युवा दाव फेल, वोटों का आकलन भी सटीक नहीं बैठा

पानीपत श्री एसडी एजुकेशन सोसाइटी चुनाव में दिनेश गोयल-रोशनलाल मित्तल पक्ष ने बाजी मारी।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 09 Nov 2020 07:56 AM (IST) Updated:Mon, 09 Nov 2020 07:56 AM (IST)
युवा दाव फेल, वोटों का आकलन भी सटीक नहीं बैठा
युवा दाव फेल, वोटों का आकलन भी सटीक नहीं बैठा

जागरण संवाददाता, पानीपत : श्री एसडी एजुकेशन सोसाइटी चुनाव में दिनेश गोयल-रोशनलाल मित्तल पक्ष ने बड़ी जीत दर्ज की है। इसकी सबसे बड़ी वजह है, दिनेश गोयल पक्ष ने अपने वोट दूसरे पक्ष की तरफ खिसकने नहीं दिए। वहीं, विजय अग्रवाल पक्ष ने युवा चेहरों पर दांव लगाया था। संदेश साफ दिया था, वे खुद आगे नहीं आकर नई पीढ़ी को मौका देना चाहते हैं। इसके साथ ही उन्होंने वोटों का जो आकलन किया था, उसके हिसाब से कई सीटों पर जीत दर्ज करने की उम्मीद थी। पर दोनों ही दांव नहीं चल सके। युवाओं को मौका नहीं मिला, क्रास वोटिग भी नहीं हो सकी। हार, जीत के विश्लेषण के साथ ही जागरण में पढि़ए, अब तक कितनी गुटबाजी होती रही। कहां से शुरू हुआ विवादों का किस्सा।

विवेक गुप्ता और विजय अग्रवाल पक्ष को उम्मीद थी कि फर्म एंड सोसाइटी रजिस्ट्रार से या फिर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट से चुनाव पर स्टे का आदेश जरूर मिल जाएगा। एक बार जिला रजिस्ट्रार से स्टे हासिल भी हो गया लेकिन बाद में इसे हटा भी दिया गया। स्टेट रजिस्ट्रार ने स्टे नहीं दिया। हाई कोर्ट ने स्टे याचिका मंजूर की लेकिन केवल प्रधान पद पर ही। एक तरह से, अग्रवाल पक्ष को उम्मीद ही नहीं थी कि चुनाव हो जाएगा। इस वजह से तैयारी भी नहीं की। 13 सीटों पर अपना प्रत्याशी भी नहीं उतारा। उन्हें उम्मीद थी कि जिनके सामने प्रत्याशी नहीं उतार रहे, उनके समर्थक क्रास वोटिग करेंगे। दरअसल, जो सौ नए सदस्य बनाए गए थे, उनमें से कुछ सदस्यों के विजय अग्रवाल पक्ष के साथ जाने की उम्मीद थी। ऐसा हुआ भी लेकिन ज्यादातर वोटर रोशनलाल मित्तल पक्ष की तरफ ही गए। जिसने जोड़ा, बदलाव किया, वही अलग होते गए

सोसाइटी में नियति ऐसी है कि जो सदस्यों को एकसाथ जोड़कर बदलाव लाता है, वही बाद में अलग भी हो जाता है। परिस्थितियां ही ऐसी बन जाती हैं। 2006 तक प्रवीण गोयल पक्ष का सोसाइटी की शिक्षण संस्थाओं पर कब्जा था। तब विजय अग्रवाल ने विरोध का स्वर उठाया। रोशनलाल मित्तल, सतीशचंद्र और रामनिवास गुप्ता जैसे दिग्गज एकसाथ हो गए। विजय अग्रवाल पक्ष ने जीत दर्ज की। 2009 में रामनिवास गुप्ता एक वोट से हार गए तो वह इस पक्ष से बाहर हो गए। रामनिवास इससे पहले प्रवीण गोयल पक्ष से अलग हो चुके थे। इसके बाद सौ नए सदस्य बने। तब से विजय अग्रवाल पक्ष जीत दर्ज करता रहा। नीचली अदालत से लेकर सेशन कोर्ट और हाई कोर्ट तक में केस पर केस चलते रहे। पर अग्रवाल पक्ष बेहद मजबूत रहा। पर 2020 आते-आते विजय अग्रवाल और कुछ वरिष्ठ सदस्यों में मनमुटाव सामने आ गया। आखिरकार अग्रवाल को ही हटा दिया गया। नई पीढ़ी को ही देंगे मौका

विवेक गुप्ता ने साफ कर दिया है कि वे नई पीढ़ी को ही आगे आने का मौका देंगे। यही सोचकर उन्होंने युवा चेहरों को ही चुनाव में खड़ा किया था। जीत नहीं सके। पर अगली बार पूरी तैयारी के साथ आएंगे। पवन गर्ग पर आरोप लगाना भारी पड़ा

सोसाइटी में पवन गर्ग किसी बड़े पद पर नहीं थे। तब भी सोसाइटी में उनकी बड़ी अहमियत थी। यही वजह थी कि सेक्टर 6 में उनके ही निर्देशन में सोसाइटी का भव्य स्कूल बन रहा है। पवन गर्ग पर हिसाब नहीं देने का आरोप लगाना भारी पड़ गया। रोशनलाल मित्तल, दिनेश गोयल और सोसाइटी के बड़े नेताओं ने इसका सीधे-सीधे विरोध कर दिया। आखिरकार, इनकी जीत भी हुई। अगर एसएन गुप्ता तक ही मामला रहता तो संभव है कि चुनाव नहीं होते। 37 वोट डले ही नहीं

कुल 298 लोगों के वोट बने हुए थे। इनमें से दो का निधन हो चुका है। यानी 296 ने वोट डालना था। वोट डले 259। मतलब 37 सदस्य वोट डालने ही नहीं पहुंचे। विवेक गुप्ता और रामनिवास गुप्ता पक्ष का कहना है कि वोट भी कम पड़े हैं। इस वजह से भी हार हुई।

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