दैनिक जागरण संस्कारशाला: सामाजिक व शैक्षणिक स्तर से मजबूत होगी राष्ट्र की अखंडता
विभिन्न धर्मों परंपराओं जातियों के साथ गांवों और शहरों से मिलकर हमारा देश भारत बना है।
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी: विभिन्न धर्मों, परंपराओं, जातियों के साथ गांवों और शहरों से मिलकर हमारा देश भारत बना है। राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को बनाए रखना हम सभी का कर्तव्य है। राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए हमें सामाजिक व शैक्षणिक स्तर पर कार्य करने होंगे। सामाजिक स्तर की बात की जाए तो समाज की सबसे पहली इकाई परिवार है। बच्चा हर प्रकार की अच्छी और बुरी दोनों बातें यहीं से सीखता है। परिवार में माता-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी, चाचा-चाची सभी मिलकर रहते हैं तो बच्चों में एकता की भावना पनपती है। जब परिवार में चार या पांच बच्चे खेलते हैं तो उनमें लड़ाई झगड़ा होना आम बात है। उनको सही व गलत का ज्ञान करवाकर झगड़ा शांत करवाना माता-पिता का काम है। बच्चा घर से बाहर निकलता है तो अपने पड़ोस से अपनत्व बनाता है और धीरे-धीरे सामाजिक परंपराओें से अवगत होता हुआ अपनी संस्कृति, भाषा और अपने राष्ट्र से प्रेम करना सीखता है। माता पिता का फर्ज है कि बच्चों को मिलकर काम करना, खेलकूद करना, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेना सिखाएं। शैक्षणिक स्तर पर राष्ट्रीय अखंडता की बात करें तो हमारे विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय अहम भूमिका निभाते हैं। जब बच्चा विद्यालय में प्रवेश करता है तो उसे बहुत से नए साथियों, अध्यापकों व नए वातावरण को समझना पड़ता है। राष्ट्रीय अखंडता को बनाए रखने के जितने भी स्त्रोत हैं सब बच्चों को सिखाने होते हैं। सबसे पहले तो बच्चे को अपनी कक्षा में ही एकता का पाठ पढ़ाया जाता है। एक घटना मुझे याद आती है दो से तीन साल के बच्चों की। मैं एक बार विद्यालय के प्राथमिक विभाग से करीब बारह बजे गुजर रही थी। इस दौरान बच्चों की छुट्टी हो गई थी। सभी बच्चे एक लाइन में खड़े थे। जब छुट्टी की घंटी बजने के बाद भी ठहरने का कारण पूछा तो बच्चों ने बताया कि मैडम ने उनके नहीं आने तक कहीं न जाने की हिदायत दी है। उनकी शिक्षिका के आने के बाद ही सभी कतार से बस में चढ़ गए। सब बच्चों का एक साथ एकजुट होकर किसी की बात मानना राष्ट्रीय अखंडता की नींव की छोटी सी शुरुआत है। इसके बाद महाविद्यालय और विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों से भावनात्मक रूप से जुड़कर सांस्कृतिक गतिविधियां के माध्यम से राष्ट्रीय अखंडता का पाठ पढ़ा सकते हैं। आज शिक्षक माता-पिता और बच्चे तीनों समाज की ऐसी शाखाएं हैं जिन पर राष्ट्रीय अखंडता की नींव है। अध्यापक को राष्ट्र का निर्माता कहा जाता है तो राष्ट्रीयता की भावना एक अध्यापक से बेहतर और कौन सीखा सकता है।
- सुषमा यादव, निदेशक, विवेकानंद डिग्री (पीजी) कालेज, डहीना। ----------------
फूट डालो राज करो की नीति आज भी चुनौती
राष्ट्र केवल भूभाग एवं प्राकृतिक संपदाओं तक सीमित नहीं होता है समस्त नागरिकों से मिलकर राष्ट्र बनता है। हमारे राष्ट्र के निर्माण का एक शानदार एवं संघर्षशील इतिहास रहा है। राष्ट्र निर्माण एवं राष्ट्र की अखंडता को लेकर आरंभ से ही बड़ी चुनौतियां हमारे सामने रही हैं। सामंती मानसिकता एवं ब्रिटिश हुकूमत द्वारा अपनाई गई फूट डालो राज करो की नीति आज 21वीं सदी में भी हमारी एकता को चुनौती दे रही है। महान समाज समाज सुधारकों ने नए समाज के निर्माण के लिए अथक प्रयास किए। राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद, ज्योतिबा फुले जैसे महान मनीषियों ने नई दिशा दी तो आजादी की लड़ाई तेज होती गई। समाज सुधारकों एवं स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष एवं कुर्बानियों ने देश के जनमानस में एक नई भावना का संचार किया। यह नई भावना राष्ट्रीयता की भावना थी आजादी के लिए कुर्बानी देने की भावना थी देश के अलग-अलग हिस्सों में सांस्कृतिक विविधताएं अलग-अलग भाषा, अलग-अलग खानपान, अपने अलग रीति-रिवाज, अलग परंपराएं, जाति धर्म संप्रदाय अलग होते हुए भी एक राष्ट्रीयता की भावना मजबूत होती चली गई। आजादी के इस संघर्ष ने एक मजबूत राष्ट्र की नींव का निर्माण किया। ब्रिटिश हुकूमत को खतरा पैदा हो गया। उन्होंने फूट डालो राज करो की नीति को अंजाम देते हुए हमारे समाज में सामंती युग से चली आ रही हमारी कमजोरियों का लाभ उठाते हुए हमारे बीच वैमनस्य को बढ़ावा दिया। ब्रिटिश हुकूमत की इसी नीति का नतीजा हुआ कि हमें विभाजन का दंश झेलना पड़ा। आजादी के लंबे समय के बाद आज भी धर्म जाति भाषा क्षेत्र आदि के नाम पर विभाजनकारी राजनीति जारी है। आज जरूरी हो गया है कि हम ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों के आदर्शों को अपनाते हुए संकीर्णता से ऊपर उठकर राष्ट्र की अखंडता के सामने आने वाली सभी चुनौतियों का मजबूती से मुकाबला करते हुए अपने राष्ट्र को मजबूती दें। एक व्यक्ति का राष्ट्र एवं मानव जाति दोनों के प्रति कर्तव्य है। परमाणु हथियारों के इस युग में आज हर राष्ट्र की जिम्मेवारी बनती है कि वे किसी ऐसी गतिविधियों में शामिल न हों जो मानव जाति को नुकसान पहुंचाए। अपने राष्ट्र से प्रेम किसी दूसरे राष्ट्र से नफरत नहीं सिखाता। सभी मिलकर अगर एक दूसरे के सहयोग का प्रयास करें तो दुनिया की तस्वीर ही कुछ अलग होगी। समय की मांग है हम अपनी राष्ट्रीय एकता को और मजबूत करें। इसके लिए नई पीढ़ी को शिक्षा के साथ राष्ट्र की अखंडता और मजबूती के लिए शिक्षित करने की जरूरत है।
- अनिल कुमार, प्रिसिपल, यूरो इंटरनेशनल स्कूल, रेवाड़ी।