Haryana Politics: आखिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राव इंद्रजीत सिंह पर क्यों टिकी हैं धुरंधरों की निगाहें

Haryana Politics कुछ समय से भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राव इंद्रजीत सिंह द्विअर्थी संवाद के सहारे अपनों को ललकार रहे हैं। खुलकर बता रहे हैं कि उनके पास जनाधार है जबकि पार्टी में उन लोगों को आगे किया जा रहा है जिनका जनाधार नहीं है।

By Jp YadavEdited By: Publish:Thu, 30 Sep 2021 09:25 PM (IST) Updated:Fri, 01 Oct 2021 03:50 AM (IST)
Haryana Politics: आखिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राव इंद्रजीत सिंह पर क्यों टिकी हैं धुरंधरों की निगाहें
Haryana Politics: आखिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राव इंद्रजीत सिंह पर क्यों टिकी हैं धुरंधरों की निगाहें

रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। अगर हरियाणा के ऐलनाबाद विधानसभा उपचुनाव को छोड़ दें तो प्रदेश में न विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं न देश में लोकसभा, मगर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का अंदाज, राव इंद्रजीत की भाषण शैली, जींद में इनेलो का शक्ति प्रदर्शन और उसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह की मौजूदगी ने पूरी तरह चुनावी माहौल बना दिया है। इस सूची में कुछ और नाम भी जुड़ सकते हैं, मगर धुरंधरों की निगाहें मुख्य रूप से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राव इंद्रजीत सिंह के रुख पर टिकी हैं। पार्टियों की रणनीति के बीच भविष्य में इन दोनों दिग्गजों के कदम भी हरियाणा की राजनीति की दिशा तय करेंगे।

हुड्डा और राव तय करेंगे राजनीति की दिशा

कुछ समय से भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राव इंद्रजीत सिंह द्विअर्थी संवाद के सहारे अपनों को ललकार रहे हैं। खुलकर बता रहे हैं कि उनके पास जनाधार है, जबकि पार्टी में उन लोगों को आगे किया जा रहा है जिनका जनाधार नहीं है, मगर दोनों के विरोधी यह बताना नहीं भूलते कि इनकी ताकत उन पार्टियों से बनी हुई है, जिन्हें संगठन के सिपाहियों ने खून-पसीने से खड़ा किया है। ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले समय में दोनों नेता हरियाणा की राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं।

दिल्ली तक पहुंची ऊपर-नीचे की बात

23 सितंबर को जंग-ए-आजादी के नायक राव तुलाराम की पुण्यतिथि पर झज्जर जिले के गांव पाटौदा में हुई रैली में राव इंद्रजीत सिंह ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ की मौजूदगी में ऊपर-नीचे की बहस छेड़ी है। राव इंद्रजीत सिंह ने खुद को जमीनी स्तर का नेता बताते हुए यह कहा था कि कुछ लोग ऊपर से थोपे जाते हैं। इंद्रजीत के कटाक्ष मुख्यमंत्री मनोहर लाल व केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के लिए माने जा रहे हैं। इसकी शिकायत दिल्ली तक पहुंची है। यह कहा गया है कि राव इंद्रजीत ने भूपेंद्र यादव व मनोहरलाल जैसे उन नेताओं पर कटाक्ष किए हैं, जिन्होंने पूरा जीवन पार्टी के लिए समर्पित किया है। रैली में भाजपा के 75 पार वाले नारे की खिल्ली उड़ाने के राव इंद्रजीद सिंह के अंदाज के भी अर्थ तलाशे जा रहे हैं।

राव इंद्रजीत की बेटी आरती का चुनाव लड़ने का ऐलान व राव का पानीपत की लड़ाई (सीएम की कुर्सी के लिए चंडीगढ़ की चढ़ाई) का आह्वान भी भाजपा की रीति-नीति के अनुकूल नहीं माना जा रहा है। जयचंदों को इनाम देने व अहीर कालेज के सरकारीकरण के लिए राज्यपाल को ज्ञापन देने वाले को पार्टी से न हटाने का सार्वजनिक उलाहना देकर भी राव इंद्रजीत सिंह ने पार्टी से अपनी नाराजगी दिखाई थी। राव इंद्रजीत सिंह ने जिन्हें इनाम देने की बात कही है, वह अरविंद यादव हैं, जिन्हें हरको बैंक का चेयरमैन बनाया हुआ है, जबकि अहीर कॉलेज के सरकारीकरण के लिए राज्यपाल को ज्ञापन भाजपा के सेवा प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक सतीश खोला ने दिया था। अरविंद यादव तब सुर्खियों में आए थे, जब विधानसभा चुनाव प्रचार के समय उन्होंने राव इंद्रजीत सिंह को अपने कार्यालय में बुलवाया था। यह माना जा रहा था कि अरविंद अब राव के साथ चुनाव प्रचार में जुट जाएंगे, मगर राव इंद्रजीत सिंह का सम्मान करने की बजाय अरविंद के कुछ समर्थक एक के बाद एक तीखे सवाल लेकर भीड़ के बीच प्रकट हो गए। इससे बनी असहज परिस्थिति के बीच राव इंद्रजीत सिंह को वहां से जाना पड़ा। सवालों का स्तर और पूछने वालों का अंदाज राव इंद्रजीत सिंह के लिए अपमानजनक था।

पाटौदा में बड़ी रैली कर राव इंद्रजीत सिंह ने दिखाया अपना दम

इधर, राव इंद्रजीत सिंह विरोधी नेता दिल्ली दरबार को यह समझा रहे हैं कि राव इंद्रजीत सिंह ने लोकसभा चुनाव अपने दम पर नहीं बल्कि भाजपा के दम पर जीते थे। राव इंद्रजीत सिंह में दम होता तो दूसरों को जयचंद बताने की बजाय रेवाड़ी विधानसभा सीट पार्टी की झोली में डालकर दिखाते, मगर तमाम आलोचनाओं के बावजूद राव इंद्रजीत सिंह विरोधी भी यह मानने के लिए तैयार हैं कि अपने लोकसभा क्षेत्र से बाहर जाट बेल्ट के गांव पाटौदा में बड़ी रैली करके राव इंद्रजीत सिंह ने अपना दम साबित किया है। राव इंद्रजीत सिंह का यही दम भाजपा की ताकत बनता रहा है। कुल मिलाकर यह कहना ज्यादा उचित रहेगा कि भाजपा और राव इंद्रजीत सिंह दोनों को एक दूसरे की जरूरत है, मगर जब कोई शख्स खुद को पार्टी से बड़ा मान ले तो पार्टियों के पास विकल्पों का अभाव नहीं रहता। पिछले दिनों अहीरवाल क्षेत्र में हुई भूपेंद्र यादव की जन आशीर्वाद यात्रा से भाजपा ने अप्रत्यक्ष रूप से राव इंद्रजीत सिंह को बड़ा संदेश दे भी दिया है।

सीमित दायरे में सिमटने के लिए तैयार नहीं भूपेंद्र सिंह हुड्डा

बहुत कुछ पाकर भी भाजपा में जितने असंतुष्ट राव हैं, वही स्थिति कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की है। दोनों की अपेक्षाएं बड़ी हैं। विधायक दल पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कब्जा है। तीन जिलों में तूती बोलती है। कई जिलों में समर्थक क्षत्रप ताकतवर हैं। इसी कारण भूपेंद्र सिंह हुड्डा सीमित दायरे में सिमटने के लिए तैयार नहीं है। राव इंद्रजीत सिंह की पाटौदा रैली की तरह तब भी हलचल हुइ थी जब पिछले दिनों भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने विधायक दल की बैठक बुलाई थी। इस समय कहीं इंसाफ पार्टी के जिंदा होने की बात हो रही है तो कहीं भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नई भूमिका की अटकलें लग रही है। दल अलग-अलग होते हुए भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा व राव इंद्रजीत सिंह दोनों की दोस्ती की चर्चा भी आम हो रही है, मगर बिना मजबूत जड़ (पार्टी) पेड़ के मजबूत न रह पाने का डर डोर को बांधे हुए है। इस डोर को दोनों में से किसी भी पक्ष ने थोड़ा सा जोर से खींचने का प्रयास किया तो यह टूट जाएगी।

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