मिट्टी से कर सकते हैं बिजली भी पैदा

फूलों के गमले या घर के किचन गार्डन में मौजूद मिट्टी से भी बिजली पैदा की जा सकती है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 16 Dec 2019 05:50 PM (IST) Updated:Mon, 16 Dec 2019 05:50 PM (IST)
मिट्टी से कर सकते हैं बिजली भी पैदा
मिट्टी से कर सकते हैं बिजली भी पैदा

जागरण संवाददाता, रेवाड़ी: फूलों के गमले या घर के किचन गार्डन में मौजूद मिट्टी से भी बिजली पैदा की जा सकती है। हाइब्रिड ग्रीन एनर्जी मॉडयूल से इलेक्ट्रो-रासायनिक दृष्टिकोण का उपयोग करने के साथ नियमित रूप से भोजन की आपूर्ति करके मिट्टी में रोगाणुओं से बिजली उत्पन्न किया जा सकता है।

मीरपुर स्थित इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय फिजिक्स डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. सुनील कुमार ने विश्वविद्यालय के साथ राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय मीरपुर में आयोजित कार्यक्रम में इलेक्ट्रो-रासायनिक दृष्टिकोण के उपयोग पर व्याख्यान में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मोबाइल फोन में इस्तेमाल होने वाली आम बैटरी इलेक्ट्रो-केमिकल अवधारणा का उपयोग करती है। जब वे खाना खाते हैं तो माइक्रोबियल एक प्राकृतिक ऊर्जा पैदा करता है। हमारा मॉडल दोनों अवधारणाओं का एक मेल है। इसका उपयोग घरेलू उपकरण अनुप्रयोगों के लिए किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि पोर्टेबल पावर प्लांट सिस्टम घर में सोलर पैनल या बड़े आकार के इनवर्टर से अधिक नहीं है। इस तरह की पीढ़ी पर्यावरण के अनुकूल है और इसका उपयोग पानी और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए थोड़े संसाधनों के साथ किया जा सकता है। औद्योगिक या कृषि अपशिष्ट जल के उपयोग से जल प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है। इस मृदा-आधारित प्रणाली में किसी भी प्रकार के पौधे को लगाकर पर्यावरण को अधिक ऑक्सीजन मुक्त करके वायू को शुद्ध किया जा सकता है।

डॉ. सुनील कुमार हाल ही में कोरिया से लौटे हैं। उन्होंने कोरिया में इस प्रकार के दृष्टिकोण का पेटेंट कराया हुआ है। यह सिस्टम हम भारत में भी लागू करते हैं तो काफी फायदेमंद साबित होगा। डॉ. सुनील कुमार आइजीयू के उन्नत भारत अभियान के सह संयोजक भी हैं। उन्होंने मीरपुर स्थित गांव में गोबर का इस्तेमाल करते हुए बिजली पैदा करने की विधि का डेमो भी प्रस्तुत किया।

उन्नत भारत अभियान की संयोजक डॉ. पिकी कुमारी ने कहा कि डॉ. सुनील कुमार अपनी मातृभूमि को बिजली के किफायती उत्पादन में सेवा देते हुए शोध करना चाहते हैं। सरकार को इस तरह के समर्पित वैज्ञानिक को प्रोत्साहित करना चाहिए और अनुसंधान वातावरण प्रदान करना चाहिए। इससे एक ओर डबल एज हथियार अपशिष्ट प्रबंधन और दूसरी तरफ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देगा। हमारा भारत उस स्थिति में ही उन्नत भारत बन जाएगा जब ग्रामीण भारत में इस प्रकार के शोधों को प्रोत्साहित किया जाएगा।

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