरोपण से लगाव तो हुआ ही है, साथ ही देखरेख के बारे में सुस्ती टूट रही है।

दैनिक जागरण ने जिले के लगभग 200 लोगों से यह जानने का प्रयास किया कि उन्होंने अपने जीवनकाल में अब तक पौधे लगाए हैं या नहीं।

इनमें से अपवाद को छोड़कर अधिकांश का जवाब हां में है, मगर संख्या के मामले में अधिकांश लोग सही जानकारी देने की स्थिति में नहीं है। थोड़े से लोगों के बीच किए गए इस सैंपल सर्वे में ऐसे लोग कम मिले, जिन्होंने कभी पौधा ही नहीं लगाया हो।

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बुजुर्गों ने रोपे थे दीर्घजीवी पौधे वर्तमान में शुरू हुआ त्रिवेणी (नीम, पीपल व बड़) का दौर अतीत में आम था। सत्तर बसंत देख चुके लोग बताते हैं कि फलां पीपल उनके दादा ने लगाया था या फलां बड़ (वट वृक्ष) उनके पिता ने लगाया था। पुराने जमाने के संत-महात्माओं ने भी अपने जीवनकाल में अधिकांश गांवों में ऐसे दीर्घजीवी पौधे लगाए थे, जो आज भी छाया दे रहे हैं। हर गांव में पीपल, हर गांव के मंदिर के निकट वट वृक्ष व हर गांव में नीम के पेड़ आज भी मौजूद हैं।

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35 से 65 के बीच थोड़ी सुस्ती पौधरोपण के मामले में 35 से 65 की उम्र के लोगों ने थोड़ी सी सुस्ती दिखाई थी, जिसका परिणाम जंगल की कमी के रूप में सामने आया, मगर जागरूकता से तीन दशक से पौधों के प्रति फिर से लगाव पैदा हुआ है, मगर वर्तमान पीढ़ी देखरेख के मामले में पीछे है। बुजुर्ग लोगों ने अपने जमाने में जहां लगाए गए पौधे को पेड़ बनने तक नियमित रूप से खुराक दी वहीं वर्तमान पीढ़ी पौधे की देखरेख कम, पौधरोपण पर अधिक जोर दे रही है।

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