राव राजाओं के अदम्य साहस का दिन है 16 नवंबर

कृष्ण कुमार, रेवाड़ी : जिस तरह हरियाणा वीर एवं शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में 23 सितंबर को शहीदों का भावप

By Edited By: Publish:Sun, 15 Nov 2015 05:41 PM (IST) Updated:Sun, 15 Nov 2015 05:41 PM (IST)
राव राजाओं के अदम्य साहस
का दिन है 16 नवंबर

कृष्ण कुमार, रेवाड़ी : जिस तरह हरियाणा वीर एवं शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में 23 सितंबर को शहीदों का भावपूर्ण स्मरण किया जाता है, उसी तरह 16 नवंबर का दिन भी शहादत के इतिहास में अहम स्थान रखता है। यह अंग्रेजों से लोहा लेने वाले राव राजाओं के अदम्य साहस को नमन करने का दिन है। नसीबपुर के मैदान में आज ही के दिन 1857 में रामपुरा के राजा राव तुलाराम व अमर शहीद राव गोपालदेव सहित हजारों वीरों ने मां भारती की आजादी के लिए अंग्रेजों से युद्ध लड़ा था। इस युद्ध में पांच हजार अनाम सैनिकों ने शहादत दी थी।

यहां के वीरों ने अंतिम सांस तक ब्रिटिश शासकों के खिलाफ संघर्ष किया था। स्वतंत्रता संग्राम के महानायक राव तुलाराम ने जहां मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में ही राजकाज संभालकर अपनी सूझबूझ से अंग्रेजों की घेराबंदी की थी, वहीं राव गोपालदेव ने युद्ध के बाद अंग्रेजों की ओर से की गई सशर्त माफीनामे की पेशकश को ठुकरा दिया था। बेशक मेरठ से उठी क्रांति की ज्वाला रेवाड़ी-नसीबपुर पहुंचने के बावजूद आजादी नहीं दिला पाई थी लेकिन यह भी सच है कि राव राजाओं ने 1857 की क्रांति को कामयाब बनाने के लिए अंतिम सांस तक संघर्ष किया।

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क्रांतिकारी थे राजा राव तुलाराम

राव तुलाराम का जन्म 9 सितंबर 1825 को रेवाड़ी के राज परिवार में हुआ था। राव तुलाराम ने जिस समय होश संभाला, तब मातृभूमि पर अंग्रेजों का शासन था। बचपन में ही पिता पूर्ण ¨सह का साया सिर से उठने के कारण बालक तुलाराम का लालन-पालन उनकी माता ज्ञानकंवर की देख रेख में हुआ था। पिता का साया सिर से उठने पर राव तुलाराम को मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में ही राजगद्दी सौंपी गई थी। इस बीच जब मई 1857 की क्रांति की लहर अहीरवाल क्षेत्र में पहुंची तब राव राजा ने भी क्रांति का बिगुल बजा दिया। राव तुलाराम ने इस इलाके से अंग्रेजी सेना के खिलाफ संघर्ष का एलान कर दिया था। क्रांतिकारी नेताओं ने दिल्ली के ¨सहासन पर कब्जा कर बहादुरशाह जफर को ¨हदुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया। अंग्रेज गुड़गांव व आसपास का इलाका छोड़ कर भाग गए तथा इस पूरे इलाके पर राव तुलाराम का शासन कायम हो गया। गुस्साये अंग्रेजों ने संगठित होकर राव तुलाराम को घेरने की कोशिश की। इस दौरान ही 16 नवंबर 1857 को नारनौल के समीप नसीबपुर के मैदान में अंग्रेजों व भारतीय योद्धाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस लड़ाई में अंग्रेजी सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा। राव तुलाराम अंग्रेजी सेना को चकमा देकर भेष बदलकर अपने विश्वसनीय साथियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ मदद मांगने के लिए काबुल पहुंच गए, परंतु भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। काबुल पहुंचकर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चाबंदी मजबूत करने से पहले ही उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। 23 सितंबर 1863 को आजादी का यह महानायक सदा के लिए सो गया, परंतु आजादी की जो ¨चगारी उन्होंने सुलगाई थी, वहीं भविष्य में ज्वाला बनकर देश को आजाद कराने का कारण बनी।

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महान योद्धा थे राजा गोपाल देव

अहीरवाल क्षेत्र के वीर 1857 की क्रांति से लेकर अब तक देश की रक्षा के लिए अपनी प्राण न्योछावर करने से पीछे नहीं रहे। 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने वालों में अहीरवाल की सरजमीं पर पैदा हुए राजा राव गोपाल देव का नाम भी सम्मान के साथ लिया जाता है। इस महान योद्धा ने ब्रिटिश शासन द्वारा दी गई माफीनामे की पेशकश ठुकरा दी थी। इसी कारण राव गोपालदेव का नाम आज भी आदर से लिया जाता है। कहा जाता है कि राव तुलाराम व राव गोपाल देव जैसे आजादी के नायकों ने 10 मई 1857 को ही देश के सुविख्यात क्रांतिकारियों के सहयोग से मेरठ को आजाद करा लिया होता, परंतु फूट डालो और राज करो की नीति पर चलते हुए अंग्रेजों ने राव राजाओं की शक्ति को कमजोर करने की रणनीति पर काम जारी रखा। इसी कारण उस समय कामयाबी नहीं मिली। राव गोपालदेव इस नीति को समझते थे। अंग्रेजों की नजर में राव गोपाल देव बागी थे। अंग्रेजों से बदला लेने के लिए उन्होंने अंबाला सहित अन्य स्थानों पर सक्रियता बढ़ाई। मेरठ के आजाद होने के बाद 11 मई 1857 को यहां के क्रांतिकारियों ने बादशाह बहादुरशाह जफर के साथ मंत्रणा की। क्रांति की भड़कती लपटों को देखकर 13 मई को तत्कालीन अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर विलियन फोर्ड घबराकर अपने अफसरों के साथ गुड़गांव छोड़ कर भाग खड़ा हुआ व भोंडसी-पलवल के रास्ते मथुरा पहुंच गया।

इस बीच उन्हीं दिनों दूसरी तरफ मेजर विलियम एडन जयपुर की सेना के बल पर दिल्ली जाकर क्रांतिकारियों को दबाने की साजिश रच रहा था लेकिन उसके कई वफादार साथी राव राजाओं से आ मिले। इस कारण एडन निराश होकर अगस्त में वापिस लौट गया। कुछ समय के बाद ब्रिगेडियर शावर्स ने डेढ़ हजार सैनिकों के साथ 7 अक्टूबर 1857 को रेवाड़ी पर हमला कर दिया। राव गोपाल देव अपने महल रानी की ड्योढ़ी से गोकलगढ़ तक बने सुरंग के रास्ते अपने किले में पहुंच गये। गोकलगढ़ किले में पहुंचकर राव राजा गोपालदेव ने ब्रिगेडियर शॅावर्स की सेना से मुकाबला किया। अंग्रेजों को भागना पड़ा। क्रांतिकारियों से खार खाई अंग्रेजी हकूमत ने इसके बाद एक विशाल सेना तोपखाने के साथ कर्नल जेजे जेराड के नेतृत्व में भेजी। जानकारी मिलने पर जोधपुर (शेखावटी) के विद्रोही सैनिक दस्ते, झज्जर के अब्दुल समद खां व हिसार के शहजादा मुहम्मद आजम जैसे क्रांतिकारी व देशभक्त अपनी सैन्य शक्ति सहित राव राजाओं से आ मिले। अमर शहीद राव तुलाराम पहले ही अपनी शक्ति बढ़ाने में जुटे हुए थे। उन्हें भी अंग्रेजों के दांत खट्टे करने का इंतजार था। 16 नवंबर 1857 को क्रांतिकारियों व अंग्रेजी सेना के बीच नसीबपुर के मैदान में भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में राव गोपालदेव ने भी अदम्य साहस का परिचय दिया। रेवाड़ी में राव तुलाराम की स्मृति को चिरस्थायी रखने के लिए जहां नाईवाली चौक पर उनकी प्रतिमा लगाई गई है, वहीं गोपालदेव की याद को जीवंत रखने के लिए नारनौल रोड पर उनकी विशाल प्रतिमा लगवाई गई है। कहा जाता है कि गोपालदेव के सामने अंग्रेजों ने सर्शत माफी की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया था।

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