तस्‍वीरों में छठ- कठिन तपस्या और उत्साह, एक खास रहस्य भी जानिये

शाम होते ही विभिन्न घाटों व मंदिरों में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़। व्रतियों ने नहीं लिया पूरा दिन अन्न-जल, आज सुबह उगते सूर्य को दिया जाएगा अर्घ्‍य। अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्‍य देकर किया नमन।

By Ravi DhawanEdited By: Publish:Tue, 13 Nov 2018 07:10 PM (IST) Updated:Wed, 14 Nov 2018 10:58 AM (IST)
तस्‍वीरों में छठ- कठिन तपस्या और उत्साह, एक खास रहस्य भी जानिये
तस्‍वीरों में छठ- कठिन तपस्या और उत्साह, एक खास रहस्य भी जानिये

जेएनएन, पानीपत। छठ पर्व बेहद उत्‍साह और खुशी के साथ मनाया गया। सूर्य उपासना के महापर्व छठ पर श्रद्धालुओं व व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर छठ मइया को नमन किया। इस अनुष्ठान के लिए पूर्वांचल के लोगों में विशेष उत्साह देखा गया। राज्‍य के पानीपत, हिसार, रोहतक, पानीपत, अंबाला, कुरुक्षेत्र, भिवानी, यमुनागर सहित विभिन्‍न स्‍थानों पर लोगों ने छठ पूजा की। महिलाएं इस माैके पर मंगलगीत और छठ पूजा के गीत गा रही थीं। पूजन के लिए घाटों को बहुत सुंदर ढ़ंग से सजाया गया था।

कुरुक्षेत्र में इस तरह पहुंचे।

हजारों श्रद्धालु उमड़े
हजारों छठ श्रद्धालु नदी के घाट पर पर्व मनाने के लिए उमड़ पड़े। इन श्रद्धालुओं के जमावड़े से घाट का दृश्‍य  काफी मनोहारी लग रहा था। श्रद्धालुओं द्वारा पर्व के गीत गाए जाने से सारा माहौल भक्तिमय हो गया।

यमुनानगर में हुआ भव्‍य कार्यक्रम।

सुरमयी हुआ वातावरण
वहीं विभिन्न मंदिरों में भी व्रतार्थियों ने छठ के गीत गाकर वातावरण को सुरमयी बना दिया। पश्चिमी यमुना लिंक नहर के किनारे भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ दिखी।

कैथल में पूजा करते छठ व्रती।

छत पर भी व्‍यवस्‍था
इसके अलावा कई स्थानों पर लोगों ने अपने घरों की छत पर भी पूजा की व्यवस्था कर रखी थी। श्रद्धालुओं ने रोहतक रोड स्थित बाइपास के निकट रजवाहे में पूजा की।

यमुनानगर में घाट पर सेल्‍फी लेती युवती।

शहरों में रौनक
छठ पूजा के दिन शहर में खासी रौनक रही। सुबह से ही घरों में साफ-सफाई की गई थी। बाद में आटे व चीनी का प्रसाद और ठेकुआ तैयार किया गया। शाम की पूजा के लिए मिठाई, फल व गन्ने की खरीदारी की गई।

पानीपत में नहर पर पहुंचे।

हर जगह भीड़
छठ पूजा के लिए लोगों की बड़ी संख्या घाट व पूजा स्थल पर जुटी रही। जिन लोगों ने पहले फल-फूल की खरीदारी नहीं की थी उन्होंने रविवार को बाजार में खरीदारी की। बाजारों में खासी भीड़ रही। उन्होंने छठ पर्व में प्रयोग होने वाली सामग्री खरीदी। कपड़ों की दुकान पर भी खासी भीड़ रही। बाजार में फल-फूल की जमकर खरीदारी हुई।

निसिंग में पूजा करते श्रद्धालु।

महिलाओं ने गाए छठ मइया के गीत
छठ पूजा के दौरान महिलाओं ने गीत गाकर पूरा माहौल भक्तिमय बना दिया। महिलाओं ने निर्धन जानेला ई धनवान जानेला, महिमा छठ मइया के अपार ई जहां जानेला... सेविले चरन तोहार, हे छठी मइया महिमा तोहार अपार, हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी... कार्तिक महीना छठ ब्रतवा, छठ करबो जरुर...केलवा के पतवा प उगलेन, सुना-ए-छठी मइया, रउरै घाटे बेदिया बनवाई दे...जैसे भजनों से रविवार को शहर छठ महापर्व में डूब गया। श्रद्धालुओं ने निर्जला उपवास रखते हुए शाम को अस्ताचलगामी सूर्य देव को जल में खड़े होकर अघ्र्य दिया।

पानीपत के पश्चिमी यमुना लिंक घाट पर उमड़े श्रद्धालु।

आज उदीयमान सूर्य को देंगे अर्घ्‍य
मंगलवार की शाम को डूबते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद अब बुधवार की सुबह उदीयमान सूर्य भगवान को जल में खड़े होकर अघ्र्य दिया जाएगा। इस दौरान श्रद्धालु छठ मइया से अपने परिवार के लिए मंगल कामना करेंगे। वहीं बहुत से श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर मइया का आभार प्रकट करेंगे। इसके बाद पर्व संपन्न होगा।

यमुनानगर में अपने बच्‍चे के साथ महिला श्रद्धालु।

कैथल और यमुनानगर में भव्‍य कार्यक्रम
जन विकास सेवा समिति की ओर से कैथल के शीतलपुरी तालाब पर भव्य कार्यक्रम करवाया गया। शीतलपुरी तालाब पर सूर्यास्त के समय हजारों की संख्या में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग समूह के रुप में एकत्र हुए। इसके बाद महिलाओं ने डूबते सूर्य को जल और दूध का अघ्र्य देकर छठी मैया की पूजा कर सुखमय जीवन की कामना की। बता दें कि छठ पर्व का पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है।

खरना इसे कहते हैं
दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

बनता है छठ प्रसाद
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं के अलावा चावल के लड्डू बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावे के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद में शामिल होता है।

सूप सजाया जाता है
शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अघ्र्य का सूप सजाया जाता है। फिर व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य देने घाट की ओर चल पड़े और शीतलापुरी तालाब के किनारे सामूहिक रूप से अघ्र्य दान संपन्न किया।

यमुनानगर में पूजा करती श्रद्धालु।

समिति का तीसरा आयोजन
कैथल में जन विकास सेवा समिति की के प्रधान बीएन शास्त्री और सचिव डॉ. सजन राय ने बताया कि तीसरी बार यह भव्य आयोजन किया जा रहा है। इससे पहले लोग भीड़ के रुप में एकत्र नहीं होते थे। तीन साल से वे लोग पूरी तैयारी के साथ कार्यक्रम करते हैं। तालाब को पूरी तरह सजाने के साथ रात भर सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे और भोजपुरी कलाकार अपनी प्रस्तुतियां देंगी। पूरी रात भंडारा भी चलेगा।

छठ के बारे में जानिये
छठ मैया की कहानियों का संबंध रामायण की सीता से महाभारत की द्रोपदी व सूर्यपुत्र कर्ण से तथा पुत्रविहीन राजा प्रियवर्त और रानी मालिनी से जोडा़ जाता है।  छठ और डूबते हूए सूरज में क्या संबंध है। दरअसल, आदि काल से मानव जन-जाति तथा जीव-जंतु अंधकार से डरते आ रहे हैं। विश्व के आदि भारतीय पूर्वजों ने प्रकृति में प्रकाश के अतिरिक्त अंधकार को भी सम्मानित किया। छठ पूजा सूर्य की चिलचिलाती गर्मी से राहत देने वाले रात्रि-अंधकार के पूजन के गर्व का पर्व है। भारतीया गणना के आधार पर विश्व में दिन रात आठ पहरों (घटों ) में बांटा गया है। दिवाली दिवस सहित पांच दिनों को दिन के पहले पांच प्रहरों का प्रतीक माना जाता है।

ये होती है खास रात
रात का पहला प्रहर पूरे दिन के पांच प्रहरों के बाद छठा प्रहर होता है। इसी छठे प्रहर या रात के प्रारंभ होने पर छठ मैया की पूजा की जाती है। इसी प्रकार छठ पूजा रात के अंधकार की पूजा है। दिन के प्रथम प्रहर अर्थात प्रातकाल में जिस तरह नहाते-खाते हैं, उसी प्रकार रात के पहले प्रहर में उन्हें फिर से दोहराया जाता है अर्थात नहाए खाए। छठे प्रहर में  प्रत्येक व्रती ठेकुआ बनाती है। क्यों बनाए जाते हैं ठेकुआ? वास्तव में ठेकुआ रात के की आकाशीय चारद में ठुके हुए तारों के प्रतीक हैं, जो रात के तीनों प्रहरों में बने रहते हैं। रात्रि तीन प्रहरों में सूर्य उन्‍हें खा नहीं सकता है। उसी प्रकार तीन दिनों (छठा, सातवां और आठवां) को तीन प्रहर मानकर लोग भी ठेकुआ नहीं खाते। आठवें प्रहर के रूप में आठवें दिन के रात पर यानी नौवें दिन ठेकुआ या तारें स्वत: ही लुप्त हो जाते है। तारों के प्रतीक ठेकुआ भी रूप में बांट कर लुप्त या समाप्त कर दिए जाते है।
प्रकृति के साथ जोड़ता है पर्व
क्‍या सच में भगवान राम थे, पुस्‍तक के लेखक नरेंद्र पिपलानी के अनुसार सातवें प्रहर (रात्रि का दूसरा प्रहर) का प्रतीक सातवां दिन नितांत  सन्नाटे वाला होता है। सब कुछ शान्त, व्रती अकेला होता है। इस दिन से खरना शुरु होता है। सस्कृत खर का  अर्थ है कठोर पीड़ाकर सख्त। खरना आठवें दिन तक चलता है। नौवें दिन प्रहर में सूरज निकलता है। इसे परना संस्कृत पर यानी हटाया हुआ रात्रि को हटाना कहा जाता विदा होना कहा जाता है। नाक से लेकर सिर के मध्य भाग तक  धारण किया हुआ लाल रंग का लंबा तिलक अग्नि रेखा रूपी बिजली का प्रतीक है। असल में सीता ही छठ मैया हैं। हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के अनुसार ही संस्कृति और रीति रिवाज की स्थापना की। उन्होंने प्रकृति के अनुसार के सानिध्य में रहकर उसकी घटनाओं तथा व्यवहार के आधार पर धर्म को रचा था।

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