International Fathers day: बचपन में कुश्ती सिखाते थे पिता, बेटी अच्छे-अच्छों को देती है पटखनी, सात बार भारत केसरी
पानीपत की नैना सात बार भारत केसरी रह चुकी हैं। उनकी सफलता की कहानी में उनके पिता का संघर्ष भी छिपा है। खुद कुश्ती चैंपियन नहीं बन पाए तो बेटे और बेटी दोनों को चैंपियन बना दिया। नैना ने सपना साकार किया और पदकों की झड़ी लगा दी।
पानीपत/थर्मल [सुनील मराठा]। पिता ने उड़ना सिखाया तो बेटी ने इतनी ऊंची उड़ान भरी कि पूरे देश में उनका नाम रोशन कर दिया। पानीपत के सुताना गांव की नैना कैनवाल को उसके पिता रामकरण बचपन में घर के पार्क में ही कुश्ती करना सिखाते थे। खेल खेल में बेटी ऐसी खिलाड़ी बनी कि मेडल की झड़ी लगाते हुए भारत केसरी बन गई।
गांव सुताना में किसान परिवार में जन्मी हैं नैना। पिता रामकरण, मां बाला देवी और भाई निखिल है। पिता को पहलवानी का शौक था। परिस्थितियां ऐसी रहीं कि खुद चैंपियन नहीं बन पाए। लेकिन बेटे व बेटी, दोनों को ही कुश्ती का चैंपियन बना दिया। पिता रामकरण 2005 में गांव के सरपंच रहे। 2010 में मां बाला देवी सरपंच बनीं।
नैना ने निडानी में कुश्ती सीखी। शुरुआती पहलवानी के कुश्ती कोच सुभाष लोहान रहे। नैना कैनवाल ने निडानी में लगभग तीन साल तक 2010 से 2013 तक कुश्ती की प्रैक्टिस की। 2014-15 में निडानी में कुश्ती कोच कृष्ण से कुश्ती सीखी। 2018 में नैना रोहतक चली गई और वहां कुश्ती की प्रैक्टिस करने लगी। कुश्ती के कोच मंदीप प्रैक्टिस करा रहे हैं। वहां चौधरी सर छोटू राम स्टेडियम में कुश्ती के गुर सीखने लगी।
कुछ समय के लिए छोड़नी पड़ी कुश्ती
कुश्ती के दाव पेच में नैना घायल भी हुई। इसकी वजह से कुछ समय के लिए पहलवानी से हटना पड़ा। हालांकि दोबारा से मैट पर लौट आई हैं। नैना ने दो दंगल में एक्टिवा जीतीं हैैं। मथुरा के दंगल में एक लाख का इनाम और हरियाणा केसरी पर डेढ़ लाख जीते
ये पदक और इनाम जीते
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