किसान नहीं कर सकते ऐसी बर्बरता: हुकमदेव
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री हुकमदेव नारायण यादव शुक्रवार को कुंडली बार्डर पर हुई दलित युवक की निर्मम हत्या से बेहद खफा हैं।
महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री हुकमदेव नारायण यादव शुक्रवार को कुंडली बार्डर पर हुई दलित युवक की निर्मम हत्या से बेहद खफा हैं। हुकमदेव का मानना है कि किसान ऐसी बर्बरता नहीं कर सकते। खुद को आंदोलनकारी बताकर ऐसा जघन्य अपराध करने वालों के चेहरे से नकाब हटना चाहिए। हुकमदेव बार्डर पर बैठे कृषि कानून विरोधियों को नसीहत देना भी नहीं भूले। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने नए कृषि कानून बनाकर लघु और सीमांत किसानों तथा खेतीहर मजदूरों की चिता की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल से करोड़ों किसानों-खेतीहर मजदूरों को लाभ मिलेगा। मोदी ऐसे आर्किटेक्ट हैं, जो गांधी, डा. लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय के कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं।
शनिवार को जागरण से बातचीत में खेती-किसानी के विशेषज्ञ कहे जाने वाले हुकमदेव ने कहा कि देश में लघु-सीमांत किसानों की संख्या लगभग 83 फीसद है। एक हेक्टेयर तक के भू-स्वामी सीमांत और दो हेक्टेयर तक के भूस्वामी लघु किसान कहलाते हैं। किसानों और क्षेत्र विशेष के नजरिए से देखने की जरूरत नहीं है। बिहार जैसे राज्यों में लघु-सीमांत किसानों की संख्या 95 प्रतिशत से अधिक है, जबकि हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह प्रतिशत इससे आधा भी नहीं है। मोदी की सोच को संकीर्णता और क्षेत्र विशेष के दायरे से हटकर देखने की जरूरत है। भीड़ का हिस्सा बनने से पहले समझें:
विरोध का अधिकार लोकतंत्र में सभी को है, लेकिन भीड़ का हिस्सा बनने से पहले चीजों को समझना जरूरी है। देश में दो तरह के किसान हैं। एक जो केवल खेती-पशुपालन पर निर्भर हैं, जबकि दूसरे वे हैं, जिनके पास खेती के अलावा आय के अन्य साधन हैं। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उप्र के किसानों के पास आय के अतिरिक्त साधन हैं। इनसे दूसरे राज्यों की तुलना नहीं हो सकती। लघु एवं सीमांत किसानों में भी 50 फीसद ऐसे हैं, जो मजदूरी भी करते हैं। बिहार, मध्यप्रदेश और अन्य राज्यों से यहां के इलाके में ऐसे लाखों श्रमिक प्रतिवर्ष आते हैं, जो यहां धान की कटाई के बाद वहां जाकर अपने खेतों में कटाई करते हैं। मजबूत होगी ग्रामीण अथव्यवस्था:
मोदी सरकार ने छोटे किसानों की बड़ी मदद की है। प्रतिवर्ष 6 हजार रुपये देने का फैसला बड़े बदलाव के लिए है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जान आएगी। मोदी विरोधियों की तकलीफ यही है। नए कृषि कानूनों के बाद किसान अपने स्तर पर या एफपीओ बनाकर कहीं भी उत्पाद बेच सकेंगे। उन्हें गांव के परंपरागत व्यापारी को फसल बेचने और अपनी छोटी सी जोत का अच्छा मुनाफा पाने के लिए कांट्रेक्ट खेती जैसे विकल्प मिलेंगे। मंडी समितियों के यहां फसल लाने की बाध्यता खत्म होगी, लेकिन मंडियों में फसल बेचने का विकल्प मौजूद रहेगा। डीजल से खेती वाले की चिता करें:
हुकमदेव ने कहा कि जहां नहर है वहां कृषि उत्पादन लागत नाममात्र की है। बिजली आधारिक ट्यूबवेल से भी सिचाई सस्ती पड़ती है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कई राज्यों में जटिल परिवहन प्रणाली के बीच महंगे डीजल के सहारे खेती हो रही है। मोदी ने ऐसे किसानों की चिता की है। अब समय आ गया है कि किसान मिलकर एग्रो क्लीनिक खोलें, एग्रो बिजनेस माडल अपनाएं व अपने भले-बुरे की खुद चिता करें।