हरियाणा के पैरा खिलाड़ी टेकचंद को मिला टोक्यो पैरालंपिक का टिकट

टेकचंद का कहना है कि टोक्यो की राह को आसान बनाने में उनके प्रशिक्षक नजफगढ़ निवासी अरुण कुमार और एस्कोर्ट के रूप में सहायक प्रदीप कुमार का अहम योगदान रहा है। 36 वर्षीय टेकचंद का वर्ष 2005 में सड़क दुर्घटना में दिव्यांग हो गए थे।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Sat, 03 Jul 2021 07:08 PM (IST) Updated:Sat, 03 Jul 2021 07:08 PM (IST)
हरियाणा के पैरा खिलाड़ी टेकचंद को मिला टोक्यो पैरालंपिक का टिकट
टेकचंद को मिला टोक्यो का टिकट file photo

रेवाड़ी [ज्ञान प्रसाद]। पैरा खिलाड़ी टेकचंद को टोक्यो पैरालंपिक का टिकट मिल गया है। पैरा खिलाड़ी टेकचंद जिला के पहले खिलाड़ी हैं जो पैरालंपिक में हिस्सा ले रहे हैं। 29 जून को दिल्ली के नेहरू स्टेडियम में हुए ट्रायल में उन्होंने हिस्सा लिया था। शनिवार को ओलंपिक में चयनित होने वाले खिलाड़ियों की सूची जारी हुई। इसमें रेवाड़ी के बावल निवासी टेकचंद का भी नाम शामिल है। टेकचंद ने बताया कि भारतीय पैरालंपिक कमेटी की ओर से उनको चयन की सूचना दी गई। टेकचंद का एफ-54 वर्ग के जेवलिन थ्रो में चयन हुआ है। उन्होंने ट्रायल के दौरान 29.66 मीटर दूर जेवलिन फेंका था। टेकचंद के साथ रेवाड़ी से पूजा यादव ने भी महिला वर्ग के लिए ट्रायल दिया था लेकिन पूजा श्रेष्ठ चार में अपनी जगह नहीं बना पाई।

टेकचंद इससे पहले वर्ष 2018 में जकार्ता में आयोजित एशियन गेम्स में कांस्य पदक विजेता रहे हैं। वर्ष 2019 में दुबई में आयोजित विश्व चैंपियनशिप में छठा रैंक हासिल किया था। वर्ष 2021 में 26 मार्च को बंगलुरु में आयोजित राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक चैंपियनशिप में उन्होंने जेवलिन, डिस्कस और शाटपुट में एक-एक स्वर्ण पदक जीते थे। टेकचंद वर्तमान में जिला खेल एवं युवा कार्यक्रम विभाग में प्रशिक्षक के पद पर कार्यरत हैं।

टेकचंद का कहना है कि टोक्यो की राह को आसान बनाने में उनके प्रशिक्षक नजफगढ़ निवासी अरुण कुमार और एस्कोर्ट के रूप में सहायक प्रदीप कुमार का अहम योगदान रहा है। 36 वर्षीय टेकचंद का वर्ष 2005 में सड़क दुर्घटना में दिव्यांग हो गए थे। उस दौरान रेवाड़ी के एथलेटिक प्रशिक्षक रहे भीम अवार्डी सतबीर सिंह ने उन्हें न केवल संबल प्रदान किया बल्कि उन्हें खेलों के जरिए अपनी दिव्यांगता को मात देने के लिए प्रेरित किया। मध्यम वर्गीय परिवार में 24 जुलाई 1984 को जन्में टेकचंद के पिता रमेशचंद का बीस साल पहले निधन हो चुका हैं। बेटे की उपलब्धि पर मां विद्यादेवी की आखें खुशी से नम हैं।

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