जिंदगी बचाने की जिद, मौत से लड़ यमुना नदी से इकट्ठा किए सिक्के, किट खरीद बचा रहे जान
यमुनानगर में तीर्थ नगर निवासी 34 वर्षीय राजीव कुमार की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं। 10 साल की उम्र में तैरना सीखा और अब वह लोगों की जान बचा रहे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने यमुना में मिले सिक्के और धातु इकट्ठा कर उसे से डाइविंग किट भी खरीदी।
यमुनानगर, [पोपीन पंवार]। यमुना में आए दिन कोई न कोई डूब जाता था। खबर लगते ही गोताखोर राजीव बचाने के लिए नदी में कूद पड़ता। कई बार जिंदगी हाथ लगती तो कई बार प्राणहीन शरीर। कई बार डूबते को आसानी से बचा लेता तो कभी-कभार उसकी खुद की जान भी मुश्किल में पड़ जाती। बिना संसाधन अधिक गहराई में उतरना खतरे से खाली नहीं होता था तथापि गोताखोर का धर्म और गुरु का वचन उसे साहस प्रदान करता।
प्रतिकूल परिस्थिति में भी उसने डूबते को बचाने में कभी मना नहीं किया लेकिन संसाधनों की कमी उसे अंदर ही अंदर परेशान करने लगी थी और पैसे की कमी इस राह में रोड़े अटकाए खड़ी थी। इसी दौरान उसके दिमाग में विचार कौंधा, क्यों न डाइविंग किट खरीद ली जाए। आर्थिक तंगी का भी समाधान मिल गया और उसने वर्षों से संग्रह कर रखे यमुना से निकाले सिक्के व धातु को बेचकर पांच लाख रुपये डाइविंग किट खरीद लिया। अब 30 से 40 फीट गहराई में भी जाकर राजीव लोगों को तलाश लाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के कारण श्रद्धालु यमुना में डालते हैं सिक्के और धातु
34 वर्षीय राजीव कुमार तीर्थ नगर में रहते हैं। पश्चिमी यमुना नहर के पास ही उनका घर है। उसके पिता हरीश ठाकुर टैक्सी चलाते हैं। काफी समय पहले उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर के बदलापुर से यहां पर आकर काम करने लगे। राजीव कुमार ने मात्र 10 साल की उम्र में ही तैरना सीख लिया था। 16 साल के होते-होते वह लोगों को बचाने नदी की गहराई में उतरने लगे थे। धार्मिक मान्यता व आस्था के चलते लोग यमुना व यमुना नहर में धातु (पीतल,तांबा, कांस्य व अन्य) व धातु के सिक्के अर्पित करते हैं।
कुछ लोग तो अपने वजन के बाहर धातु अर्पित कर देते हैं। जगाधरी में मेटल का कारोबार है। लोगों को मिलने में भी दिक्कत नहीं आती। दादुपुर पुल से हाईव पुल के बीच में ज्यादा लोगों का आना जाना होता है। कई गांव के श्मशान घाट भी यमुना किनारे पर है। कुछ लोग हरिद्वार न जाकर यमुना में ही अस्थियां विर्सजित करते हैं। जिस कारण यमुना में धातु ज्यादा डाला जाता है। कई लोग तो ग्रह दोष मुक्ति के लिए पूरे शरीर के वजन के बराबर धातु यमुना में डालते हैं।
चार-पांच साल में एकत्र किए सिक्के व धातु से खरीदा डाइविंग सेट
राजीव की मानें तो डाइविंग सेट के पांच लाख के सिक्के एकत्र करने में उसे चार से पांच साल का समय लगा। जो सिक्के व धातु मिलते थे, घर खर्च के बाद वह उनकी सेविंग कर रहा था। अब गोताखोरी राजीव का पेशा बन गया है। लोगों की मदद करने के लिए वह पैसे तो नहीं मांगते, लेकिन इनाम के तौर पर लोग उनको पैसे दे देते हैं। कभी-कभी तो लोग उसकी उम्मीद से अधिक दे जाते हैं, जिससे जीवनयापन हो जाता है। डाइविंग सेट की मदद से वह लंबे समय तक पानी में रह सकता है। जिससे डूबते व डूबे हुए को बचाने में आसानी होती है। जिले में एक भी सरकारी गोताखोर की नियुक्ति नहीं है।
यह भी जानिए
वर्ष जिले में डूबे लोग (अनुमानित )
2019 62
2020 68
2021 42
मिलते हैं यमुना पर ही ऐसा बनाया है रूटीन
राजीव के पास 18 वर्ष से एक ही मोबाइल नंबर है। जैसे कोई नहर में कूदता या डूबता है तो आसपास के लोग फोन कर देते हैं। इन्होंने अपनी दिनचर्या भी ऐसी बना रखी कि यमुना के आसपास ही मिलते हैं। पहले तो परिवार के लोग रोका करते थे, लेकिन अब नहीं रोकते क्योंकि जिन परिवारों की सहायता उन्होंने की, वह घर पर जाकर आभार जताते हैं। राजीव की दो बेटियां व एक बेटा है। कई बार तो ऐसा हो चुका है कि बड़ा हादसा होने पर प्रशासन ने बाहर से गोताखोर बुलाए, लेकिन उनको कामयाबी नहीं मिली और राजीव ने ही प्रशासन को सफलता दिलाई।
परिवार की कार निकालते शीाशे से कट गया था हाथ
वर्ष 2014 के अगस्त माह में शहर की मधु कालोनी निवासी पेपर मिल के अधिकारी अनिल प्रोन्नति मिलने पर टीचर पत्नी चंचल, दो बच्चों व चार साल की भतीजी के साथ मंदिर में जा रहे थे। अंधेरे में बाडी माजरा पुल से उनकी कार नहर में गिर गई। नहर के किनारे दूर खड़े किसी व्यक्ति ने पुल से किसी से किसी के गिरने की आवाज सुनी थी। नहर में गिरे लोगों को तलाशने के लिए दूसरे जिलों से भी गोताखोर बुलाया गया था। कई घंटे तक तलाशी अभियान चला था लेकिन कार का कोई पता नहीं चल पा रहा था। इस अभियान के दौरान एक बार सरकार गोताखोर ही जब डूबने लगा तो राजीव ने ही उसे बचाया था। यही नहीं, कार को तलाशने में आखिरकार राजीव को ही सफलता मिली थी। इस अभियान में उसका हाथ भी कट गया था। हालांकि इसमें एक भी व्यक्ति को जिंदा नहीं बचाया जा सका था।
तीन दोस्तों को बचाते खुद ही फंस गए थे भंवर में
वर्ष 2018 में कुछ बच्चे नहाने के लिए यमुना नहर पर पहुंचे। जिनमें से तीन दोस्त नहर में बह गए। राजीव उनकी तलाश कर रहे थे। अचानक पानी के भंवर में बीच फंस गए। तब बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाई थी।
40 फीट तक गहराई में रुक जाते हैं दो घंटे
राजीव बताते हैं कि डाइविंग किट की मदद से वह दो घंटे तक पानी के अंदर 30 से 40 फीट गहराई तक में रह सकते हैं। उनके पास दो किटें हैं। गैस भरने के लिए कंप्रेसर है। सिलेंडर में करीब 20 किलो वजन है। ज्यादा गहराई में जाने के लिए अतिरिक्त वजन लेकर उतरना पड़ता है। अब तक सैकड़ों की संख्या में न केवल शवों को बाहर निकाला, बल्कि जो आत्महत्या की मंशा से यमुना में कूद जाते हैं, उनको भी बचा रहे हैं।
सुखराम गोताखोर उनके उस्ताद हैं। उन्हीं से ही उनको यह काम करने की प्रेरणा मिली है। उनकी उम्र करीब 55 वर्ष है। ज्यादातर काम अब वह स्वयं ही देखते हैं। जिला में पश्चिमी यमुना नहर, यमुना नदी व आर्वधन नहर है। इसके अलावा बैराज भी है। नदियों का एरिया अधिक होने के कारण डूबने वालों की संख्या काफी रहती है। दूसरा, सरकार की ओर से जिले में कोई सरकारी गोताखोर नियुक्त नहीं है।
काफी तेज आ रही थी युवती, हो गया था शक
राजीव बताते है कि तीन चार साल पहले दोपहर के समय शहर की एक कालोनी (मधु कालोनी) निवासी 25 वर्षीय लड़की काफी तेजी से यमुना नहर की तरफ आ रही थी। उसको देखकर उनको शक हुआ। जैसे ही वह यमुना में कूदी तो वह भी पीछे से कूद गया। उसको बाहर निकाल। उससे यमुना में छलांग लगाने का कारण पूछा तो पता चला कि परिवार के साथ उसका विवाद हो गया था। उसके परिवार को फोन कर बुलाया गया। बाद में वह लड़की उनको धन्यवाद बोलकर गई थी।
गणेश चतुर्थी पर बहने लगा था राजकिशोर
वर्ष 2018 में गणेश चतुर्थी पर मूर्ति विसर्जन के लिए शहर के लोग आ रहे थे। प्रशासन ने विसर्जन की व्यवस्था की हुई थी। पुलिस तैनात थी। यमुना में अंदर जाने पर रोक थी। उसके बाद भी बाड़ी माजरा के तीन चार युवक मूर्ति लेकर यमुना के अंदर चले गए। ज्यादा पानी होने के कारण राजकिशोर बहने लगा। उसके साथियों से शोर मचा दिया। तभी राजीव ने राज किशोर को पानी से बाहर निकाला।